भारत की वीरांगना लक्ष्मीबाई की तरह ही फ्रांस की जॉन ऑफ आर्क ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी के लिए युद्ध किया और शहीद हुईं. 6 जनवरी 1412 को एक किसान परिवार में जन्मी जॉन ऑफ आर्क 12 साल की उम्र से ही यह कहती थीं कि उसे ईश्वर का आदेश मिला है कि वह अपने देश को अंग्रेजों से मुक्त कराए.
महज 17 साल की अवस्था में जॉन ने फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व किया और आजादी की लड़ाई की धारा ही मोड़ दी. फ्रांस ने अंग्रेजों पर आजादी हासिल की और सिंहासन पर चार्ल्स सप्तम का राज्याभिषेक हुआ.
जॉन को अपनी वीरता और आजादी की कीमत जान देकर चुकानी पड़ी. ऐसा माना जाता है कि कुछ लालची फ्रांसीसियों की ओर से उन्हें अंग्रेजों को बेच दिया गया. अंग्रेजों ने उन पर जादू-टोना करने, विधर्मी होने और लड़कों जैसे बाल काटने और कपड़े पहनने का भी आरोप लगाया.
30 मई 1431 को अंग्रेजों ने उन्हें जिंदा जला दिया, उस वक्त जॉन की उम्र महज 19 साल थी. अंग्रेजों ने उन्हें दो बार जलाया ताकि उसके शरीर का कोई हिस्सा बच न जाए. फ्रांस के लोगों का मानना है कि जलाने के बाद उनका दिल बच गया था जिसे अंग्रेजों ने सीन नदी में फेंक दिया. इस घटना के 25 साल बाद चार्ल्स सप्तम के अनुरोध पर पोप कैलिक्स्टस तृतीय ने उन्हें शहीद की उपाधि दी. 1920 में उन्हें संत की उपाधि से भी सम्मानित किया गया.
जॉन ऑफ आर्क साहित्य, चित्रकला, मूर्तिकला के क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय हैं. कई प्रसिद्ध साहित्यकार और कंपोजर ने उन पर कई महत्वपूर्ण रचनाएं की है.