26 जनवरी 1950 का दिन भारत में तमाम बदलाव लेकर आया. भारत का नया संविधान प्रभाव में आ चुका था. गर्वनर जनरल सी राजगोपालाचार्य को नए राष्ट्रपति को जगह देनी थी क्योंकि वह ब्रिटिश राज के प्रमुख के रूप में काम कर रहे थे.
जरूरत थी एक राष्ट्रपति को चुनने की. खबरों के अनुसार, इस पद के लिए नेहरू की पहली पसंद थे सी राजगोपालचार्य. चेन्नई के इस राजनीतिज्ञ को लोग राजाजी के नाम से जानते थे. उस समय वह खुद गर्वनर जनरल थे. एक तरह से राष्ट्रपति की हैसियत से ही वह काम कर रहे थे. लेकिन पटेल के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था.
राजाजी और नेहरू सेकुलर भारत का सपना पूरा करना चाहते थे. लेकिन पटेल इस विचार से सहमत नहीं थे. पटेल ने एक बार राजाजी को आधा मुसलमान और नेहरू को कांग्रेस का एकमात्र राष्ट्रवादी मुस्लिम कह डाला था लेकिन बहुत से कांग्रेसी राजाजी के नाम पर इसलिए सहमत नहीं थे क्योंकि राजाजी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध ही नहीं किया था बल्कि खुद को उससे अलग भी कर लिया था.
एक ब्लॉग के अनुसार, पटेल की पसंद राजेंद्र प्रसाद थे. वह उन्हीं की तरह सोशल कंजर्वेटिव भी थे. राष्ट्रपति बनने के बाद तमाम बिंदुओं पर राजेंद्र प्रसाद ने बहुत कुछ ऐसा किया जो जवाहर लाल नेहरू नहीं चाहते थे. हिन्दू कोड बिल में महिलाओं को अधिकार देने पर अगर असहमति की दरार चौड़ी होती गई तो सोमनाथ मंदिर के मामले पर दोनों बिल्कुल अलग बिंदु पर खड़े नजर आए. पटेल के निधन के बाद उन्होंने मंदिर के फिर से निर्माण में अपनी ओर से सहयोग भी दिया.
कहा जाता है कि राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति बनवाकर पटेल चाहते थे कि नेहरू की ताकत को संतुलित करके रखा जा सके. राष्ट्रपति पद के चुनाव के एक साल बाद कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के समय पटेल फिर ताल ठोंककर नेहरू के सामने खड़े थे. उन्होंने फिर अपना उम्मीदवार आगे कर दिया. बताया जाता है कि उन्होंने टिप्पणी की राष्ट्रपति पद के चुनाव में नेहरू के एक गाल पर थप्पड़ पड़ा है और अब दूसरे गाल की बारी है.
राष्ट्रपति पद के लिए जब वल्लभ भाई पटेल अपना नाम तय कर चुके थे तो उन्होंने गोपनीय तरीके से अपने समर्थकों को इस बारे में अवगत करा दिया था. सार्वजनिक तौर पर उन्होंने इसके बारे में कुछ नहीं कहा. ब्लॉग में लिखी एक रिपोर्ट के मुताबिक, नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद को 10 सिंतबर 1949 को एक पत्र लिखाकर जता दिया कि उनकी इच्छा राजाजी को ही राष्ट्रपति के रूप में बरकरार रखने की है, वह नहीं चाहेंगे कि कोई और दूसरा राष्ट्रपति बने, इससे बदलाव संबंधित जटिलताएं भी आएंगी.
इसी संदर्भ में राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू को जवाबी पत्र लिखकर राष्ट्रपति पद की दौड़ से हटने से मना कर दिया. पटेल चुप थे. नेहरू को अंदाजा नहीं था कि क्या चल रहा है. उन्होंने पटेल को शिकायती पत्र लिखते हुए कहा कि वह प्रसाद को समझाएं, क्योंकि ज्यादातर कांग्रेस चाहते हैं कि राजेंद्र बाबू राष्ट्रपति बनें.
05 अक्टूबर को नेहरू ने सांसद की मीटिंग बुलाई, जिसमें उन्होंने राजाजी के नाम का प्रस्ताव रखा लेकिन सांसदों ने भारी मत से उनके इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. राजाजी ने संन्यास की घोषणा कर दी, हालांकि बाद उन्हें नेहरू मंत्रिमंडल में विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया. पटेल के निधन के बाद वह गृह मंत्री बने.