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भीख मांगने वाली का बेटा जाएगा लंदन...बनेगा ऑटोमोबाइल इंजीनियर

हमारे पास रहने की कोई जगह नहीं थी. बारिश होती थी तो हम किसी दुकान के नीचे खड़े हो जाते थे. उस वक्त भी पुलिस का डर बना रहता था कि उनके आते ही ये जगह भी छोड़नी पड़ेगी. जयवेल उन दर्जनों बच्चों में से एक थे जो दो जून की रोटी के इंतजाम के लिए अपने मां-बाप के साथ भीख मांगते थे.

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जयवेल
जयवेल

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आज के समय में फॉरेन स्टडीज कोई बहुत बड़ी बात नहीं है. लेकिन जब बात एक ऐसे परिवार की हो जहां भीख मांगकर रोजी-रोटी का इंतजाम किया जाता हो तो बात खास हो ही जाती है. जिस बच्चे का पिता चेन्नई की सड़कों पर लोगों की दया का मोहताज हो, उनके आगे हाथ फैलाकर भीख मांगता हो जब उसके बेटे को लंदन जाकर महंगी पढ़ाई करने का मौका मिले, तो चौंकना वाजिब है.

चेन्नई की इस चौंकाने वाली कहानी की शुरुआत नेल्लौर से होती है. 80 के दशक में इस 22 साल के जयवेल की मां सूखे के चलते अपनी जमीन छोड़कर चेन्नई आ गई थीं. अपना सबकुछ कर्ज में हारकर ये परिवार चेन्नई पहुंचा था. उस दौरान करीब 50 परिवार नेल्लौर से चेन्नई पहुंचे थे. न तो खाने के लिए अनाज था, न सिर छिपाने के लिए छत.

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जयवेल बताते हैं कि हमारे पास रहने की कोई जगह नहीं थी. बारिश होती थी तो हम किसी दुकान के नीचे खड़े हो जाते थे. उस वक्त भी पुलिस का डर बना रहता था कि पुलिस के आते ही ये जगह भी छोड़नी पड़ेगी. जयवेल उन दर्जनों बच्चों में से एक थे जो दो जून की रोटी के इंतजाम के लिए अपने मां-बाप के साथ भीख मांगते थे. 

जयवेल जब बहुत छोटे थे तभी उनके पिता की मौत हो गई थी. जयवेल अपने खाने-पीने के लिए सिर्फ राह चलते लोगों की दया पर निर्भर थे. दस-बीस रुपये जो मिलते थे, वो मां की शराब में खर्च हो जाते थे. जयवेल बताते हैं उन्हें तो इस बात का भी यकीन नहीं था कि वो कभी एक साफ शर्ट भी पहन पाएंगे.

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लेकिन ये अंधेरा तभी तक था जब तक उनकी मुलाकात उमा मुत्थुरमन से नहीं हुई. उमा अपने पति के साथ उस समय सड़क पर रहने वाले बच्चों की जिंदगी पर एक प्रोजक्ट कर रही थीं. वे पेवमेंट फ्लावर नाम की एक वीडियो स्टोरी बना रहे थे. उसी प्रोजेक्ट के दौरान उमा की मुलाकात जयवेल से हुई. शुरू में तो जयवेल को उमा और उनके पति भी उन लोगों की ही तरह लगे जो गरीबों के नाम पर सिर्फ फंड खाते हैं लेकिन बाद में उन्हें समझ आया कि वे दोनों दूसरों की तरह नहीं हैं.

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1999 में उन्होंने जयवेल को अपनी देखरेख में ले लिया. उमा और उनके पति ने अपने एनजीओ की मदद से जयवेल को पढ़ाने और आगे बढ़ाने का फैसला किया.

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जयवेल बताते हैं कि शुरू में तो उन्हें पढ़ना-लिखना बिल्कुल भी पसंद नहीं आता था. स्कूल जाकर भी वो सिर्फ खेलने-कूदने के बारे में ही सोचते थे लेकिन धीरे-धीरे उन्हें शिक्षा का महत्व समझ आया. 12वीं में जयवेल काफी अच्छे नंबरों से पास हुए. जिसके बाद कई हाथ उनकी मदद को आगे आए. जयवेल भी अब पढ़ाई के महत्व को समझ चुके थे. इसी बीच उनके कैम्ब्रि‍ज यूनिवर्सिटी के एंट्रेंस एग्जाम का रिजल्ट आया. उन्हें यूके में वेल्स की ग्लेंडर यूनिवर्सिटी में सीट मिली थी.

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उमा बताती हैं कि जयवेल का चयन Performance Car Enhancement Technology Engineering के लिए हुआ. ये हमारे लिए बहुत गर्व की बात है. उमा का कहना है कि वो जयवेल को एक रोल मॉडल के रूप में देखती हैं.

वाकई जयवेल की कहानी हर उस शख्स के लिए एक प्रेरणा है जो जिंदगी में कुछ बनना चाहता है. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जयवेल वापस आकर उमा और उनके एनजीओ के लिए काम करना चाहते हैं.

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