मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप (Maulana Azad National Fellowship) को हाल ही में केंद्र सरकार ने बंद करने का फैसला लिया है. आठ दिसंबर को अल्पसंख्यक मंत्रालय (Union Ministry of Minority Affairs) की ओर से जारी बयान में इसे दूसरे फेलोशिप पर ओवरलैप बताकर बंद करने की बात कही गई. अब इसे लेकर देशभर में छात्र विरोध कर रहे हैं.
12 दिसंबर को दिल्ली के शास्त्री भवन में जामिया, जेएनयू, डीयू, एयूडी और दिल्ली के अन्य विश्वविद्यालयों के सौ से अधिक छात्र इसके खिलाफ सड़क पर उतरे. यही नहीं देश के अन्य शैक्षणिक संस्थानों में भी इसका विरोध हुआ. आइए जानते हैं कि ये फेलोशिप क्या है और किसे इसका लाभ मिल रहा था. क्या ये सच में ओवरलैप है जैसा कि सरकार तर्क दे रही है.
What is MANF? एमएएनएफ क्या है
MANF अल्पसंख्यकों को दी जाने वाली मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय फैलोशिप है जो पीएच.डी./एम.फिल की पढ़ाई के लिए प्रदान की जाती है.
किन लोगों को मिल रही थी फेलोशिप
फेलोशिप वेबसाइट पर मानकों के मुताबिक लाभार्थियों या उनके अभिभावकों की सालाना आय सभी स्रोतों से छह लाख रुपये प्रति वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए. फेलोशिप प्रति माह 10,000 रुपये से 28,000 रुपये के बीच मदद देती है.
क्या एक कैंडीडेट एक बार में एक से ज्यादा फेलोशिप ले सकता है?
कोई भी स्कॉलर एक समय में एक ही फेलोशिप का लाभ ले सकता है. इसके लिए उसे ये घोषणा पत्र देना होता है कि वो इस एक फेलोशिप का लाभ लेने के दौरान कोई अन्य मोनेटरी बेनिफिट, स्कॉलरशिप या फेलोशिप का लाभ किसी अन्य सोर्स से नहीं ले रहा है.
कितने लोगों को मिल रही थी फेलोशिप
इस फेलोशिप के लिए हर साल 1000 दिए जाते थे. इसमें से 750 यूजीसी नेट के तहत आने वाले सब्जेक्ट जैसे नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट (NET) फॉर जूनियर रिसर्च फेलोशिप (JRF) और असिस्टेंट प्रोफेसर की योग्यता पर दिए जाते थे. बाकी 250 सीएसआईआर-यूजीसी टेस्ट के माध्यम से बेसिक साइंस के तहत NET वालों को दी जाती थी.
क्यों और कौन कर रहा विरोध
कई छात्र संगठन सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं. इनमें से एक Democratic Students Federation का कहना है कि MANF मुसलमानों, सिखों, पारसियों, बौद्धों, जैन और ईसाइयों जैसे अल्पसंख्यक समुदायों के कैंडीडेट्स को हायर एजुकेशन (भारतीय विश्वविद्यालयों से रेगुलर और फुल टाइम एम.फिल और पीएचडी कोर्स) के लिए वित्तीय सहायता के रूप में पांच साल की एकीकृत छात्रवृत्ति प्रदान करता है. इसे 2009 में सच्चर समिति की सिफारिशों के अनुरूप लॉन्च किया गया था, जो देश में मुसलमानों की सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक स्थिति को देखकर की गई थी.
केंद्र सरकार ने निंदनीय कदम उठाते हुए मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप (एमएएनएफ) को 2022-23 के शैक्षणिक वर्ष से यह तर्क देते हुए बंद करने का फैसला किया है कि यह योजना अन्य फेलोशिप के साथ ओवरलैप करती है. यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सरकार इसकी पुष्टि करने वाला कोई भी डेटा उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं है. यह कदम और कुछ नहीं बल्कि अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों के अधिकारों पर एक सीधा हमला है.
AISA- All India Students Association का तर्क है कि जिन छात्रों के लिए ये फेलोशिप उच्च शिक्षा तक पहुंच के लिए आवश्यक है, वे इसे बंद करने से गंभीर रूप से प्रभावित होंगे. यह कदम उन छात्रों की आकांक्षाओं के लिए आपदा की तरह है. केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा की गई घोषणा किसी सरकारी योजना को साधारण रूप से बंद करने की नहीं है, यह भाजपा सरकार द्वारा सामाजिक न्याय से मुंह मोड़ने जैसा है.