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एजुकेशन

कोरोना के इलाज में वेंटिलेटर कितना जरूरी, देश में कैसे हो रहे तैयार

कोरोना के इलाज में वेंटिलेटर कितना जरूरी, देश में कैसे हो रहे तैयार
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कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है. अब भारत में भी कोरोना का कहर तेजी से फैल रहा है. कोविड-19 यानी कोरोना को लेकर लोगों के मन में सबसे पहले यही बात आती है कि अगर वो बीमार हो गया तो उसे इलाज के लिए वेंटीलेटर में रखा जाएगा. क्या देश में इतने वेंटीलेटर हैं कि हर एक मरीज को इसकी आपूर्ति हो सके. आइए जानते हैं कि कोरोना के इलाज में वेंटीलेटर की क्या भूमिका है. और भारत में अगर इसकी कमी है तो इसके लिए किस स्तर पर तैयार‍ियां हो रही हैं.
कोरोना के इलाज में वेंटिलेटर कितना जरूरी, देश में कैसे हो रहे तैयार
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बता दें कि वेंटिलेटर (या रेस्पिरेटर) एक ऐसा यांत्रिक उपकरण है जो एक मरीज को सांस लेने में मदद करता है. ये ऐसे मरीजों को दिया जाता है जब वो अपने दम पर सांस ले पाने में असमर्थ होता है. इसके अलावा अस्पतालों में ऑक्सीजन जैसी गैसों की आपूर्ति व्यवस्था है, जिनका उपयोग वेंटिलेटर में किया जाता है.
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वेंटिलेटर कंप्रेस्ड गैस (ऑक्सीजन) लेता है और इसे अन्य गैसों के साथ मिलाता है. ये सामान्य सांस लेने जैसा ही है. आमतौर पर हम जो सांस लेते हैं उसके जरिये हम वायुमंडल से 21% ऑक्सीजन लेते हैं. चूंकि ये वायरस फेफड़े और श्वसन तंत्र पर हमला करता है जिसमें सांस लेने में परेशानी आती है इसलिए वेंटिलेटर इसमें मरीज की मदद करता है.
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क्या हर मरीज को जरूरी है वेंटीलेटर

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ के के अग्रवाल का कहना है कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. कोरोना के सिर्फ 20 प्रतिशत मरीज गंभीर अवस्था में पहुंच जाते हैं. ये वो होते हैं जो बुजुर्ग होते हैं या अन्य कारणों से किसी की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है. इन 20 प्रतिशत में से भी सिर्फ 3 से 5 प्रतिशत को वेंटीलेटर की जरूरत पड़ती है.
कोरोना के इलाज में वेंटिलेटर कितना जरूरी, देश में कैसे हो रहे तैयार
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इसलिए है ज्यादा वेंटीलेटर की जरूरत

डॉ के के अग्रवाल कहते हैं कि भले ही ये प्रतिशत 3 से 5 प्रतिशत का है लेकिन अगर ये बीमारी भारत में कम्युनिटी स्प्रेड होती है तो मरीजों की संख्या बढ़ सकती है. ऐसे में ज्यादा मरीज होने पर वेंटीलेटर की जरूरत भी ज्यादा पड़ सकती है.
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कैसे हो रहे हैं तैयार

भारत में इसकी जरूरत को देखते हुए सरकार वेंटिलेटर की अपनी क्षमता को बढ़ाने की कोशिश कर रही है. क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि जल्द ही बड़ी संख्या में वेंटिलेटर की आवश्यकता हो सकती है. इसी जरूरत को देखते हुए रेलवे के स्वामित्व वाली इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) ने मशीनों को "रिवर्स इंजीनियर" करने का प्रयास किया है. यही नहीं निजी क्षेत्र के कार निर्माता भी अनुभव न होते हुए भी वेंटीलेटर बनाने में जुट गए हैं.
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हो रही थर्ड स्टेज की तैयारी

भले ही भारत में अभी भी ये बीमारी सेकेंड स्टेज पर है. यानी विदेश से आने वाले लोगों और उनके संपर्क में आए लोगों तक है. लेकिन सरकार ने कम्युनिटी स्तर यानी समुदाय में फैलने के स्तर तक की तैयारि‍यां शुरू कर दी हैं. इसीलिए दुनिया की बड़ी कार कंपनी जनरल मोटर्स ने वेंटिलेटर बनाना शुरू किया है. भारत में महिंद्रा, मारुति, रिलायंस जैसी कंपनियां वेंटिलेटर का उत्पादन कर रही हैं.
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कार की फैक्ट्री में ऐसे बन रहे वेंटिलेटर

कार कंपनियों के पास उत्पादन के लिए जरूरी कई संसाधन पर्याप्त मात्रा में हैं. इन कार कंपनियों ने उन कंपनियों से समझौता किया है, जो पहले से वेंटिलेटर का निर्माण कर रही थीं. कार कंपनियां उत्पादन में उनका साथ दे रही हैं. मारुति, सुजुकी, टाटा मोटर्स ने भी वेंटिलेटर उत्पादन में मदद की पेशकश की है. सार्वजनिक कंपनी भेल ने वेंटिलेटर कंपनियों से टेक्निकल डिटेल मांगी है ताकि वेंटिलेटर के उत्पादन को तेज करने में उनकी मदद कर सके. ऐसा माना जा रहा है कि कोरोना से पहले देश में वेंटीलेटर्स की संख्या पर्याप्त थी लेकिन बीमारी की विभत्सता को देखते हुए इस बड़े स्तर पर तैयारियां हो रही हैं.

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