UPSC की सिविल सेवा प्रतियोगिता परीक्षा पास करने के 8 साल बाद एक उम्मीदवार को ज्वाइनिंग मिल पाई है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उम्मीदवार को बहाल किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए मेडिकल जांच रिपोर्ट के आधार पर सेवा में नियुक्ति देने का आदेश दिया है.
के राजशेखर रेड्डी की कहानी संघर्ष और संयोग का मिक्सचर है. रेड्डी ने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 2014 में अपने पांचवें और आखिरी प्रयास में पास की थी. मेडिकल जांच में उनका बॉडी मास इंडेक्स यानी BMI 32 आया. उन्हें टेंपरेरी अनफिट कैटेगरी में रखा गया क्योंकि मेडिकल जांच रिपोर्ट में BMI 30 से अधिक नहीं होना चाहिए. इस कारण रेड्डी सिविल सर्विस में ज्वाइन नहीं कर पाए और उनका नाम अगले साल के लिए रिजर्व कैटेगरी में रख लिया गया.
रिजर्व कैटेगरी वालों को बीएमडी जैसे अस्थाई दिक्कत दूर करने के लिए छह महीने का समय मिलता है. छह महीने बीतने के बाद रेड्डी ने मार्च 2016 में एक बार फिर से मेडिकल टेस्ट के लिए आवेदन किया तो समयावधि निकल जाने की बात कहकर उनको फिर दरकिनार कर दिया गया. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में आया.
कोर्ट ने 06 अप्रैल 2021 को रेड्डी को फिट सर्टिफिकेट के साथ पास मान लिया. अवकाशकालीन पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस विक्रम नाथ ने सरकार को अपने आदेश में निर्देश दिया कि 2014 की ओरिजनल वेटिंग लिस्ट या कहें रिजर्व लिस्ट के अनुसार ही रेड्डी की नियुक्ति पर विचार करे. कोर्ट ने आदेश में कहा है कि के राजशेखर रेड्डी को उनके वास्तविक कैडर के मुताबिक वेतन, भत्ते और वरीयता यानी सिनियरिटी मिले लेकिन अब तक की इस अवधि का वेतन उनको नहीं मिलेगा क्योंकि उन्होंने कम नहीं किया था. वह बाकी सभी सरकारी सुविधाओं के कि हकदार होंगे.