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जानें कौन थे जैन मुनि विजय वल्‍लभ सुरिश्‍वर जी महाराज, जिनकी प्रतिमा है 'स्‍टेच्‍यू ऑफ पीस'

उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, सौराष्ट्र और महाराष्ट्र आदि प्रांतों में उन्होंने 67 वर्षो तक पैदल यात्राएं कीं. इस दौरान उन्‍होंने आचार्य महावीर जैन विश्‍वविद्यालय समेत अनेक शैक्षणिक संस्‍थानों की स्‍थापना में अपना सहयोग दिया.

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Jain Muni Vijay Vallabh Surishwar
Jain Muni Vijay Vallabh Surishwar
स्टोरी हाइलाइट्स
  • खादी स्‍वदेशी आंदोलन में भी वह सक्रिय रहे
  • स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसा की अपनी शिक्षा के साथ सक्रिय रहे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 नवंबर को जैन भिक्षु आचार्य विजय वल्लभ सुरिश्‍वर जी महाराज की 151वीं जयंती समारोह के अवसर पर राजस्थान के पाली जिले में 'स्‍टेच्‍यू ऑफ पीस' (statue of peace) का वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से अनावरण किया. आचार्य वल्‍लभ की 151 इंच ऊंची अष्टधातु की प्रतिमा विजय वल्लभ साधना केंद्र, जेटपुरा में स्थापित की गई है. 151 इंच की प्रतिमा जमीन से 27 फिट ऊंची है और इसका वज़न 1300 किलो है. आइये जानते हैं कौन हैं आचार्य विजय वल्लभ सूरीश्वर जी जिनकी प्रतिमा को 'स्‍टेच्‍यू ऑफ पीस' माना गया है. 

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आचार्य विजय वल्‍लभ श्‍वेतांबर धारा के संत थे. उनका जन्‍म संवत 1870 में गुजरात के बड़ोदा में हुआ मगर उन्‍होंने अपनी अधिकांश सेवाएं पंजाब को दीं. वह खुद खादी पहनते थे और आज़ादी के समय हुए खादी स्‍वदेशी आंदोलन में भी सक्रिय रहे. देश के बंटवारे के समय उनका पाकिस्‍तान के गुजरावाला में चर्तुमास था, मगर वे सितंबर 1947 में पैदल ही भारत लौट आए और अपने साथ अपने अनुयायिओं का भी पुर्नवास सुनिश्चित किया. वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसा के अपनी शिक्षा के साथ सक्रिय रहे. आज़ादी के बाद 1954 में उनकी मृत्‍यु बंबई में हुई. उनके अंतिम दर्शन के लिए 2 लाख से अधिक श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी थी. 

उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, सौराष्ट्र और महाराष्ट्र आदि प्रांतों में उन्होंने 67 वर्षो तक पैदल यात्राएं कीं. इस दौरान उन्‍होंने आचार्य महावीर जैन विश्‍वविद्यालय समेत अनेक शैक्षणिक संस्‍थानों की स्‍थापना में अपना सहयोग दिया. उन्‍होंने अपने हाथों से 50 से ज्‍यादा शिक्षण संस्‍थाओं की स्‍थापना की. उन्‍होंने अनेक ग्रंथों के निर्माण के साथ साथ अनेक पूजाओं और छंद कविताओं की भी रचना की. अपने गुरू की ही इन्‍होंने भी अपनी कर्मभूमि पंजाब को बनाया. उनके उपदेशों से प्रेरित होकर लोगों ने उन्‍हें 'पंजाब केसरी' की उपाधि दी. जैन संप्रदाय के उत्‍थान और उसकी शिक्षाओं को फैलाने के अपने कार्यों के लिए उन्‍हें 'युग प्रधान' कहा जाने लगा.

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स्‍टेच्‍यू ऑफ पीस का अनावरण दोपहर 12:30 बजे वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्‍यम से किया गया जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने उनके जीवन के मूल्‍यों से सीख लेने की बात कही.

 

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