आमतौर पर कहते हैं कि कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती. अनुराधा सभी लोगों के लिए उसी कोशिश और साहस की जीती-जागती मिसाल बन गई हैं. उन्होंने सिर्फ डेढ़ साल में ही हैंडबॉल की नेशनल टीम में अपनी जगह बनाई है. उनके पिता किराना की दुकान चलाते थे, जो बीमारी के चलते उनको छोड़नी पड़ी. उसी समय से अनुराधा का संघर्ष शुरु हो गया था.
जानें अनुराधा के बारें में
एक साल पहले अनुराधा ने गुरावड़ा स्टेडियम में हैंडबॉल की कोचिंग शुरु करके खेल के मैदान में कदम रखा था. उसी दौरान उनके पिता को लकवा हो गया. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. बल्कि उनकी हिम्मत और साहस के आगे विपत्तियों को हार माननी पड़ी. अनुराधा इसलिए भी खास हैं क्योंकि घर से आठ किमी दूरे कोचिंग लेने जाती हैं.
मां के साथ निभाईं जिम्मेदारियां
पिता को लकवा होने के बाद उन्होंने घर की सारी जिम्मेदारी अपने कंधो पर ले ली. वह अपनी मां के साथ मिलकर पशु आदि पालकर अपने घर का खर्च चलातीं. साथ ही वह सुबह जल्दी उठकर अपने भाई बहन को स्कूल के लिए तैयार कर भेजतीं. अपने पिता कि देखभाल भी वह खुद ही करतीं. घर के काम खत्म करने के बाद वह गुरावड़ा स्टेडियम जाकर अपने सपनों की उड़ान भरने के लिए हैंडबॉल खेल की जमकर अभ्यास किया करतीं. इसी जज्बे के दम पर उन्हें यह उपलब्धि प्राप्त हुई है.
अनुराधा का सपना
अपने माता पिता के हाथ में नेशनल मेडल जीतकर रखना और साथ ही हैंडबॉल के खेल में बुलंदियां छूना उनका सपना है. इसके साथ ही नेशनल टीम का हिस्सा बनना उनका मुख्य उद्देश्य है.