QS World University Rankings 2024: क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी सस्टेनेबिलिटी रैंकिंग में जगह बनाने वाले 56 भारतीय विश्वविद्यालयों में दिल्ली विश्वविद्यालय टॉप पर है. डीयू के बाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) बॉम्बे और आईआईटी मद्रास हैं. वैश्विक उच्च शिक्षा विश्लेषक क्यूएस क्वाक्वेरेली साइमंड्स (QS) द्वारा संकलित क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग: सस्टेनेबिलिटी 2024 में 95 देशों और क्षेत्रों के 1,397 संस्थान शामिल हैं, जो पिछले साल के पायलट संस्करण में प्रदर्शित संख्या से दोगुने से भी अधिक है.
ये हैं टॉप यूनिवर्सिटीज
क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी सस्टेनेबिलिटी रैंकिंग में टोरंटो यूनिवर्सिटी ने पहली रैंक हासिल की है, उसके बाद कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले (यूसीबी) और मैनचेस्टर विश्वविद्यालय दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी को इस लिस्ट में 220वीं रैंक मिली है. वहीं आईआईटी बॉम्बे 303वें, मद्रास 344वें, आईआईटी खड़गपुर 349वें, आईआईटी रुड़की 387वें और आईआईटी दिल्ली 426वें स्थान पर हैं. इसके अलावासस्टेनेबिलिटी रैंकिंग में वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी को 449वां, अन्ना यूनिवर्सिटी को 496वां और भारतीय विज्ञान संस्थान को 505वां स्थान मिला है.
इस आधार पर मिली रैंकिंग
सामाजिक प्रभाव, पर्यावरणीय प्रभाव और शासन के आधार पर विश्वविद्यालयों का मूल्यांकन करते हुए, क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग सस्टेनेबिलिटी 2024 ये आकलन करती है कि विश्वविद्यालय दुनिया की सबसे गंभीर वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए क्या कदम उठा रहे हैं. क्यूएस के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट बेन सॉटर ने कहा, "भारत, दुनिया के सबसे बड़े कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जकों में से एक के रूप में, एक विकट चुनौती का सामना कर रहा है और 2070 तक शुद्ध शून्य प्राप्त करने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए भारी जिम्मेदारी निभा रहा है. इस संदर्भ में, भारतीय विश्वविद्यालयों की भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि वे संख्या में विस्तार और गुणवत्ता में सुधार जारी रख रहे हैं."
पर्यावरण शिक्षा और संस्थागत स्थिरता में वीआईटी और दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों के प्रयासों की सरहाना की गई है और ये उपलब्धियां भारत की जलवायु कार्य योजनाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं. सॉटर ने कहा, "देश की पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं के साथ तालमेल बिठाने के लिए, विश्वविद्यालयों को अपनी अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ाने, विविधता और समावेशिता को बढ़ावा देने और उच्च प्रभाव वाले पर्यावरण अनुसंधान में निवेश करने की जरूरत है. इसके अलावा, जैसा कि भारत अपने इनबाउंड और आउटबाउंड छात्र गतिशीलता को बढ़ाने का प्रयास कर रहा है, सेक्टर के भीतर कार्बन ऑफसेटिंग होगी."