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...और ऐसे राजपूताना बन गया राजस्थान, ये है इतिहास

...और ऐसे राजपूताना बन गया राजस्थान, ये है इतिहास
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राजस्थान अपनी शानदार संस्कृति व गौरवमयी इतिहास के लिए जाना जाता है. फिलहाल आन, बान, शान शौर्य, साहस, कुर्बानी, त्याग और बलिदान और वीरता की भूमि वाला राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए खबरों में है. राजस्थान के चुनावों की कहानी तो आपने कई बार पढ़ी होगी, लेकिन आज हम आपको बताएंगे राजस्थान की कहानी...
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आजादी से पहले राजस्थान को राजपूताना के नाम से जाना जाता है. जार्ज थॉमस ने साल 1800 ईसा में 'राजपूताना' नाम दिया था. कर्नल जेम्स टॉड ने 1829 ईसा में अपनी पुस्तक 'द एनाल्स एंड एक्टीविटीज ऑफ राजस्थान' में किया. कर्नल जेम्स टॉड ने राजस्थान को दी सेन्ट्रल वेस्टर्न राजपूत स्टेट्स ऑफ इंडिया कहा है.
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भौगोलिक विषमताओं और प्राकृतिक चुनौतियों के बावजूद राजस्थान लगातार प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहा है. राजपूताना में 23 रियासतें, एक सरदारी, एक जागीर और अजमेर-मेवाड़ का ब्रिटिश जिला शामिल थे. शासक राजकुमारों में अधिकांश राजपूत थे.

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कहा जाता है कि जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर, जयपुर और उदयपुर सबसे बड़े राज्य थे. विभिन्न चरणों में इन राज्यों का एकीकरण हुआ, जिसके परिणामस्वरूप राजस्थान राज्य अस्तित्व में आया. दक्षिण-पूर्व राजपूताना के कुछ पुराने क्षेत्र मध्य प्रदेश और दक्षिण-पश्चिम में और कुछ क्षेत्र अब गुजरात का हिस्सा हैं.
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वैसे तो 15 अगस्त, 1947 को ही समस्त रियासतें भारतीय संघ से संबंधित घोषित हो चुकी थीं, लेकिन समस्त रियासतों के भारत में विलय और इनके एकीकरण की प्रक्रिया पांच चरण में साल 1947 के अप्रैल तक पूरी हुई.
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विलय के पहले चरण में मत्स्य संघ का निर्माण अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली को मिलाकर किया गया और इसका उद्घाटन 17 मार्च, 1948 को किया गया.
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राजस्थान संघ का उद्घाटन 25 मार्च, 1948 को हुआ, जिसमें बांसवाड़ा, बूंदी, डूंगरपुर, झालावाड़, किशनगढ़, प्रतापगढ़, शाहपुरा, टोंक, कोटा सम्मिलित थे. वहीं कोटा को इस संघ की राजधानी बनाया गया. कोटा नरेश को राजप्रमुख पद पर और श्री गोकुल लाल असावा को मुख्यमंत्री पद पर आसीन किया गया.
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उसके बाद उदयपुर महाराणा ने संघ में सम्मिलित होने का निर्णय लिया. उदयपुर महाराणा को इस राजस्थान संघ का राजप्रमुख और कोटा नरेश को उप राजप्रमुख बनाया गया. राजस्थान संघ की स्थापना के साथ ही बीकानेर, जैसलमेर, जयपुर और जोधपुर जैसी बड़ी रियासतों के संघ में विलय का रास्ता साफ हो गया.
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30 मार्च, 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इसका विधिवत् उद्घाटन किया. बता दें कि अब प्रदेश में हर साल 30 मार्च को राजस्थान दिवस के रूप में मनाया जाता है. जयपुर महाराजा को राज प्रमुख, कोटा नरेश को उप राजप्रमुख के पद का भार सौंपा गया और हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में मंत्रिमंडल बनाया गया.
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वहीं मार्च, 1952 में राजस्थान विधानसभा अस्तित्व में आई, लेकिन राजस्थान की जनता ने रियासत काल में ही संसदीय लोकतंत्र का अनुभव कर लिया था. 26 जनवरी 1950 को भारत सरकार की ओर से राजस्थान को राज्य की मान्यता दी गई और इसकी राजधानी जयपुर को बनाया गया.
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