उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जनपद में अचानक निरीक्षण में लगातार प्राइमरी स्कूलों में ताला लटकने से यह बात अब साफ हो गई है कि लाख कोशिश की जाएं, मगर प्राइमरी स्कूलों के शिक्षकों की शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने की फिक्र नहीं है.
पिछले दो दिनों से जारी बीएसए के निरीक्षण में प्राइमरी स्कूलों की बदहाली तो यही बयान कर रही है. डेढ़ दर्जन से ज्यादा स्कूलों के बंद पाए जाने के साथ ही स्कूलों से तीन दर्जन शिक्षकों को बीएसए ने फिलहाल निलंबित कर दिया है.
मजे की बात यह कि ज्यादातर प्राइमरी विद्यालयों में पढ़ रहे बच्चे अपने सूबे के मुख्यमंत्री का नाम नहीं जानते. उन्हें ठीक से 'क ख ग' भी लिखना नहीं आता.
डीईओ के अनुसार, बीएसए के निरीक्षण में 16 विद्यालय बंद मिले, जिसमें प्राथमिक विद्यालय उपरहंका, प्रावि दैज्वारा डेरा, प्रावि परमलाल का डेरा, पूर्व मावि बिलगांव, कन्या प्रावि बिलगांव, नवीन प्रावि बिलगांव, प्रावि बिलगांव, नवीन प्रावि पुरैनी, प्रावि बंडवा, कन्या प्रावि बंडवा, प्रावि मगरौल, प्रावि बरौली खरका, प्रावि बड़ाघाट, कन्या प्रावि खेड़ा शिलाजीत, कन्या प्रावि धगवां, प्रावि लल्लू का डेरा बंद मिले.
इन विद्यालयों में तैनात शिक्षक मानसिंह, अरविंद, आबिद खां, रामदास विश्वकर्मा, रामसनेही, नरेंद्र कुमार पाठक, खेमचंद्र, विनीता गुप्ता, लक्ष्मण सिंह सेंगर, कृष्ण कुमार राजपूत, रघुनाथ, प्रकाश, मनोज कुमार, विकास, अमित, विवेक, रामशंकर, स्वामीदीन, कमल गर्ग, प्रियंका शर्मा, विपिन कुमार अवस्थी, भान सिंह को निलंबित कर दिया है.
इसी प्रकार गैरहाजिर रहने वाले शिक्षकों में पूमावि उपरहंका के हुब्बालाल, कन्या प्रावि उपरहंका के सुग्रीव, रंजीत, पूर्व माध्यमिक विद्यालय मकरौल के सहायक अध्यापक, कन्या प्रावि रेहुटा की सहायक अध्यापिका साधना निरंजन, जूनियर हाईस्कूल जिटकिरी के प्रअ अवधेश कुमार, प्रावि हरदुआ के राजेश कुमार, पूर्व माध्यमिक विद्यालय हरदुआ के रामलाल गौतम, अतुल कुमार 1 नवंबर से लगातार अनुपस्थित रहे हैं. इन सभी को भी बीएसए ने निलंबित कर दिया है.
बुंदेलखंड क्षेत्र के हमीरपुर जैसे पिछड़े जनपद में प्राइमरी शिक्षा पर करोड़ों रुपये हर माह खर्च हो रहे हैं, इसकेबावजूद प्राथमिक शिक्षा पटरी पर नहीं आ रही है. ज्यादातर स्कूलों में देखा जाए तो शिक्षकों की घोर लापरवाही के कारण बच्चों की भी स्कूलों में संख्या कहीं भी पचास का आंकड़ा नहीं हो पा रहा है, जबकि मिड-डे मील योजना में अपना खेल बनाने के लिए उपस्थिति पंजिका में छात्र संख्या कहीं ज्यादा होती है. जो बच्चे भी स्कूल आते हैं, वे भोजन पाने के बाद या तो स्कूल में उछलकूद करते रहते हैं या फिर घर भाग जाते हैं.