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आचार्य रजनीश ओशो: बोर होने पर इस महंगी चीज पर खर्च करते थे पैसा

आचार्य रजनीश ओशो: बोर होने पर इस महंगी चीज पर खर्च करते थे पैसा
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अध्यात्म की  दुनिया में नया विचार, नई सोच और नये नजरिये से आए संत ओशो का आज जन्मदिन है. कभी विरोध झेलने वाले ओशो के आज भी पूरी दुनिया में चाहने वाले हैं. उनका जन्म 11 दिसंबर, 1931 को मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में हुआ था. जन्म के वक्त उनका नाम चंद्रमोहन जैन था. उनके जीवन से जुड़े कई ऐसे पहलू हैं, जो आज भी अनछुए हैं. आइए जानें-
आचार्य रजनीश ओशो: बोर होने पर इस महंगी चीज पर खर्च करते थे पैसा
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ओशो ने भारत ही नहीं पश्च‍िमी देशों में भी अध्यात्म के प्रति लोगों को जागरूक किया. ओशो ने 19 जनवरी 1990 को पुणे स्थित अपने आश्रम में देह त्याग दिया था. जिसके बाद पूरी दुनिया में इस पर चर्चा हुई थी.
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उन्होंने अपनी पढ़ाई जबलपुर में पूरी की और बाद में वो जबलपुर यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के तौर पर काम करने लगे. लेकिन, उनका मन अध्यात्म की ओर ज्यादा लगता था.
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नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने नवसंन्यास आंदोलन की शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने खुद को ओशो कहना शुरू कर दिया.
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साल 1981 से 1985 के बीच रजनीश ओशो अमेरिका चले गए. अमेरिकी प्रांत ओरेगॉन में उन्होंने आश्रम की स्थापना की.
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ये आश्रम 65 हजार एकड़ में फैला था. ओशो का अमरीका प्रवास बेहद विवादों से भरा रहा. महंगी घड़ियाें, रोल्स रॉयस कारों, डिजाइनर कपड़ों की वजह से वे हमेशा चर्चा में रहे.
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एक वेबसाइट के अनुसार, उनकी एक शिष्या ने अपनी किताब में जिक्र किया था कि ओशो को नई कारें बोरियत मिटाने के लिए चाहिए होती थी. उनके मुताबिक एक बार ओशो ने उनसे 30 नई रॉल्स रॉयस गाड़ियों की मांग की, जबकि उनके पास पहले से ही 96 कारे थीं.

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ओरेगॉन में ओशो के शिष्यों ने उनके आश्रम को रजनीशपुरम नाम से एक शहर के तौर पर रजिस्टर्ड कराना चाहा लेकिन स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया. इसके बाद 1985 वे भारत वापस लौट आए.
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भारत लौटने के बाद ओशो पुणे के कोरेगांव पार्क इलाके में स्थित अपने आश्रम में लौट आए. 19 जनवरी 1990 को उनकी मृत्यु हो गई.
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उनकी मौत के बाद पुणे आश्रम का नियंत्रण ओशो के करीबी शिष्यों ने अपने हाथ में ले लिया. आश्रम की संपत्ति करोड़ों रुपये की मानी जाती है और इस बात को लेकर उनके शिष्यों के बीच विवाद भी है. हालांकि अभी भी ओशो की मौत को लेकर रहस्य बना हुआ है.
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