राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सरकारी की ओर से शिक्षा को लेकर कई दावे किए जा रहे हैं. कई सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाया गया है और पढ़ाई के स्तर में सुधार भी देखा गया, हालांकि फिर भी लक्ष्य कोसों दूर है. सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी सरकार ने 2018-19 वार्षिक बजट में 13,997 करोड़ रुपये का भारी भरकम राशि शिक्षा पर खर्च करने की बात कही थी.
सोशल ज्यूरिस्ट और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अशोक अग्रवाल का कहना है कि अकेले दिल्ली में ही छह से आठ लाख बच्चे स्कूलों में शिक्षा पाने से वंचित हैं. एडवोकेट अग्रवाल ने आईएएनएस को बताया कि 'सरकार अलिखित नीति के तहत काम कर रही है कि ज्यादा से ज्यादा बच्चों को स्कूलों से दूर रखो और जो स्कूलों में एक या दो साल से फेल हो रहे हैं उन्हें भी स्कूलों से बाहर निकालने के रास्ते खोजे जा रहे हैं, ताकि वे यह दिखा सकें कि हमारे पास स्कूलों में 40 बच्चों पर एक शिक्षक मौजूद हैं.'
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अग्रवाल ने कहा, 'इनको करना यह चाहिए था कि शिक्षकों की संख्या बढ़ाते, लेकिन इन्होंने दूसरा तरीका अपना लिया कि बच्चों को घटाकर मौजूदा प्रणाली को ठीक कर दिया जाए, ताकि दुनिया को लगे कि यहां स्कूल बेहतर तरीके से कार्य कर रहे हैं. इनमें दृष्टिकोण की कमी है, जिससे बच्चों का काफी नुकसान हो रहा है. अकेले दिल्ली में ही छह से आठ लाख बच्चे स्कूलों में शिक्षा पाने से वंचित हैं. इन बच्चों को स्कूलों में होना चाहिए. यह वह बच्चे हैं, जो स्कूल से ड्रॉपआउट हैं या कभी स्कूल ही नहीं गए हैं.'
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हाल ही में हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को कैंप लगाकर इन बच्चों को स्कूलों में दाखिले देने को कहा था, जिसपर अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने कहा कि अदालत के आदेश पर सरकार ने डिप्टी कलेक्टर के कार्यालयों में आठ से 10 कैंप खोल दिए. आदेश के मुताबिक इन्हें सैकड़ों कैंप लगाने चाहिए थे, सारा मानव संसाधन उसमें लगाकर बच्चों को ढूंढकर लाना चाहिए था.
सरकारी स्कूल के भविष्य में सुधार के सवाल पर अग्रवाल ने कहा, 'मुझे नहीं लगता, इनके कार्यकाल के दौरान सुधार होगा क्योंकि जब आपकी मानसिकता ही इस प्रकार की है कि दिल्ली के बाहर के बच्चों को स्कूलों में नहीं लेना, बिहार से हो तो उसे नहीं लेना है, ऐसे दृष्टिकोण से सुधार नहीं होगा.'