बिहार बोर्ड ने इस बार रिकॉर्ड समय में 12वीं बोर्ड परीक्षा के नतीजे जारी कर दिए हैं. इस बार बोर्ड ने काफी कम समय में परीक्षा के नतीजे जारी कर दिए हैं. इसके साथ ही कई ऐसे कार्य किए गए हैं, जो बिहार बोर्ड के इतिहास में पहले कभी नहीं हुए. जानते हैं किन-किन मामलों में बिहार बोर्ड काफी आगे रहा...
- इस बार पिछले कुछ वर्षों के मुकाबले रिजल्ट अच्छा रहा. इस बार 79.76 फीसदी उम्मीदवार पास हुए हैं, जबकि पिछली साल 17 फीसदी कम करीब 53 फीसदी उम्मीदवार पास हुए थे.
- पहली बार मार्च में परीक्षा के नतीजे जारी किए गए हैं. वैसे मार्च-फरवरी में परीक्षाएं होती हैं और ऐसी स्थिति में मार्च में नतीजे जारी कर बिहार ने इतिहास रचा है.
- इस बार परीक्षा और परीक्षा के बाद कॉपियों की जांच में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. इसकी वजह से पैटर्न, पद्धति, प्रणाली में विकास हुआ है. वहीं गुणवत्ता के इस्तेमाल से बिहार बोर्ड ने रिकॉर्ड समय में परीक्षा के नतीजे जारी किए हैं. बता दें कि इस बार पिछले साल के वक्त ही आयोजित की गई थी.
-पहली बार किसी भी स्टेट बोर्ड में बार कोड और प्री-प्रिंटेड कॉपी का इस्तेमाल किया गया. बारकोड के साथ ही ओएमआर शीट भी छात्रों को दी गई थी और इसका असर रिजल्ट पर पड़ा. पहले जो कॉपियां मिलती थीं, उसमें 27-28 अलग अलग गोले भरने होते थे और अगर किसी में गलती हो जाती थी तो रिजल्ट रोक लिया जाता था. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ, जिससे टाइम कम लगा. इस बार परीक्षार्थियों को एक कोड भरना था.
- इस बार पहली बार किसी स्टेट बोर्ड ने 10 सेट तय किए थे.
-नकल पर लगाम लगाते हुए कदाचार मुक्त परीक्षा का आयोजन किया गया.
-मूल्यांकन और परीक्षा पैटर्न में बदलाव किए गए, जिसकी वजह से पास प्रतिशत भी बदला. इसमें शॉर्ट सवाल की संख्या बढ़ाई गई और कई ऑप्शन भी दिए गए. जिसकी वजह से पास प्रतिशत में काफी बदलाव हुआ.
-सभी टीचर्स को वर्कशॉप दी गई और प्रश्न-पत्र आसान बनाए गए, ताकि परीक्षार्थियों को ज्यादा से ज्यादा अंक हासिल हो सके.
- पहले 90 फीसदी से अधिक अंक हासिल करने वाले उम्मीदवारों की कॉपियों को बिहार बोर्ड मंगाया जाता है और जांच की जाती थी. हालांकि अब यह व्यवस्था खत्म कर दी गई है.
- पहली बार सभी मूल्यांकन केंद्रों पर कंप्यूटर की व्यवस्था की गई और सॉफ्टवेयर के माध्यम से मार्क्स की एंट्री की गई.
-वहीं एक सॉफ्टवेयर बनाया गया, जिसमें बार कोडिंग आदि की जानकारी एंटर की गई. इससे काम आसान हुआ और जल्दी कार्य पूरा किया गया.
- पहले छात्रों को कम अंक मिलते थे और टॉपर्स को भी 90 फीसदी से कम अंक मिलते थे. हालांकि अब पैटर्न में बदलाव करने से अब सभी टॉपर्स को 94 फीसदी तक अंक हासिल हुए हैं.
- 2 मार्च को मूल्यांकन शुरू किया गया और 28 दिन के अंदर रिजल्ट जारी कर दिए गए.
- पेंडिंग रिजल्ट की संख्या 3 हजार रहती थी, लेकिन इस बार तकनीक का इस्तेमाल करने की वजह से यह संख्या 174 ही रह गई है. इस बार महज 0.15 फीसदी छात्रों का रिजल्ट ही पेंडिंग रहा है.