98 साल के मार्शल ऑफ इंडियन एयरफोर्स अर्जन सिंह अब नहीं रहे. अर्जन सिंह दिल्ली स्थित आर्मी अस्पताल में शनिवार की अंतिम सांस ली. वो भारत के ऐसे तीसरे अफसर थे जिन्हें राष्ट्रपति भवन में सेना का दुर्लभ सम्मान मिला. 2002 में 85 वर्ष की आयु में उन्हें मार्शल ऑफ एयरफ़ोर्स का सम्मान दिया गया था. सम्मान के लिए राष्ट्रपति भवन में तब खास समारोह हुआ था. अर्जन सिंह ने 1965 में पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई में निर्णायक भूमिका निभाई थी. अर्जन सिंह वायुसेना के ऐसे अफसर थे, जिन पर पूरा देश नाज करता है.
सेना के सिर्फ 3 अफसरों को मिला है ये दुर्लभ रैंक, जानें खासियत
उनसे पहले राष्ट्रपति भवन में सेना का दुर्लभ सम्मान 1971 युद्ध के नायक फील्ड मार्शल एसएचएफ जे मानेकशा को मिला था. वो पद पर रहते हुए ये सम्मान पाने वाले पहले सैनिक अफसर बने थे. आजाद भारत के पहले थल सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल केएम करियप्पा को रिटायरमेंट के काफी बाद यह मानद पद्वी दी गई थी. इन दोनों अफसरों का भी निधन हो चुका है. मार्शल तीनों सेनाओं में सर्वोच्च रैंक है. यह सम्मान पाने वालों की रैंक जीवन पर्यंत रहती है. वो पांच सितारों वाली यूनीफॉर्म पहनते हैं.
1965 की लड़ाई में अर्जन सिंह ने भारतीय वायुसेना का नेतृत्व किया था. वो हमेशा अपने करियर में अजेय रहे. अर्जन सिंह को 19 वर्ष की उम्र में आरएएफ क्रैनवेल में एम्पायर पायलट प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के लिए चुना किया गया था. इसके बाद उन्होंने जो किया वह इतिहास है.
अर्जन सिंह का जन्म 15 अप्रैल 1919 को लायलपुर (अब पाकिस्तान) में हुआ था. उन्होंने 1944 में इम्फाल अभियान में स्क्वाड्रन लीडर के तौर पर अपनी स्क्वाड्रन का नेतृत्व किया. 15 अगस्त 1947 को उन्होंने लाल किले के ऊपर फ्लाई-पास्ट का नेतृत्व किया था. आजादी के बाद पहली बार लड़ाई में उतरी भारतीय वायुसेना की कमान अर्जन सिंह के हाथ में थी. पाकिस्तान के खिलाफ भारत की जीत में उनकी भूमिका बहुत बड़ी थी.
अर्जन सिंह के सम्मान में पश्चिम बंगाल के पानागढ़ एयरबेस को ‘अर्जन सिंह एयरबेस’ का नाम दिया गया है.