सीबीएसई 10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षा की एग्जाम फीस को लेकर सोशल जूरिस्ट अशोक अग्रवाल की ओर से दी गई याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कहा कि ये सरकार का निर्णय है. अदालत इसे कैसे निर्देशित कर सकती है.
याचिकाकर्ताओं के लिए अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने कहा कि हमने दिल्ली सरकार के समक्ष एक प्रतिनिधित्व दायर किया था, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि हम इतना पैसा नहीं दे सकते. सीबीएसई ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया. उन्होंने कहा कि सीबीएसई के 10% छात्र सरकारी स्कूलों में हैं. कम से कम वे पुराने शुल्क की मद पर फीस जमा कर सकते हैं. बोर्ड ने परीक्षा शुल्क में बढ़ोतरी कर दी है.
बता दें कि पहले सितंबर में सीबीएसई बोर्ड के 10वीं-12वीं के 30 लाख बच्चों की एग्जाम फीस माफ कराने से जुड़ी जनहित याचिका दिल्ली हाई कोर्ट में दायर की गई थी. 30 सितंबर को कोर्ट ने सरकार को 2 हफ्ते में विचार करने के निर्देश दिए. देशभर में सीबीएसई की एग्जाम फीस को माफ करने को लेकर लगाई गई जनहित याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने रिप्रेजेंटेशन के तौर पर लेने के लिए दिल्ली और केंद्र सरकार को निर्देश दिए.
कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह इस याचिका पर 2 हफ्ते में कोई फैसला ले ले. सीबीएसई के 10वीं और 12वीं के छात्रों के लिए एग्जाम फीस को जमा करने की आखिरी तारीख 15 अक्टूबर तय की गई थी. दिल्ली हाई कोर्ट की डबल बेंच में इस याचिका पर हुई सुनवाई के दौरान सोशल जुरिस्ट की तरफ़ से पेश हुए वकील अशोक अग्रवाल ने कहा था कि प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ा रहे अभिभावकों की स्थिति इतनी खराब है कि वो बच्चों की फ़ीस भरने में भी असमर्थ हैं.
दिल्ली सरकार ने रखी थी ये दलील
दिल्ली सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कोर्ट से कहा कि उन्होंने केंद्र सरकार से तकरीबन 100 करोड़ रुपये की राशि मांगी ताकि इन छात्रों की एग्जाम फीस को माफ किया जा सके. लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से अभी उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. दिल्ली में प्राइवेट और सरकारी स्कूलों में 10वीं और 12वीं की कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या तीन लाख के आसपास है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने याचिका पर कोई आदेश देने के बजाय जनहित याचिका को रिप्रेजेंटेशन के तौर पर लेने के सीबीएसई, दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार को निर्देश दिए, लेकिन छात्रों के अभिभावकों को किसी तरह की कोई राहत न मिलने के बाद याचिकाकर्ता संतुष्ट नहीं दिखे और सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.
सोशल जुरिस्ट की तरफ से वकील अशोक अग्रवाल द्वारा लगाई गई इस याचिका में कहा गया था कि लॉकडाउन और कोरोना महामारी के चलते प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ा रहे अभिभावकों की स्थिति इतनी खराब है कि वो बच्चों की फीस भरने में भी असमर्थ हैं. अशोक अग्रवाल ने बताया है कि तमाम अभिभावकों ने उनको चिट्ठियां लिखी हैं और अपनी आर्थिक खस्ताहाल स्थिति के बारे में भी बताया है.
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