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IIT-K से इंजी‍नियरिंग, रेलवे में अफसर, US से लाखों का ऑफर छोड़ बने IAS

IIT-K से इंजी‍नियरिंग, रेलवे में अफसर, US से लाखों का ऑफर छोड़ बने IAS
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कहते हैं कि अगर किसी पत्थर को बेहतर तरीके से तराशा जाए तो उसे किसी भी आकार में ढाला जा सकता है. लेकिन अगर यही काम एक मां पूरी श‍िद्दत से करे तो वो अपने बच्चे को क‍िसी भी मुकाम तक पहुंचा सकती है. UPSC CSE 2019 में AIR 8 यानी आठवीं रैंक पाने वाले अभ‍िषेक सर्राफ की इस पूरी जर्नी के पीछे उनकी मां का ही रोल है. Aajtak.in से बातचीत में उन्होंने कहा कि मेरा तो सिर्फ नाम है, असल में इसका पूरा क्रेडिट तो मेरी मां को जाता है. आइए जानते हैं भोपाल के रहने वाले अभ‍िषेक सर्राफ की पूरी कहानी.
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भोपाल में जन्मे अभ‍िषेक जब महज 10 माह के थे तब उनके सिर से पिता का साया उठ गया था. जब होश संभाला तो मां को दोनों रोल में सामने पाया. महज 28 साल की उम्र में पत‍ि के जाने के बाद उनकी मां प्रत‍िभा के सामने मुश्क‍िलों का पहाड़ आ गया था.
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अभ‍िषेक बताते हैं कि मम्मी हाउस वाइफ थीं और मेरे पिता अपने फैमिली बिजनेस में थे. पापा के जाने के बाद हमारी आर्थ‍िक स्थ‍ित‍ि अचानक से बहुत बदल गई थी. ऐसे में मेरी मां को उनके मायके यानी मेरे ननिहाल से नाना-नानी, मामा-मामी और मौसी सभी से काफी सहयोग मिला.
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मां ने हम दोनों भाइयों को पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. दिन-रात मेहनत करके कम से कम खर्च में भी वो हमें बेहतर श‍िक्षा दे रही थीं. उनका सपना था कि हम दोनों भाई एक दिन बड़े होकर उनका सिर गर्व से ऊंचा कर दें. अभ‍िषेक बताते हैं कि हम दोनों भाइयों को मां ने न सिर्फ अच्छी श‍िक्षा दी, बल्क‍ि हमें अच्छा इंसान बनने के सारे संस्कार दिए.
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अभ‍िषेक बताते हैं कि उन्होंने साल 2009 में भोपाल से स्कूलिंग पूरी की. तभी उनका आईआईटी कानपुर में चयन हो गया. उन्होंने यहां सिविल इंजीनियरिंग से यूजी कोर्स में दाख‍िला ले लिया. अभ‍िषेक पढ़ाई में बहुत अच्छे थे तो यहां भी वो हमेशा अव्वल रहे. इंजीनियरिंग के दौरान ही उन्होंने सरकारी खर्च पर अमेरिका जाकर समर इंटर्नश‍िप के दौरान रिसर्च की.
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अभ‍िषेक ने इसके बाद साल 2013 में इंजीनियरिंग सर्विस एग्जाम लिखा. इस परीक्षा में उन्हें ऑल इंडिया 5वीं रैंक आई. इस नौकरी के जरिए उन्होंने रेलवे में बतौर अस‍िस्टेंट एग्जीक्यूटिव इंजीनियर ज्वाइन किया. अभ‍िषेक कहते हैं कि मैं रेलवे में ट्रेनिंग के दौरान ये सोच रहा था कि लाइफ में अभी बहुत कुछ सीखने को है. यहां ऑफिसर ट्रेनी की जॉब के दौरान वो अपने कई बैचमेट से मिले जो कि सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे थे. वो कहते हैं कि उनसे मुझे बहुत मोटिवेशन मिला और मैंने जनरल स्टडीज पढ़ना शुरू किया.
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अभ‍िषेक कहते हैं कि अब मेरे सामने सिविल सर्विस का टारगेट था, क्योंकि मैं सोचता था कि कुछ ऐसा करूं जिससे समाज से ज्यादा से ज्यादा जुड़कर उनके लिए कुछ कर पाऊं. उसका हल मुझे सिविल सर्विस में ही दिख रहा था जिसमें लाइफ लांग सीखने को रहता है, हालांकि रेलवे में भी अवसर है, लेकिन सिविल सर्विस का कांट्रीब्यूशन इससे कहीं ज्यादा है.
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अभ‍िषेक अपनी इस पूरी जर्नी में अपने मामा विनीत कुमार जैन को भी श्रेय देते हैं. वो कहते हैं कि मेरे मामा एक आईपीएस आफसर हैं, वर्तमान में वो मध्यप्रदेश के मुरैना में SP के तौर पर तैनात हैं. उन्होंने भी मुझे न सिर्फ प्रेरित किया बल्क‍ि मुझे मदद भी की.
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इसील‍िए रेलवे की नौकरी छोड़कर अभ‍िषेक UPSC की तैयारी शुरू कर पाए. उन्होंने साल 2016 से ही तैयारी शुरू की थी. उन्होंने पहली बार 2017 में ये एग्जाम लि‍खा. साल 2017 में उनकी 402 रैंक आई थी जिसमें उन्हें इंडियन डिफेंस एकाउंट सर्विस मिली थी लेकिन उससे उन्होंने 15 दिन में रिजाइन कर दिया.
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फिर साल 2018 में उनकी 248 रैंक आई थी, जिसके बाद उन्होंने आईआरएस कस्टम सर्विस में ज्वाइन किया. अभ‍िषेक वहां 2018 की ज्वाइनिंग के पहले 2019 का मेंस दे चुके थे, फिर एकेडमी जाकर वहां से लीव ली. इसके बाद 30 जुलाई को उन्होंने यूपीएससी इंटरव्यू दिया जिसमें उनकी 8वीं रैंक आई. अभ‍िषेक कहते हैं कि इस पूरी जर्नी में मेरे भाई और भाभी का भी बड़ा रोल है. उन्होंने घर की कोई प्रॉब्लम मुझ तक नहीं पहुंचने दी, वो दोनों खुद ही सुलझा लेते थे. मां भी मुझे हमेशा कहती रहीं कि जब तक चाहो एग्जाम लिखो, टेंशन मत लो. आज मैं कह सकता हूं कि मेरी सफलता असल में मेरे परिवार के सहयोग का फल है.
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