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पढ़ाई का जज्बा: 96 साल की उम्र में एमए में लिया दाखिला

कहा जाता है कि पढ़ने-लिखने और सीखने की कोई उम्र नहीं होती. इस कहावत को एक बार फिर चरितार्थ किया है 96 साल के एक बुजुर्ग ने और अर्थशास्त्र स्नातकोत्तर (एमए) में दाखिला लेकर पढ़ने की इच्छा जताई है.

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कहा जाता है कि पढ़ने-लिखने और सीखने की कोई उम्र नहीं होती. इस कहावत को एक बार फिर चरितार्थ किया है 96 साल के एक बुजुर्ग ने और अर्थशास्त्र स्नातकोत्तर (एमए) में दाखिला लेकर पढ़ने की इच्छा जताई है. पटना के नालंदा खुला विश्वविद्यालय ने भी बुजुर्ग की इस इच्छा को उनके सीने में दफन नहीं होने दिया और बुजुर्ग के घर सम्मान स्वरूप जाकर स्नातकोत्तर स्तर के पाठ्यक्रम में उनका नामांकन लिया.

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मूल रूप से बरेली, उत्तर प्रदेश के निवासी राजकुमार वैश्य उम्र के 96वें पड़ाव पर पिछले दिनों जब एमए की पढ़ाई करने में रुचि दिखाई तो उनके पुत्र ने नालंदा खुला विश्वविद्यालय से संपर्क किया. विश्वविद्यालय प्रशासन ने भी नामांकन लेने की इच्छा जताई. वर्तमान समय में वैश्य अपने परिजनों के साथ पटना के राजेन्द्र नगर में रहते हैं.

वाकर के सहारे चलने वाले वैश्य कहते हैं, 'एमए की पढ़ाई करने की ख्वाहिश 77 साल से उनके सीने में दबी थी. सेवानिवृत्त हुए भी 38 साल हो गए. जिम्मेदारियों को पूरा करने में समय ही नहीं मिला. अब जाकर उनका सपना पूरा हुआ.' नालंदा खुला विश्वविद्यालय का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने सम्मान स्वरूप वैश्य के घर जाकर मंगलवार को दाखिले की औपचारिकता पूरी की. विश्वविद्यालय के संयुक्त कुलसचिव ए़ एऩ पांडेय ने बुधवार को बताया कि यह नामांकन उन लोगों के लिए प्रेरणादायी है, जिन्होंने किसी कारणवश पढ़ाई छोड़ दी है.

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इनका जन्म एक अप्रैल, 1920 को हुआ था. उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा बरेली के एक स्कूल से 1934 में पास की थी. इसके बाद उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से 1938 में स्नातक की परीक्षा पास की और यहीं से कानून की भी पढ़ाई की.इसके बाद झारखंड के कोडरमा में नौकरी लग गई. इसके कुछ ही दिनों बाद उनकी शादी हो गई. वैश्य ने बताया, 'सेवानिवृत्त होने के बाद वर्ष 1977 के बाद फिर बरेली चला गया. इस बीच पत्नी का स्वर्गवास हो गया. घरेलू काम में व्यस्त रहा, लेकिन एमए की पढ़ाई करने की इच्छा समाप्त नहीं हुई.'

उन्होंने आगे कहा, 'अब पूरी तरह निश्चिंत हो गया हूं. अब तय है कि एमए की परीक्षा पास कर लूंगा.' वैश्य के पुत्र संतोष कुमार कहते हैं कि पिताजी ने एमए करने की इच्छा जताई थी, तब नालंदा खुला विश्वविद्यालय से संपर्क किया था. उन्होंने कहा कि यह शिक्षा जगत के लिए एक बहुत बड़ी बात है. संतोष कुमार एनआईटी पटना से सेवानिवृत्त हुए हैं, जबकि उनकी पत्नी प्रोफेसर भारती एस़ कुमार पटना विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हैं.

इनपुट: IANS


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