छत्तीसगढ़ राज्य में पिछले वर्षों शिक्षा को लेकर खासी जागरुकता देखी गई है. इसी क्रम में बस्तर जिले के तरंदुल गांव में बांसों से बनने वाले स्कूल का भी जिक्र आता है. कंक्रीट की इमारत बनाने से रोके गए प्रशासन और ग्रामवासियों ने बांस से स्कूल का निर्माण किया है.
इस स्कूल की व्यवस्था पर छत्तीसगढ़ में रहने वाले 45 वर्षीय कृष्ण कुमार गोंड कहते हैं कि स्कूल परिसर में बच्चों को खेलते और पढ़ते देख कर लगता है कि गांव का भविष्य अब बेहतर हो सकेगा.
आखिर बांस के स्कूल के पीछे क्या वजह रही?
- गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ और खास तौर से बस्तर का इलाका माओवादी गतिविधियों का केन्द्र रहा है. इसे लेकर माओवादियों ने ग्रामवासियों को कंक्रीट की इमारतें बनाने से मना किया है. वे मानते हैं कि ऐसे स्कूल सुरक्षाकर्मियों के लिए ठहरने की जगह बन जाते हैं.
- साल 2009 से 2012 के बीच पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट ने दर्जन भर कंक्रीट इमारतें बनवाने का ठेका जारी किया, लेकिन माओवादियों के डर से कोई आगे नहीं आया. RMSA के अडिशनल प्रोजेक्ट अफसर अजय महापात्रा कहते हैं कि माओवादी 200 से अधिक इमारतों को इस बीच ढहा चुके हैं.
- इसके अलावा इन सुदूर इलाकों में रोड कनेक्टिविटी का भी अभाव है. जिसकी वजह से ईंट और सीमेंट लाना मुश्किल है.
- केन्द्र सरकार द्वारा संरक्षित अभियान राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA) इन इलाकों में जागरुकता फैलाने का काम कर रहा है. इसकी वजह से लोग बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं.
- माओवादियों को बांस के स्कूलों से कोई आपत्ति नहीं है. RMSA ऐसे स्कूलों की संख्या में इजाफा करने की ओर अग्रसर है.
साल 2014 तक तरंदुल में केवल एक प्राथमिक स्कूल था. राज्य सरकार ने पंचायत स्तर पर बांस के स्कूलों को बढ़ावा देने की पुरजोर कोशिश की. आज पूरे बस्तर क्षेत्र में 43 बांस से बने स्कूल हैं. जाहिर है कि बांस की स्कूलों को बनाने में उन्हें सुविधा होती है और लागत भी कंक्रीट की इमारतों के आसपास ही लगती है.