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मैं विकास दुबे हूं, कानपुर वाला...इनसे बदनाम ना होगा 'नामवालों' का शहर

मैं विकास दुबे हूं, कानपुर वाला...इनसे बदनाम ना होगा 'नामवालों' का शहर
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मैं विकास दुबे हूं, कानपुर वाला... आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मुख्य अभ‍ियुक्त मोस्टवांटेड गैंगस्टर ने उज्जैन पुलिस के श‍िकंजे में आते ही चिल्लाकर ये बोला. इसके बाद देश भर के टीवी चैनलों में विकास दुबे छा गया. तो वहीं विकास दुबे के साथ कानपुर भी सोशल मीडिया में ट्रेंड करने लगा. दुर्दांत अपराधी से उत्तर प्रदेश के इस जिले की छवि पर भले ही सवाल उठें लेकिन हकीकत में इस शहर का इतिहास बेहद खास है. इस शहर ने देश की राजनीति से लेकर मीडिया, फिल्म इंडस्ट्री और उद्योगजगत को नामी हस्त‍ियां दी हैं. आइए जानें इस शहर का इतिहास.
मैं विकास दुबे हूं, कानपुर वाला...इनसे बदनाम ना होगा 'नामवालों' का शहर
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कानपुर शहर के बारे में माना जाता है कि इस शहर की स्थापना सचेन्दी राज्य के राजा हिन्दू सिंह ने की थी. पहले इस शहर का मूल नाम 'कान्हपुर' था. कुछ लोग इस शहर को महाभारत के पात्र कर्ण के नाम से भी जोड़ते हैं. नवाबों के शासन से लेकर अंग्रेजी सत्ता तक इस शहर ने तमाम रंग देखे, लेकिन कभी अपनी पहचान धूमिल नहीं होने दी. अवधी और मगही मिश्रि‍त बोली के साथ कानपुर की बोली का अपना अलग अंदाज है, जो आजकल टीवी और बॉलीवुड वालों को खूब लुभा रहा है.
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बताते हैं कि अग्रेजों ने इस शहर की भौगोलिक स्थ‍िति का खूब फायदा उठाया. गंगा के तट पर स्थित होने के कारण यहां यातायात और उद्योग धंधों की सुविधा थी. इसलिए अंग्रेजों ने यहां अपनी छावनी बनाई, फिर धीरे धीरे उद्योग धंधों को जन्म दिया. इस नगर का विकास कुछ ऐसे ही शुरू हुआ था.
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सबसे पहले ईस्ट इंडिया कंपनी ने कानपुर में नील का व्यवसाय शुरू किया. साल 1832 में ग्रैंड ट्रंक रोड बना और कानपुर इलाहाबाद फिर लखनऊ, कालपी आदि शहर जुड़े, फिर ऊपरी गंगा नहर का निर्माण भी हो गया. यातायात बढ़ा तो व्यापार भी तेजी से बढ़ा लेकिन अंग्रेजों की गुलामी इस शहर को ज्यादा बर्दाश्त न हुई.
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1857 के स्वतंत्रता संग्राम में मेरठ से भड़की विद्रोह की चिन्गारी से कानपुर भी सुलगने लगा था. यहां नाना साहब की अध्यक्षता में वीरों ने कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया. लेकिन लीडरश‍िप की कमी से विद्रोह दब गया. फिर शांति हुई तो साल 1859 में यहां रेलवे लाइन जुड़ी. अब छावनी की जरूरतों के लिए सरकारी चमड़े का कारखाना खुला. फिर सूती वस्त्र बनाने की पहली मिल, फिर रेलवे के लिए नए-नए कई कारखाने खुलते गए. बड़े उद्योग-धंधों में सूती वस्त्र उद्योग प्रधान था. चमड़े के कारोबार का यह उत्तर भारत का आज भी प्रधान केंद्र है.
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तस्वीर में दिख रहे कानपुर मेमोरियल चर्च हो या यहां का रेलवे स्टेशन, अंग्रेजों की बनाई इमारतों के अलावा यहां का नानाराव पार्क (bithoor), कांच का मन्दिर, श्री हनुमान मन्दिर पनकी, सिद्धनाथ मन्दिर, जाजमऊ आनन्देश्वर मन्दिर परमट, सिद्धेश्वर मन्दिर चौबेपुर के पास स्थ‍ित है. कानपुर आईआईटी के अलावा हरकोर्ट बटलर प्रौद्योगिकी संस्थान (एच.बी.टी.आई.), चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय यहां श‍िक्षा के खास केंद्र हैं.
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कभी कानपुर को एशिया का मैनचेस्टर कहा जाता रहा है. इस शहर ने हर क्षेत्र में नामी हस्त‍ियां दी हैं. वर्तमान राष्ट्रपत‍ि रामनाथ कोविंद भी कानपुर के मूल निवासी हैं. उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा था कि कानपुर के लोग शुरू से ही तकनीक को पसंद करने वाले रहे हैं. कानपुर शहर परंपरा और तकनीक का बेजोड़ उदाहरण है.
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कॉमेडी कलाकार देने में भी कानपुर काफी आगे रहा है. राजू श्रीवास्तव भी एक ऐसा ही नाम है, आज भी उनकी पहचान हास्य किरदार गजोधर के रूप में होती है. कानपुर से उनके बाद अनिरुद्ध मदेसिया, अन्नू अवस्थी जैसे कई हास्य कलाकार निकले. इन दिनों टेलिविजन या फिल्मों में कानपुर का परिवेश और भाषा भी खूब दिखाए जा रहे हैं. टीवी पर भाभी जी घर पर हैं सीरियल हो या तनु वेड्स मनु जैसी सुप‍रहिट फिल्में कानपुर के हास्य ने इन्हें खूब चर्चित बनाया.
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बॉलीवुड को अपने गीतों से पहचान देने वाले अभ‍िजीत भट्टाचार्य से लेकर कानपुर ब्वॉय के तौर पहचाने जाने वाले गायक अंकित तिवारी तक इस शहर ने देश को नामी गायक भी दिए हैं. फिल्म आश‍िकी टू के गीत सुन रहा है न तू... से अंकित तिवारी ने इंडस्ट्री में अपनी पहचान कायम की है. कानपुर के नामों की बात करें तो मीडिया जगत और राजनीति के जाने माने चेहरे गणेश शंकर विद्यार्थी हों या वर्तमान में आम आदमी पार्टी से भाजपा ज्वाइन करने वाली विधयक शाजिया इल्मी हों, कानपुर के ऐसे नामों की लम्बी फेहरिस्त है. किसी गैंगस्टर और अपराधी के जुबान पर कानपुर का नाम आना शहर पर चढ़ी बड़े नामों की चमक को धूमिल नहीं कर सकता.
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