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मिसाल: एक पैर खोने के बाद भी चढ़ी माउंट एवरेस्ट, रोंगटे खड़े कर देगी इस लड़की की कहानी

पढ़ें एक ऐसी लड़की की कहानी जिसे कुछ गुंडों ने चलती ट्रेन से फेंक दिया था जिस वजह से उसे अपना पैर गंवाना पड़ा. फिर भी उस लड़की ने अपने दर्द को पीछे छोड़ते हुए हिमालय की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई की.

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Arunima Sinha
Arunima Sinha

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साल 2011 में राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी रहीं अरुणिमा सिन्हा को कुछ गुंडों ने चलती ट्रेन से फेंक दिया था. असहनीय पीड़ा में पूरी रात रेलवे ट्रैक पर गुजारने वाली अरुणिमा को इस घटना में अपना एक पैर गंवाना पड़ा और उनके दूसरे पैर में रॉड लगाई गई.

ऐसे दर्दनाक हादसे के बाद जहां रिकवरी में लोग 4 से 5 साल लगा देते हैं, वहीं अरुणिमा ने एक खिलाड़ी के तौर पर अपने अंदर बसे जुनून को बरकरार रखते हुए घटना के महज दो साल के अंदर दुनिया की सबसे ऊंची जगह, माउंट एवरेस्ट फतह कर ली थी . दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर चढ़ाई करने वाली पहली अपंग महिला पर्वतारोही बनने का इतिहास उनके ही नाम लिखा जाएगा.

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अरुणिमा का यह जुनून केवल एक महिला के विश्व के सर्वोच्च शिखर पर चढ़ाई करने कहानी नहीं है, बल्कि उनके अटूट विश्वास की दास्तां भी है, जिसके दम पर उन्होंने निराशा के हाथों मजबूर होने के बजाए बड़ी बाधाओं को पार कर अपनी सबसे बड़ी कमजोरी को सबसे बड़ी ताकत बनाने की हिम्मत दिखाई.

अपने दर्द को पीछे छोड़ते हुए अरुणिमा ने अपना सफर केवल माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि इसके बाद विभिन्न महाद्वीपों के पांच अन्य शिखरों की भी चढ़ाई की. उनका लक्ष्य अब सबसे कठिन चुनौती अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी 'एवरेस्ट विंसन मासिफ' पर भारतीय परचम लहराने का है.

अरुणिमा बगल के ट्रैक से गुजर रही ट्रेन से टकरा गई थी जिसके बाद वह बुरी तरह से जमीन पर गिर गईं. इसके बाद क्या हुआ, उन्हें कुछ याद नहीं.वे केवल इतना जानती हैं कि होश आने के बाद उन्हें असहनीय दर्द का अहसास हुआ और इसका भी अहसास हुआ कि वह अपना एक पैर खो चुकी हैं और दूसरे पर गंभीर चोट लगी है.

उन्होंने कहा, 'मैं मदद के लिए चिल्ला रही थी, लेकिन आस-पास कोई नहीं था, जो मेरी मदद कर सकता. चूहे मेरे घायल पैर को कुतर रहे थे और सारी रात मैं दर्द से कराहती रही. मैंने गिना था, मेरे पास से 49 ट्रेन गुजरी थीं.

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सुबह कुछ गांव वालों ने अरुणिमा को देखा और उन्हें पास के अस्पताल में लेकर गए, जहां चिकित्सकों को उनके एक पैर को काटना पड़ा और दूसरे पैर में रॉड लगाई. अरुणिमा ने कहा, उनके पास एनीस्थीसिया नहीं था और मैंने कहा था कि मुझे बिना एनीस्थीसिया दिए ही मेरे घायल पैर को ठीक करें. मैंने पूरा रात असहनीय दर्द को झेला था और इसलिए मैं जानती थी कि मैं ठीक होने के लिए कुछ और दर्द सह सकती हूं.

इसके बाद, अरुणिमा को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया जहां वह करीब चार महीने उनका इलाज चला. यहीं पर उन्होंने संकल्प लिया कि वह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करेंगी.

दुर्घटना के बाद जिस हालत में अरुणिमा थीं, उस हालत में हिल पाना भी मुश्किल होता है . लेकिन मजबूत इरादों वाली अरुणिमा की कहानी कभी धैर्य न हारने वाले जज्बे की कहानी साबित हुई.जहां एक ओर पूरी दुनिया उनके इरादों पर संदेह जता रही थी, उनके परिवार और खासकर उनके जीजा ओम प्रकाश ने उन्हें हौसला दिया. 42 साल के ओम प्रकाश ने अरुणिमा को उनके लक्ष्य की ओर प्रेरित करने के लिए अपनी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया.

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जिन हालात में अरुणिमा थीं, उसमें लोगों को खड़े होने के लिए सालों लग जाते हैं, वहीं अरुणिमा केवल चार माह में ही उठ कर खड़ी हो गईं. अगले दो साल उन्होंने एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल से प्रशिक्षण लिया. उन्हें स्पांसर मिले, उनकी यात्रा शुरू हुई और फिर वह दिन भी आया जब मंजिल फतह हुई.

अरुणिमा ने कहा कि इस कोशिश के दौरान उनके पैरों से खून बहता रहता था और अकसर वह गिर भी जाती थीं. लोग उन्हें पागल कहते थे और उन्हें लगता था कि वह कभी अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो पाएंगी. हालांकि, वे सभी उनके इरादों की मजबूती से अनजान थे.

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अरुणिमा ने अपने कृत्रिम पैर के दम पर अब तक माउंट एवरेस्ट के अलावा, माउंट किलिमंजारो (अफ्रीका), माउंट कोजिअस्को (आस्ट्रेलिया), माउंट अकोंकागुआ (दक्षिण अमेरिका), कारस्टेन्ज पिरामिड (इंडोनेशिया) और माउंट एलब्रस (यूरोप) की चढ़ाई कर ली है.

अरुणिमा दुनिया को सिर्फ यह बताना चाहती हैं कि अगर कोई शख्स लक्ष्य हासिल करने की ठान ले तो कोई बाधा उसे नहीं रोक सकती. अरुणिमा की इच्छा विकलांग लोगों के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय खेल अकादमी की स्थापना करने की है. उन्होंने कहा, इसके लिए उन्होंने कानपुर के पास उन्नाव में जमीन खरीद ली है. भवन बनाने की जरूरत है जिस पर 55 करोड़ खर्च होंगे. उन्होंने लखनऊ में 120 विकलांग बच्चों को गोद लिया है और हर संभव तरीके से उनकी मदद कर रही हैं.

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