इस बार नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट के बारे में विवादों के बावजूद विभिन्न मेडिकल कोर्स के लिए आवदेन लगातार आ रहे हैं.
तमिलनाडु मेडिकल यूनिवर्सिटी की एक छात्रा मालबिका देव बताती हैं, ‘निश्चित रूप से काफी ऐसे छात्र हैं जो डॉक्टर बनना चाहते हैं, लेकिन आखिरकार देखें तो कम ही छात्र इसमें सफल हो पाते हैं. राष्ट्रीय विकास परिषद का आकलन है कि देश में हर 1,700 लोगों पर एक डॉक्टर है. यह आंशिक सच हो सकता है क्योंकि काफी डॉक्टर काम करने विदेश चले जाते हैं और कई लोग दूसरे प्रोफेशन से जुड़ जाते हैं.’
काफी कम छात्र कोर मेडिसिन को प्रमुख काम बनाते हैं. इसके बावजूद फॉरेंसिक साइंस, ऑक्यूपेशनल थ्योरिस्ट, मोबिलिटी साइंटिस्ट और जियोग्राफिक शोधकर्ता जैसे कार्यों की तरफ रुख करने वालों की संख्या हाल के समय में बढ़ी है. देब बताती हैं, ‘डॉक्टर बनना उतना आकर्षक नहीं है, जितना किसी कॉर्पोरेट ऑफिस में बैठना या किसी नए स्टडी फील्ड में खुद अपना क्लीनिक खोलना. मेरे अधिकांश दोस्तों ने किसी अलग क्षेत्र में मास्टर डिग्री के लिए आवेदन करने का पहले ही फैसला कर लिया है, ताकि वे दो तरह की स्पेशलाइजेशन को जोड़कर पूरी तरह से कुछ एकदम अलग काम कर सकें.’
डॉक्टरों ने फॉरेंसिक से लेकर ज्योग्राफिक मेडिसिन तक कई ऐसे नए रास्ते तलाशे हैं, जिनसे वे समाज में अपना योगदान दे सकते हैं.
नया क्या है?
- ज्योग्राफिक मेडिसिन रू स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, यूएसए
- मोबिलिटी साइंस, वाइएमसीए कॉलेज, चेन्नै
- स्पीच ऐंड हियरिंग रू ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ स्पीच, मैसूर
- फॉरेंसिक साइंस रू गुजरात फॉरेंसिक्स यूनिवर्सिटी, गांधीनगर
- ऑक्यूपेशनल थ्योरी रू ला ट्रोब यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया
- निओनेटल नर्सिंग ऐंड मेडिसिन: किंग्स कॉलेज, यूके
दो भिन्न मेजर विषयों को जोडऩे का चलन न सिर्फ भारत में, बल्कि दुनियाभर में लोकप्रिय हो रहा है. मिसाल के तौर पर ज्योग्राफिकल मेडिसिन को लें. स्टडी की यह शाखा जलवायु के असर और स्वास्थ्य पर पर्यावरण संबंधी स्थितियों के असर का अध्ययन करती है. दुनियाभर के इसके केंद्रों ने हैजा, टाइफायड, मलेरिया, वेस्ट नील वायरस, बर्ड फ्लू और अन्य संक्रामक बीमारियों के टीके विकसित करने और बीमारियों को रोकने में इन जानकारियों का उपयोग किया है.
यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो में इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंस ऐंड साइकोलॉजी की प्रोफेसर स्टीफैनी बिएलो बताती हैं, ‘मेडिसिन की दुनिया में वास्तव में कुछ बेहद दिलचस्प शाखाएं सामने आ रही हैं. इनमें से कुछ कोर्स मनोविज्ञान और न्यूरोसाइंस की खासियतों के बीच एक तरह के पुल का काम करते हैं. इस कोर्स के जरिए छात्रों को पेशेवर मनोवैज्ञानिक के रूप में मान्यता मिल सकती है और न्यूरोसाइंस में ऑनर्स की डिग्री भी हासिल की जा सकती है. इस तरह छात्र दोनों विषयों का लाभ उठाने में सक्षम हो जाते हैं. इस कोर्स के बाद छात्र अमूमन फॉरेंसिक साइकोलॉजिस्ट, न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट, स्पोर्ट्स साइकोलॉजिस्ट और न्यूरोसाइंस और मनोविज्ञान में शोधकर्ताओं की नौकरियां पा सकते हैं.’
नई बीमारियों और जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सर्जरी में भी कई तरह की स्पेशलाइजेशन आ गई हैं, जैसे की-होल सर्जरी, जिसके तहत परंपरागत सर्जरी की तुलना में काफी छोटा छेद किया जाता है जिससे दर्द और घाव कम होता है. लंदन में मेडिकल के छात्र विपिन माहेश्वरी बताते हैं, ‘जनरल सर्जरी ही अब एकमात्र विकल्प नहीं है. हम सर्जिकल ऑन्कोलोजी, लैप्रोस्कोपिक सर्जरी, माइक्रो सर्जरी या इलेक्टिव सर्जरी चुन सकते हैं.’
फेसलिफ्ट और ट्रांसप्लांट जैसी चीजों की मांग बढऩे से ब्यूटी मेडिसिन से जुड़े कोर्सेज में भी इजाफा हुआ है. माहेश्वरी बताते हैं, ‘ब्यूटी मेडिसिन अपने-आप में एक पूरा विषय है. इसमें काफी सारी नई शाखाएं हैं, जैसे नेचुरल मेडिसिन, आयुर्वेद, होलिस्टिक मेडिसिन या नोज जॉब्स वगैरह. वास्तव में, इन दिनों ब्रेस्ट ट्रांसप्लांट सबसे पसंदीदा कोर्सेज में से एक है, क्योंकि इसमें काफी पैसे हैं और इसकी काफी मांग भी है.’
जो लोग कोर मेडिसिन कोर्स में दाखिला नहीं ले पाते हैं, उनके लिए भी बहुत सारे नए विकल्प हैं, जिनको चुना जा सकता है