देश-दुनिया में रहने वाले अधिकांश लोग या तो शहरों में रहते हैं या फिर गांवों में रहते हैं. बाकी बचे लोग कस्बों में रहते हैं. अंग्रेजी में बोले तो "टाउन". कस्बा जो न पूरी तरह गांव होता है और न ही स्मार्ट शहर. अधर में लटका हुआ. जहां की सड़कों पर तांगे भी दिखते हैं और स्कॉर्पियो भी. आगे जाने की चाहत में, मॉल और मल्टीप्लेक्स नहीं तो सिंगल स्क्रीन थियेटर के सहारे ही आगे बढ़ता हुआ. हम भी ऐसे किसी कस्बे का हिस्सा रहे हैं. जब गांव से निकले तो धम्म से यहीं गिरे. कस्बा जहां अक्खड़ता और दबंगई में ठनी रहती है. कस्बा जहां का बेलौस अंदाज हम शहरों में बेइंतहा मिस करते हैं.
इस बार कस्बे की बातें कि क्यों हम आज भी सारी दुनिया की दौलत छोड़ कर वहीं के बेताज बादशाह बने रहना चाहते हैं...
1. वहां मैं नहीं हम चलता है...
वैसे तो हम भोजपुरी भाषी हैं और हमें भोजपुरी इस वजह से भी रास आती है क्योंकि इस भाषा में 'मैं' नहीं होता, और जो मजा खुद को हम कहते हुए परिचय देने का है वो और कहां?
2. भैया कहना यहां फैशन नहीं आदत की बात है...
तो बात ऐसी है कि भैया कस्बे में रहने वाली जनता का तकिया-कलाम है भैया, और इसे लेकर हम कतई शर्मिंदा नहीं होते. अब इस भाई-चारे को समझने के लिए आपको कस्बे का रुख करना होगा.
3. शहर की चिल्ल-पों से राहत...
जहां गांव बेहद शांत रहते हैं वहीं कस्बों में दिन भर काफी चहल-पहल देखने को मिलती है. आस-पास के गांव वालों का बाजार होता है कस्बा, यहां न तो शहरी लूट होती है और न ही मॉल वाला फिक्स प्राइस टैग. यहां सब-कुछ बेहद सुलभ और टैक्स फ्री होता है.
4. कम पैसों में भी फुलटू पार्टी...
यदि आपकी जेब में 100 रुपये का भी पत्ता पड़ा हो तो फिर आपकी चांदी ही चांदी है. गुमटी में मिलने वाली चटपटी पकौड़ी और उम्दा चाय का कहीं कोई जोड़ है भला?
5. सभी एक-दूसरे को जानते हैं...
यहां आप किसी से उलझे नहीं कि आपकी शिकायत तीर से भी तेज रफ्तार में आपके घर पहुंच जाएगी. कहीं किसी के साथ प्यार की पींगें बढ़ रही हों तो फिर खुद समझ लें कि बात कहां तक जा सकती है...
6. कहीं भी लंच और कहीं भी डिनर...
कस्बे में सभी के एक-दूसरे को जानने का सबसे बड़ा फायदा यही होता है. आप शाहनवाज चाचा के यहां सुबह का नाश्ता और लठान वाली चाची के यहां रात का खाना कभी भी जाकर कर सकते हैं. तरह-तरह की टेस्टी डिशेज और वो भी बिना जेब ढीली किए हुए.
7. राजनीति और रैलियों का केंद्र...
चुनावी सरगर्मियों के बीच सारी पार्टियों के जलसे और रैलियां यहीं होती हैं. इसके अलावा वहां के नुक्कड़ पर होने वाली सदाबहार बहसें तो हैं ही.
8. कोचिंग और ट्यूशन का केंद्र...
सुदूर और नजदीकी गांवों से साइकिल पर आने वाले छात्र-छात्राओं के जत्थे को यहां देख कर लगता है जैसे हमारे सपने आज भी महफूज हैं. हमारा भविष्य सुरक्षित है.
9. यहां दोस्ती की नहीं जाती, हो जाती है...
यहां दोस्त बनाने के लिए आपको खास जद्दोजहद नहीं करना होता. साथ पढ़ने-खेलने वाले कब जिगरी दोस्त बन जाते हैं, पता तक नहीं चलता.
10. कस्बा हमें आत्मविश्वास देता है...
कस्बाई सरजमीं और माहौल हमें महानगरों की तमाम परेशानियों से पहले ही दो-चार करा देते हैं. बोले तो कस्बे हमारे लिए ट्रेनिंग ग्राउंड होते हैं और महानगर हमारे लिए फाइनल ड्रिल.
11. आप सामान्य होकर भी चलायमान रह सकते हैं...
शहरों और महानगरों में सामान्य लोगों का गुजारा बड़ा मुश्किल होता है. लोग सामान्य कद-काठी और आम नैन-नक्श वालों को ऐसी नजरों से देखते हैं कि जैसे बंदा किसी दूसरे ग्रह से टपका हो. खुद को देखने के बजाय दूसरों की ही बातों में उलझे रहते हैं.
12. खादी ही यहां का बेस्ट ब्रांड है...
यहां शॉपर्स-स्टॉप और वेस्ट साइड जैसे ब्रांड्स को कोई नहीं जानता. खादी की बुशर्ट और कुर्ते यहां का मुख्य पहनावा होते हैं.
13. ईस्ट या वेस्ट, गमछा इज द बेस्ट...
इतनी सारी बातें कहने के बाद यदि हम गमछे का जिक्र न करें तो यह गमछे के साथ नाइंसाफी होगी. गमछा किसी भी कस्बे का मल्टीपरपज पहनावा है. जरूरत पड़ने पर नहाने के काम आने वाला और जरूरत पड़ने पर ठंड और लू के थपेड़ों से बचाने के काम आने वाला. गमछा आलवेज रॉक्स.