BPSC: बिहार लोकसेवा आयोग के इस बार के रिजल्ट में सामान्य और आरक्षण कटेगरी का कटऑफ बराबर रहा. वैसे इससे पहले की लोक सेवा आयोग की परीक्षा में तो ओबीसी का कटऑफ सामान्य से ज्यादा रहा है. फिर ऐसे कई उदाहरण दूसरों राज्यो में भी मिल जाएंगे जहां जनरल कैटेगरी से ज्यादा कटऑफ रिजर्वेशन कटेगरी का रहा है. इस तरह देखा जाए तो ये अच्छा संकेत है. इससे साफ पता चलता है कि रिजर्व कैटेगरी का प्रशासनिक सेवा के प्रति आकर्षण बढ़ा है.
बिहार लोकसेवा आयोग की 64वीं परीक्षा पर गौर करें तो रिजल्ट का कटऑफ 535 है. अत्यंत पिछड़ी जाति की कैटेगरी से आने वाले ओम प्रकाश गुप्ता ने इस बार टॉप किया है. लेकिन बिहार लोकसेवा आयोग के नियम के मुताबिक ओम प्रकाश गुप्ता को जनरल कैटेगरी में ही माना जाएगा क्योंकि इन्होंने समान्य वर्ग के कट ऑफ के बराबर नंबर ही हासिल किए हैं. बिहार लोकसेवा आयोग के नियम के तहत कट ऑफ लिस्ट जारी करती है. जिसमें मेरिट लिस्ट में सभी वर्ग के प्रतियोगी शामिल होते हैं.
मेरिट लिस्ट बनने के बाद आरक्षण के तहत प्रतियोगियों का चयन होता हैं. अगर आरक्षित कोटे का प्रतियोगी सामान्य वर्ग के कट ऑफ को पाता है तो उसे सामान्य कैटेगरी में ही जगह मिलती है. हांलाकि इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी हैं जिसमें दोनों तरह की बाते हैं.
जहां तक आरक्षण कैटेगरी की कट ऑफ लिस्ट सामान्य वर्ग से ज्यादा होने की बात है तो विशेषज्ञ बताते हैं कि BPSC का कट ऑफ इस बात पर भी निर्भर करता है कि वेकैंसी कितनी है और कितने प्रतियोगियों ने सफलता पाई. अगर ज्यादा प्रतियोगियों ने सफलता पाई है तो निश्चित रूप से कट ऑफ ज्यादा होगा. इसकी वजह है कि सरकार रोस्टर के हिसाब से वैकेंसी निकलती है और हर कटेगरी की यह वैकेंसी भरनी होती है.
बिहार लोकसेवा आयोग की 63वीं परीक्षा के रिजल्ट की बात करें तो उसमें ओबीसी का कट ऑफ जनरल कैटेगरी से ज्यादा था. उस साल ओबीसी की कैटेगरी का कट ऑफ 595 था जबकि जेनेरल कैटेगरी का 588. उससे भी पहले जाए तो 60, 61, 62वीं परीक्षा एक साथ हुई थी उसके रिजल्ट में भी अनुसूचित जनजाति की महिला कटेगरी की कट ऑफ लिस्ट सामान्य की महिला कैटेगरी से एक नम्बर ज्यादा थी.
आमतौर पर माना जाता है कि चाहे वो कट ऑफ का मामला हो या उम्र या फिर परीक्षा में मिले अवसरों का, आरक्षण के तहत आने वाले प्रतियोगियों को बहुत रियायत मिलती है . वैसे आरक्षण का मूल मकसद सामान्य वर्गों के साथ साथ अन्य वर्गों को आगे बढ़ाना है. इन रिजल्ट्स को देख कर ये अंदाज लगाया जा सकता है कि आरक्षण ने इसमें बहुत बड़ी भूमिका निभाई है.
शैक्षणिक प्रतिस्पर्धा की वजह से आरक्षित वर्ग कहीं न कहीं सामान्य वर्ग पर भारी पड़ रहा है. यही वजह है कि आज देश में 50 प्रतिशत आरक्षण का लाभ लेने के वावजूद 50 प्रतिशत गैर आरक्षित सीटों पर भी अपना मजबूत दावा पेश कर रहे है. बिहार लोकसेवा आयोग के पिछले कई वर्षों के रिजल्ट को देखा जाए तो सामान्य वर्ग की सफलता का प्रतिशत 20-25 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है.
इससे साफ है कि आरक्षण कोटे में आने वाले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और पिछड़ी जातियों में सरकारी नौकरियों का क्रेज काफी बढ़ा है. अच्छी पढ़ाई अच्छा वातावरण इसमें विशेष रूप से लाभदायक रहे हैं.