भूटान का राज परिवार उस समय हैरान रह गया जब राज परिवार के तीन साल के बच्चे ने बताया कि वो नालंदा विश्वविद्यालय का छात्र था. उसने 8वीं शताब्दी के बारे में सारी बातों की भी जानकारी दी.
जिग्मी ओंगचुक एक साल की उम्र से ही प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के नाम का उच्चारण कर रहा है. पहले तो यह किसी को समझ में नहीं आया. लेकिन जब वो बड़ा हुआ तो उसने बताया कि पिछले जन्म में उसने यहां पढ़ाई की है, यह सुनना सभी के लिए काफी आश्चर्यजनक अनुभव था.
उसने यह भी बताया कि पिछले जन्म में वह किस कमरे में पढ़ाई करता था. काफी भाग-दौड़कर उसने कमरे का खंडहर खोजा. उसने सोने वाला कमरा भी दिखाया. महारानी ने बताया कि भूटान में वह जो भी बताता था, उसकी सारी बातें सच निकल रही हैं.
बकौल नालंदा पुलिस अधीक्षक- तीन साल के बच्चे ने नालंदा विश्वविद्यालय से पूर्व जन्म से संबंधित यादों को लेकर जिस तरह से जानकारी दी वह आश्चर्यजनक है. बता दें कि नालंदा खंडहर में जब भूटान की राजमाता अपने परिवार के साथ पहुंची तो उनके नाती जिग्मी जिटेन ओंगचुक खंडहर में मौजूद विभिन्न अवशेषों और संरचनाओं के बारे में बताने लगे.
वह कहता है कि भगवान बुद्ध की कृपा से उसका पुनर्जन्म राज घराने में हुआ है. केवल तीन वर्ष का होने के बाद भी विश्वविद्यालय की सभी जगहों और कार्यकलापों के बारे में बच्चे द्वारा दी गई जानकारी से सभी दंग रह गए हैं.
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त काल के दौरान 5वीं सदी(413 ईस्वीं) में हुई थी. 1193 में आक्रमण के बाद इसे नेस्तनाबूत कर दिया गया था. इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमार गुप्त प्रथम 450-470 को प्राप्त है. यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था. उस समय इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब 10,000 और अध्यापकों की संख्या 1500 थी.
नालंदा विश्वविद्यालय का मुख्य उद्देश्य- ऐसी पीढियों का निर्माण करना था, जो न केवल बौद्धिक बल्कि आध्यात्मिक हों. बिहार सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीन महत्व को देखते हुए इसकी पुनर्स्थापना के लिए 2007 में एक्ट बनाया. बाद में केंद्र सरकार से नालंदा विश्वविद्याल को लेकर कानून बनाने का अनुरोध किया गया.
2010 में केंद्रीय कानून बन जाने के बाद राज्य सरकार का कानून खत्म हो गया और यह केंद्र सरकार के अधीन हो गया. दस साल पहले पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने नालंदा विवि के पुनर्निमाण के बारे में सोचा था. 1 सितंबर 2014 को प्राचीन और आधुनिक भारत के इतिहास के बीच ज्ञान की कड़ी जुडी. लगभग 833 साल बाद नालंदा विश्वविद्यालय (एनयू) के पुनर्जन्म से यह संभव हो सका.
दिसंबार 11, 2016 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पत्र लिख कर कहा कि केंद्र सरकार नालंदा विश्वविद्यालय के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ न करे. इसका असर विश्वविद्यालय के संचालन और कार्यकलाप पर पड़ सकता है. विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए केंद्र गंभीरता से ही कोई निर्णय ले.
नवंबर 20, 2016 : नालंदा विश्वविद्यालय के चांसलर पद को लेकर अमर्त्य सेन की चिट्ठी के बाद विवाद गहरा गया है. उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय की गर्वनिंग बोर्ड को चिट्ठी लिखकर कहा है कि सरकार नहीं चाहती कि मैं इस पद पर आगे भी बना रहूं, इसलिए मैं यहां नहीं रुक सकता.