अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए राम मंदिर ट्रस्ट बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 9 फरवरी की तारीख दी थी. ये ट्रस्ट बनाने के लिए सिर्फ पांच दिन बचे हैं. ये ट्रस्ट अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के तौर तरीके तय करेगा. हां, ये जरूर कहा जा रहा है कि इस ट्रस्ट का ढांचा सोमनाथ ट्रस्ट से मिलता-जुलता हो सकता है. आइए जानें- कैसे काम करता है सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट, कौन हैं इसके ट्रस्टी, कैसे तय होता है खर्च, क्या होती है पूरी प्रक्रिया.
सुप्रीम केंद्र ने कहा था कि सरकार अगर चाहे तो अपनी शर्तों पर प्रबंधन की ज़िम्मेदारी किसी ट्रस्ट को दे सकती है. अब हो सकता है कि ट्रस्ट सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर मंदिर निर्माण करे. वैसे इस ट्रस्ट के मेंबर और इसके ढांचे को लेकर सरकार जल्द ही इसे तय कर देगी. लेकिन इससे पहले ये जरूर जान लें कि सोमनाथ ट्रस्ट की पूरी रूपरेखा किस तरह की है.
ये है सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट का काम
सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट 8 सदस्यों का ट्रस्टी बोर्ड है. इसमें फिलहाल 7 सदस्य हैं. इन सात सदस्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल, लालकृष्ण आडवाणी, गृहमंत्री अमित शाह, हर्षवर्धन नेवतिया, पीके लहेरी, जी डी परमार आदि ट्रस्ट में व्यक्तिगत क्षमता में शामिल हैं. ट्रस्ट के वर्तमान चेयरमैन केशूभाई पटेल हैं.
ऐसे काम करता है ट्रस्ट
ट्रस्ट में चेयरमैन और सेक्रेटरी का पद होता है. चेयरमैन का चुनाव हर साल ट्रस्ट के सदस्य वोट देकर करते हैं. इनमें से चार सदस्यों को राज्य सरकार नॉमिनेट करती है और चार केंद्र सरकार की ओर से नामित होते हैं. सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट की बात करें तो इस ट्रस्ट के सदस्यों की सदस्यता तब तक आजीवन मानी जाती है जब तक वो इस्तीफा न दें या किसी कारण से ट्रस्टी बोर्ड उन्हें न हटाए.
सोमनाथ ट्रस्ट की जिम्मेदारी
सोमनाथ ट्रस्ट ही प्रभास पाटन में मौजूद सभी 64 मंदिरों का प्रबंधन देखता है. इसके अलावा ट्रस्ट के पास 2,000 एकड़ जमीन भी है. ट्रस्ट की दूसरी जिम्मेदारियों में चंदा एकत्र करना और मंदिर से संबंधित सभी देखभाल के कार्यों का संचालन करना होता है.
नहीं देना होता कोई टैक्स
ट्रस्ट के बारे में कानूनन उन्हें चंदे की राशि का कोई टैक्स नहीं देना होता. ट्रस्ट के फैसलों या किसी अन्य काम में सरकार कोई दखल नहीं दे सकती. ट्रस्ट अपना खर्च बोर्ड सदस्यों की सहमति से करता है.
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ऐसे बना सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट, जानें- इतिहास
दंतकथाओं के अनुसार सोमनाथ मंदिर भगवान चंद्रदेव ने खुद बनाया था. सोने से बने सोमनाथ मंदिर पर कई बार आक्रमण हुए. 1026 ईसवी में महमूद गजनवी ने इस पर हमला करके इसे लूटा. फिर मालवा के परमार राजा भोज और गुजरात के सोलंकी राजा भीम ने फिर इसका निर्माण कराया. इसके बाद मुगल शासक औरंगजेब ने 1706 में मंदिर पर आक्रमण किया. इस तरह मंदिर पर कई हमले हुए. भारत को अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद मंदिर के पुनर्निमाण का मुद्दा एक बार फिर सामने आया. ऐसा बताया जाता है कि खुद सरदार पटेल और केएम मुंशी महात्मा गांधी के पास गए. उन्होंने महात्मा गांधी से कहा कि वो उसी स्थल पर मंदिर बनवाना चाहते हैं. गांधी जी ने जीर्णोद्धार के लिए जनता से पैसे जुटाने की योजना बताई, उन्होंने सरकारी पैसा इसमें न लगाने की बात कही थी. लेकिन गांधी जी की हत्या और सरदार पटेल की मृत्यु के बाद केएम मुंशी ने मंदिर के जीर्णोद्धार की जिम्मेदारी ली.
नेहरू भी सरकार को नहीं करना चाहते थे शामिल
बताते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी सोमनाथ मंदिर के निर्माण से सरकार को दूर रखना चाहते थे. वो इस कदम को भारत की आधुनिक धर्मनिरपेक्ष छवि के विपरीत मानते थे. इसके बाद केएम मुंशी ने बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट्स एक्ट (1950) के तहत पहली बार ट्रस्ट बनाया. साल 1951 से यही ट्रस्ट मंदिर की देखरेख और संचालन करता है.