आज टीपू सुल्तान की 268वीं जयंती है. उनका जन्म 10 नवंबर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली (यूसुफ़ाबाद) में हुआ था. कर्नाटक में पिछले साल की तरह इस साल भी टीपू सुल्तान की जयंती पर विवाद बढ़ता नजर आ रहा है. आइए जानते हैं कर्नाटक के उस गांव के बारे में जो टीपू सुल्तान से नफरत करता है.
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इस गांव का नाम है मेलकोट. जो बंगलुरु से 100 किमी की दूरी पर स्थित है. कहा जाता है कि हर दिवाली को यहां आयंगार ब्राह्मण समुदाय के लोग दिवाली नहीं मनाते हैं.
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इसके पीछे मेलकोट के रहने वाले श्रीनिवास बताते हैं कि दिवाली के दिन टीपू सुल्तान ने 800 ब्राह्मणों को फांसी पर चढ़ाया था और वह ब्राह्मण हमारे पूर्वज थे. फांसी पर चढ़ाए जाने की वजह पूछने पर श्रीनिवास कहते हैं कि टीपू सुल्तान ने इसलिए ब्राह्मणों को मारा क्योंकि उन्होंने धर्म परिवर्तन करने से मना कर दिया था.
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वहीं, इस बारे में गीता का कहना है कि इस मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है और अब इसका राजनीतिक इस्तेमाल होता है. पहले जो हुआ उससे आज के जनरेशन का क्या लेना देना है.
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मेलकोट के ही रहने वाले संस्कृत स्कॉलर मा अलवर टीपू सुल्तान के नाम पर राजनीतिकरण को गलत बताते हैं. वे कहते हैं कि टीपू सुल्तान बेहद महत्वकांक्षी शासक था, वह किसी भी हाल में अपने देश को बचाना चाहता था इसलिए उसके दौर में कई हत्याएं हुई.
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कुर्ग का उदाहरण देते हुए मा अलवर आगे बताते हैं टीपू सुल्तान ने कुर्ग में भी कई हिन्दुओं का धर्मांतरण इस्लाम में किया था. इसलिए आज भी वहां कई मुस्लिम ऐसे हैं जो टीपू सुल्तान पर नाराजगी जाहिर करते हैं.
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वहीं, टीपू सुल्तान के हिंदू धर्म के प्रति उदारता के भी कई उदाहरण मिलते हैं. इतिहासकार मानते हैं कि टीपू सुल्तान धर्मनिरपेक्ष शासक था. उसने कई मंदिरों में दान दिया. मेलकोट के रंगास्वामी मंदिर में आज भी उसका दान दिया हुआ घंटा और ड्रम आज भी मौजूद हैं.