आशीष धवन ने अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी से शानदार तरीके से ग्रेजुएशन के बाद, वॉल स्ट्रीट में काम किया, उसके बाद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से डिस्टिंक्शन के साथ एमबीए किया और फिर क्रिसकैपिटल की सह-स्थापना की, जो भारत में सबसे सफल प्राइवेट इक्विटी फर्म में से एक है. धवन के रेज्यूमे को देखकर किसी को भी ईर्ष्या हो सकती है. लेकिन दो साल पहले उन्होंने सेंट्रल स्क्वेयर फाउंडेशन (सीएसएफ) की स्थापना करके वेंचर कैपिटलिस्ट से वेंचर फिलएंथ्रोपिस्ट बनने की राह अपना ली. यह संगठन भारतीय एजुकेशन सिस्टम को बदलने के मिशन के साथ सोशल आंट्रेप्रेन्यर की मदद करता है. धवन कहते हैं, ''दो साल पहले भारत ने एक ग्लोबल टेस्ट दिया, और हम एजुकेशन के मामले में नीचे से दूसरे स्थान पर रहे. एक ओर हम सुपरपावर होने की बात कर रहे हैं, दूसरी ओर हमारा एजुकेशन सिस्टम उभर रहे देशों से भी बदतर है. इस सेक्टर में काफी काम करने की जरूरत है.”
आइवी लीग का अनुभव
येल में मेरी मुलाकात कुछ बेहद काबिल स्टुडेंट्स से हुई. लेकिन मुझे सबसे ज्यादा ताज्जुब यह जानकर हुआ कि उनमें से ज्यादातर अपने देश की सेवा करना चाहते हैं. उनमें सार्वजनिक सेवा की जबर्दस्त ख्वाहिश थी. लिहाजा, येल में मैंने सबसे महत्वपूर्ण सबक यह सीखा कि पैसा बनाना ही सब कुछ नहीं है, और यह कि आप अपने देश के लिए काफी कुछ कर सकते हैं और करना चाहिए. हार्वर्ड में मैंने काफी कुछ अपने साथियों से ही सीखा. मेरे सेक्शन में ऐसा शख्स था, जिसने बाद में अमेरिका की स्पेशल ऑपरेशंस फोर्स ग्रीन बेरेट का नेतृत्व किया. इस तरह वहां गजब के लोग थे, जो वास्तव में लीडर थे. बिजनेस स्कूल आपको ग्लोबल सिटीजन बनाता है और इससे विभिन्न परिस्थितियों में लीडरशिप को समझने और उसे सराहने में मदद मिलती है. इसके अलावा, बिजनेस स्कूल में दो साल बिताने के दौरान आपको आत्मावलोकन का भरपूर मौका मिलता है. हार्वर्ड में ही मैंने अपने लक्ष्य तय कर लिए थे. मैं 30 साल की उम्र में आंटे्रप्रेन्यर बनना चाहता था और 45 साल की उम्र में सोशल सेक्टर में कुछ काम करना चाहता था. अगर मैं किसी बिजनेस स्कूल में नहीं पढ़ा होता तो यकीनी तौर पर नहीं कह सकता कि मैं यह फैसला कर पाता.
करियर में बदलाव
मैं अपना दूसरा करियर बिजनेस से अलग चाहता था और देश की समस्याओं में से एक पर फोकस करना चाहता था. जब मैं हाइस्कूल में था तो मेरे टीचर ने मुझे जूनियर क्लास में 'मैथ्स इज फन’ नाम के टॉपिक को पढ़ाने के लिए कहा था. मुझे यह काम बÞत पसंद था. लेकिन जब मैंने अपनी मां को बताया कि मैं टीचर बनना चाहता हूं तो उन्होंने इस विचार को सिरे से खारिज कर दिया. मैंने भी धीरे-धीरे इस विचार को छोड़ दिया, लेकिन टीचिंग का कीड़ा मुझे काट चुका था. आंट्रेप्रेन्यर बनने के अपने पहले लक्ष्य को पूरा करने के बाद मैंने सोचा कि अगर मैं दूसरा करियर बनाना चाहता हूं तो मुझे इसकी योजना काफी पहले शुरू करनी होगी. मैं स्वयंसेवी संगठनों के बोर्ड में शामिल होने लगा. इसके जरिए मैंने सही लोगों से मिलना और एजुकेशन सेक्टर की समस्याओं को समझना शुरू किया. मैंने तस्वीर का बड़ा पहलू देखा तो मुझे एहसास हुआ कि टीचिंग से मेरे कौशल का बेहतर इस्तेमाल नहीं हो पाएगा. मैं 20 साल के अपने बिजनेस करियर के अनुभवों का इस्तेमाल करके एजुकेशन सेक्टर में व्यवस्थागत बदलाव करना चाहता था. लिहाजा, आज मैं सीएसएफ में वेंचर कैपिटलिस्ट के अपने कौशल का इस्तेमाल करके व्यापक समस्याओं को देखकर उनका समाधान निकाल सकता हूं.
अनुभवी की सलाह
सबसे पहले अपने करियर में खूब जोखिम उठाएं. दूसरों से अलग कुछ करने के लिए अपने भीतर आत्मविश्वास पैदा करें. दूसरा, मेंटर्स को तलाशें और उनके साथ आजीवन दोस्ती बनाए रखें. काफी लोग युवाओं के मेंटर बनने के लिए तैयार हैं. मेरे तीन मेंटर हैं, जो पिछले 25 साल से मेरे साथ हैं, और उन्होंने मेरी सोच और करियर को काफी हद तक प्रभावित किया है. तीसरा, पढ़ाई लगन से करें. खूब पढ़ें और अच्छे ऑब्जर्वर बनें. आप अपने जीवन में देखकर काफी कुछ सीख सकते हैं.