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एजुकेशन

101 साल बाद: जलियांवाला बाग तो देखो, यहां चली थीं गोलियां...

101 साल बाद: जलियांवाला बाग तो देखो, यहां चली थीं गोलियां...
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कवि प्रदीप के गीत 'आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दुस्तान की' के एक अंतरे में जलियांवाला बाग ये देखो, यहीं चली थी गोलियां पंक्ति‍यां दी गई हैं. ये वो पंक्त‍ियां हैं जो 13 अप्रैल साल 1919 के उस खौफनाक मंजर को आंखों के सामने फिर से ला देती हैं. सामूहिक नरसंहार की वो घटना जो इतिहास में बदनुमा दाग की तरह है जो पंजाब के जलियांवाला बाग में हुई. जानिए- इस बाग के बारे में, कैसे इस बाग में हजारों मजबूर लोगों को मौत की नींद में सुला दिया गया.
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जलियांवाला बाग पंजाब के अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास का एक छोटा सा बगीचा है. साल 1919 की घटना की याद में अब यहां पर स्मारक बना हुआ है, जिसे देखने दूर दूर से लोग आते हैं. बता दें कि यहां की दीवारों पर गोलियों के निशान आज भी देखे जा सकते हैं.
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इस स्मारक में लौ के रूप में एक मीनार बनाई गई है जहां शहीदों के नाम अंकित हैं. मौत और ब्रिटिश राज के आतंक का मंजर देखने वाला वो कुआं भी इस परिसर में मौजूद हैं जिसमें उस दिन गोलीबारी से बचने के लिए लोग कूद गए थे.
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इस दर्दनाक घटना को इत‍िहास में दर्ज कराने के लिए यहां स्मारक बनाया गया है. इसे बनाने के लिए आम जनता से चंदा इकट्ठा करके इस जमीन के मालिकों से करीब 5 लाख 65 हजार रुपए में इसे खरीदा गया था.

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साल 1997 में महारानी एलिजाबेथ ने इस स्मारक पर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी. बता दें कि साल 2013 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर आए थे. उन्होंने यहां की विजिटर्स बुक में लिखा भी कि ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी.
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ऐसे हुआ था हमला

13 अप्रैल बैसाखी का दिन था जब किसान हिंदू और सिक्खों के जत्थे अमृतसर पहुंचे थे. नए रंग- बिरंगे कपड़ों में त्योहार मनाने आए बच्चे और उनके परिवारों ने शायद ही कभी सोचा हो कि ये दिन उनकी जिंदगी के सारे रंग छीन लेगा.

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हुआ यूं था कि वो लोग बैसाखी के दिन गोल्डन टेंपल में दर्शन के बाद धीरे-धीरे लोग जलियांवाला बाग में जुटने लगे. कुछ वक्त में हजारों की भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी. यह बाग चारों ओर से घिरा हुआ था अंदर जाने का केवल एक ही रास्ता था. जनरल डायर ने अपने सैनिकों को बाग के एकमात्र तंग प्रवेश मार्ग पर तैनात किया था.
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जनरल डायर पहले से ही जानता था कि बाग में लोग जमा होने वाले हैं. उसने मौका देखा और अपने सैनिकों को लेकर पहुंच गया. जिसके बाद डायर ने बिना किसी चेतावनी के सैनिकों को गोलियां चलाने का आदेश दिया और चीखते, भागते निहत्थे बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों की भीड़ पर 10 से 15 मिनट में 1650 राउंड गोलियां चलवा दीं.

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लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे थे. यहां तक कि लोग गोलियों से बचने के लिए बाग में मौजूद कुएं में भी कूद गए थे. बताया जाता है कि कुएं से कई लाशें निकाली गई थीं. जिसमें बच्चे, बूढ़े, महिलाएं, पुरुष शामिल थे. इसी के साथ कई लोगों की जान भगदड़ में कुचल जाने की वजह से चली गई थी.

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एक रिपोर्ट के अनुसार डायर ने तब तक गोलीबारी नहीं रुकवाई जब तक गोलियां खत्म नहीं हो गईं. उस समय 1650 राउंड गोलियां चलाई गई थीं. इसके बाद पूरे बाग में लाशें ही लाशें थीं. ये दिल दहलाने वाला दृश्य था. इस स्मारक के जर्रे जर्रे से आज भी आजादी की लड़ाई में जान देने वालों के बलिदान की निशानियां वो गोली के निशान मौजूद हैं.
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