मध्य प्रदेश के दमोह जिले से राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए चयनित शिक्षक आलोक सोनवलकर की पहचान शिक्षक के तौर पर कम और समाजसेवी के रूप में ज्यादा है. वे गांव-गांव जाकर नशा मुक्ति से लेकर पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए अभियान चलाते हैं. इतना ही नहीं कई बच्चों को गोद लेकर उनकी पढ़ाई का खर्च भी उठा रहे हैं.
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से 18 अगस्त को राष्ट्रपति शिक्षक पुरस्कार की घोषणा की गई. इसमें सोनवलकर का भी नाम है. मंत्रालय की ओर से उन्हें पत्र के जरिए आधिकारिक सूचना 25 अगस्त को दी गई. पांच सितंबर को दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में यह पुरस्कार सोनवलकर को प्रदान किया जाएगा.
दमोह जिला समस्याग्रस्त इलाके बुंदेलखंड में आता है. इस इलाके की बड़ी समस्या है नशाखोरी और यही अपराधों की जड़ भी है. शराब, सिगरेट, तंबाकू, गुटखा यहां आम है. सरकारी स्तर पर नशा मुक्ति के लिए कई अभियान चले और उसमें लोगों की हिस्सेदारी भी रही मगर यह मुहिम परवान न चढ़ सकी.
बच्चों को बेहतर शिक्षा मुहैया कराने के साथ सोनवलकर नशाखोरी की समस्या से वाकिफ हैं और इसीलिए उन्होंने नशा विरोधी अभियान समिति का गठन किया. स्कूलों में नशा मुक्ति क्लब बनाए. महात्मा गांधी की 125वीं जयंती पर नशा मुक्ति नोहटा कस्बे से नशा विरोधी अभियान की शुरुआत की. उन्होंने वर्ष 1997 में अभाना से नोहटा तक की राष्ट्रीय चेतना पदयात्रा निकाली. इस पदयात्रा में उन्हें जन सामान्य का भरपूर साथ मिला.
सोनवलकर ने बताया, 'युवा पीढ़ी का नशाखोरी की ओर बढ़ना समाज के लिए सबसे ज्यादा घातक है, जब नई और युवा पीढ़ी ही गर्त में चली जाएगी तो विकसित समाज और समृद्ध राष्ट्र की कल्पना करना बेमानी है. यही कारण है कि अपने मूल कार्य अध्यापन के अलावा सोनवलकर नशा मुक्ति के साथ बच्चों को संगीत शिक्षा और पर्यावरण की प्रति जागृति लाने के अभियान में लगे रहते हैं.'
सोनवलकर ने कहा, 'उनके नशा मुक्ति अभियान को समाज का साथ मिला है, गांव के लोगों ने कई वर्षो तक होली में पान गुटखा व तंबाकू की होली तक जलाई. इतना ही नहीं स्कूल के बालक-बालिकाओं तक ने गुटखा न खाने की शपथ ली थी, एक सरपंच ने तो नारा दिया था, शराब छोड़ो, दूध पियो, जो काफी चर्चाओं में रहा.'
उन्होंने बताया कि इस मुहिम के लिए गीत-संगीत और प्रहसन का भी सहारा लिया, इन प्रहसनों में वे महात्मा गांधी का किरदार निभाते हुए लोगों से नशा छोड़ने की अपील करते थे. उन्हें अपने इस अभियान में समाज का भरपूर सहयोग मिला. जो लोग समाज के लिए कुछ नहीं कर पाते वे भी सहयोग करने में पीछे नहीं रहते हैं, क्योंकि चाहता तो हर कोई है कि समाज में शांति, समृद्घि आए और पर्यावरण अच्छा रहे.
दमोह के सरकारी विद्यालय में व्याख्याता (लेक्चरर) सोनवलकर बीते 25 से ज्यादा वर्षों से समाज सेवा के काम में लगे हैं, इस दौरान उन्हें जिला स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक के कई पुरस्कार व सम्मान मिल चुके हैं.
राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए चयनित किए जाने से सोनवलकर उत्साहित हैं और कहते हैं कि यह सम्मान सिर्फ उन्हें नहीं बल्कि उनके उन सभी सहयोगियों के लिए है जो उनके समाजसेवी अभियान में उनका साथ देते आए हैं.