सुशांत सिंह राजपूत जैसे बॉलीवुड सितारे की आत्महत्या की घटना के बाद पूरा देश स्तब्ध है. इतनी दौलत-शोहरत कमाने वाला सितारा क्यों इस तरह दुनिया को अलविदा कह गया. मनोचिकित्सकों की राय में सुसाइडल थॉट्स (तीव्रता से आत्महत्या के विचार आना) एक मानसिक समस्या है. ऐसे मरीजों को ठीक करने के लिए दुनिया में ECT जैसी थेरेपी बेहतर तकनीक साबित हुई है. मनोचिकित्सकों की राय में सुसाइडल थॉट से पीड़ित लोगों पर ये थेरेपी सबसे अच्छी साबित होती है. आइए जानते हैं कि क्या है ये थेरेपी.
इलेक्ट्रोकॉनवल्सिव थेरेपी (Electroconvulsive therapy) (ECT) को पहले इलेक्ट्रोशॉक थेरेपी के रूप में जाना जाता था. ये एक मनोरोग उपचार है, जिसमें मानसिक विकारों से पीड़ित रोगियों को विद्युत तरंगों के जरिये ठीक किया जाता है. इसमें आमतौर पर, मरीज के मस्तिष्क को 800 मिली एंपियर का डायरेक्ट करंट 100 मिली सेकंड से लेकर 6 सेकंड तक दिया जाता है.
ईसीटी की प्रक्रिया उन रोगियों पर एप्लाई की जाती है जो मेजर डिप्रेसिव स्टेज में होते हैं. जिनमें सुसाइड तक के विचार आने लगते हैं. IHBAS (इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज) के मनोचिकित्सक डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि इस थेरेपी का इस्तेमाल दुनिया के कई देशों में किया जाता है. तीव्र सुसाइडल थॉट्स जैसी मेडिकल इमरजेंसी के दौरान इसका उपचार काफी प्रभावी होता है.
डॉ ओमप्रकाश का कहना है कि सुसाइडल थॉट्स से जूझ रहे मरीजों को तत्काल मेडिकल इमरजेंसी में लेकर उन पर ये थेरेपी इस्तेमाल की जाए तो उनके ठीक होने के चांसेज 50 प्रतिशत बढ़ जाते हैं. उनका कहना है कि अकसर निजी रूप से चिकित्सा कर रहे मनोचिकित्सक इस थेरेपी की ओर नहीं जाते. लेकिन कई मामलों में डिप्रेशन दवाओं या काउंसिलिंग से कंट्रोल नहीं हो पाता.
किन मरीजों पर इस्तेमाल होती है ये थेरेपी
मनोचिकित्सा में ईसीटी का उपयोग मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर के ट्रीटमेंट के अलावा सीवियर मीनिया या उन मरीजों पर होता है जो मानसिक विकारों के चलते हैलुसिनेशंस (मति भ्रम ) या इल्यूजन (भ्रम) के चरम पर पहुंच जाते हैं. इस थेरेपी के जरिए उन्हें कंट्रोल किया जा सकता है.
साल 2012 में इस थेरेपी के प्रभाव का अध्ययन यूनी पोलर और बाय पोलर डिसऑर्डर के रोगियों पर किया गया. इसके परिणामों में सामने आया कि दोनों ही तरह के रोगियों पर इसका प्रभाव अन्य चिकित्सा उपचारों की अपेक्षा ज्यादा नजर आया.
ईसीटी का व्यापक रूप से इस्तेमाल सिज़ोफ्रेनिया के उपचार में दुनिया भर में किया जाता है, लेकिन उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में यह केवल उपचार सिज़ोफ्रेनिया के प्रतिरोध में तब किया जाता है जब एंटीस्पायोटिक दवाओं से लक्षणों में कमी नहीं नजर आती. शोध में ये भी सामने आया कि यह कैटेटोनिक सिज़ोफ्रेनिया को बढ़ने से रोकने में कारगर है.
डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि सुसाइड को मेडिकल इमरजेंसी की तरह लेना चाहिए. अगर
किसी व्यक्ति को बार-बार सुसाइड करने के विचार आ रहे हैं तो ये एक तरह की
मनोवैज्ञानिक समस्या है. लेकिन अगर ये विचार इतने ताकतवर हो रहे हैं कि
व्यक्ति हर हाल में खुद को नुकसान पहुंचाना चाहता है तो ये एक मेडिकल इमरजेंसी
है. सुशांत के मामले में भी कुछ इसी तरह के कदम उठाए जाने की जरूरत थी.