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एजुकेशन

3 प्रीलिम्स, 3 मेन्स, 3 इंटरव्यू, ऐसे इंजीनियर से IAS टॉपर बनी ये लड़की

3 प्रीलिम्स, 3 मेन्स, 3 इंटरव्यू, ऐसे इंजीनियर से IAS टॉपर बनी ये लड़की
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राजस्थान के जयपुर की रहने वाली आश‍िमा मित्तल ने UPSC परीक्षा 2018 में 12वीं रैंक हासिल की. आईआईटी मुंबई की टॉपर और गोल्ड मेडलिस्ट आश‍िमा ने लाखों की नौकरी छोड़कर UPSC की तैयारी शुरू की थी. जानिए किस तरह उन्होंने तीन बार प्री लिम्स, मेन्स और इंटरव्यू के बाद अपना मुकाम पाया. आश‍िमा की स्ट्रेटजी यहां पढ़ें.
3 प्रीलिम्स, 3 मेन्स, 3 इंटरव्यू, ऐसे इंजीनियर से IAS टॉपर बनी ये लड़की
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बचपन से पढ़ाई में अव्वल रहीं आशि‍मा ने आईआईटी बॉम्बे से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. एक वीडियो इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने आईआईटी में चार साल पढ़ाई की और कॉलेज लाइफ में बहुत कुछ सीखा. उन्हें आईआईटी बॉम्बे में गोल्ड मेडल से नवाजा गया.

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वो बताती हैं कि इसके बाद मैंने प्राइवेट नौकरी करने की सोची ताकि आगे कभी अफसोस न हो कि मैंने ये काम नहीं किया. लेकिन इस नौकरी के दौरान मन में कहीं आईएएस बनने का सपना था. मेरे घरवाले भी मेरे लिए यही सपना देख रहे थे. 
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जब पहली बार मिली हार

आशिमा ने बताया कि उस जॉब में मुझे लेगा कि इसके लिए मैं नहीं बनी हूं. मेरा दिल वहां खुश नहीं था. बस तभी नौकरी छोड़कर यूपीएससी की तैयारी में जुट गई. आत्मविश्वास मुझमें कूट-कूटकर भरा था. 2015 में पहला अटेंप्ट दिया, सब सोचते थे कि क्लीयर कर लेंगे क्योंकि प्री लिम्स और मेन्स के बाद इंटरव्यू की कॉल आ गई थी, लेकिन अफसोस इसमें फाइनल लिस्ट में 10 नंबर से रह गई थी.
 
3 प्रीलिम्स, 3 मेन्स, 3 इंटरव्यू, ऐसे इंजीनियर से IAS टॉपर बनी ये लड़की
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फेलियर से हुई डिप्रेस

आश‍िमा जब पहली बार में इंटरव्यू में रह गईं तो इसने उन्हें बहुत डिप्रेस कर दिया. वो बताती हैं कि तब मैं दो से तीन दिन तक रोती रही थी. मेरी दादी की तबीयत ठीक नहीं थी, एक माह के बाद उनका देहांत हो गया. मेरे पेरेंट्स भी परेशान थे. ये कठिनाई भरा समय था.
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'एक घटना ने बदलकर रख दिया'

वो कहती हैं कि हमारी लाइफ में हम हमेशा जीतते नहीं है. हार से हम दो साल खो देते हैं, बहुत नुकसान होता है लेकिन इससे उबर पाना बड़ी कला होती है. वो बताती हैं कि किस तरह वो इस गम से उबरकर दोबारा तैयारी में जुट पाईं. आगे पढ़ें. 
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आशिमा बताती हैं कि वो पहले साल दिल्ली से तैयारी कर रही थी. वो यहां से एंथ्रोपॉलाजी की पढ़ाई कर रही थीं क्योंकि ये उनका ऑप्शनल विषय था. इसमें मास्टर्स डिग्री करने  लगी. वो बताती हैं कि इसके एक प्रोजेक्ट के दौरान वो दिल्ली के स्लम कठपुतली कॉलाेनी में विजिट कर रही थीं. जहां देखा कि एक छोटे से घर में एक महिला थी और भीतर करीब तीन साल का बच्चा लेटा था जो कि ठीक से हिल-डुल भी नहीं पा रहा था. मैंने उसकी मां से पूछा कि बच्चे को क्या हुआ, तो उसका जवाब था 'पता नहीं.'

फोटो: अपने परिवार के साथ आशिमा.
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वो महिला अपने बच्चे को लेकर कभी अस्पताल तक नहीं गई थी, उसे बच्चे की बीमारी के बारे में कुछ भी पता नहीं था. मेरे लिए ये चौंकाने वाली बात थी. मैं एक अच्छे परिवार से आती हूं जहां मां प्रोफेसर और पिता बिजनेसमैन हैं, मेरे लिए ये बड़ी बात थी कि एक मां को पता ही नहीं वो अस्पताल तक नहीं जा सकी. मैंने अपनी मां से बात की, उन्होंने कहा कि बेटा अगर भगवान ने तुम्हें उनके घर तक भेजा है तो जरूर तुम्हें किसी कारण से भेजा होगा. मैंने उस बच्ची को डॉक्टर तक पहुंचाया और अपने साथियों के साथ मिलकर उसका इलाज सुनिश्चित कराया. इस घटना के बाद मैं दोबारा तैयारी करने लगी, मुझे पता चल गया था कि मदद के लिए आपको उस काबिल बनना होता है.
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'दूसरी बार प्रीलिम्स बहुत अच्छा गया'

वो बताती हैं कि दूसरी बार में प्रीलिम्स में मुझे 140 नंबर मिले. इसके बाद मेन्स में मैंने एंथ्रोपॉलोजी पर ज्यादा ध्यान दिया. उस वक्त निबंध में ज्यादा समय नहीं दे पाई. इंटरव्यू दिया और इस बार मेरा आईआरएस में हो गया. जिसकी ट्रेनिंग चल रही थी.  लेकिन दूसरी बार की गलतियों को सुधारते हुए मैंने तीसरी बार फिर से एग्जाम दिया तो तीसरी बार में मुझे 12वीं रैंक मिली. उस दिन मुझे पापा ने वो पेपर दिखाया जो उन्होंने कई साल पहले लिखा था उसमें लिखा था कि मेरी बेटी टॉप 20 में सेलेक्ट होगी.

(सभी फोटो: FACEBOOK से हैं)
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