गुरुवार को बिहार बोर्ड ने मैट्रिक की परीक्षा 2017 के परिणाम घोषित कर दिए. इस परीक्षा में कुल 1723911 छात्र-छात्राएं शामिल हुए जिसमें से 863950 ने परीक्षा पास की, यानी कि 50.12% छात्रों ने इस बार की मैट्रिक की परीक्षा पास की जबकि तकरीबन उतनी ही संख्या में छात्र फिर भी फेल हो गए. इस बार मैट्रिक की परीक्षा में स्टेट टॉपर रहे लखीसराय के प्रेम कुमार जबकि दूसरे और तीसरे स्थान पर जमुई के भव्य कुमारी और हर्षिता कुमारी ने बाजी मारी.
मैट्रिक की परीक्षा में इन छात्रों ने अच्छे नंबर लाए और टॉपर बने मगर बिहार विद्यालय परीक्षा समिति जो पिछले 2 सालों से टॉपर्स घोटाले होने की वजह से फजीहत झेल रही है उसे विश्वास नहीं था कि वाकई यह छात्र और छात्राएं टॉपर्स बनने लायक है या नहीं. खासकर तब जब इस साल की इंटरमीडिएट परीक्षा में 42 साल के गणेश कुमार ने फर्जी जन्म प्रमाणपत्र बनाकर अपने आप को 24 साल का बताया और इंटरमीडिएट की परीक्षा में आर्ट्स टॉपर बन गया.
इस साल की घटना से बिहार विद्यालय परीक्षा समिति इस कदर घबरा गई थी उसने सभी टॉपरों की पूरी तरीके से जांच पड़ताल करने की सोची जिसके बाद ही उनके नाम घोषित किए गए.
सबसे पहले
बिहार बोर्ड ने 4 सदस्य एक कमेटी बनाई जिसने सभी टॉपरों के उत्तर पत्रिका को दोबारा से जांच किया. इसके बाद कमेटी ने इन सभी टॉपरों का भौतिक सत्यापन कराया गया. उसके बाद इन टॉपरों का बकाया बोर्ड ने इंटरव्यू भी लिया और यह जांचा कि वाकई यह टॉपर बनने के लायक है या फिर नहीं. इसके बाद फिर शुरू हुई भौतिक सत्यापन की प्रक्रिया.
भौतिक सत्यापन के लिए बिहार बोर्ड ने इन सभी टॉपरों को एक-एक करके बोर्ड के दफ्तर बुलाना शुरू किया और उनके बारे में पूरी तरीके से जांच पड़ताल की. कई टॉपस ऐसे भी थे जो भौतिक सत्यापन के वक्त पटना या फिर बिहार में नहीं थे, ऐसे हालात में बिहार बोर्ड ने ऐसे छात्रों को पटना आने-जाने के लिए ना केवल हवाई जहाज का खर्च दिया बल्कि ट्रेन से आने वाले छात्रों को भी ट्रेन का खर्चा मुहैया कराया.
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के चेयरमैन आनंद किशोर ने 'आज तक' से खास बातचीत में कहा कि बिहार बोर्ड में आज तक भौतिक सत्यापन की परंपरा कभी नहीं रही है मगर इस बार मैट्रिक की परीक्षा से यह नई सिस्टम को लागू किया गया. इसके लिए बकायदा राज्य सरकार को सूचित कर अनुमति ली गई जिसके बाद ही टॉपरों का भौतिक सत्यापन संभव हो सका.
गौरतलब है कि आनंद किशोर ने इस बात का भी खुलासा किया कि इस बार कई ऐसे छात्र थे जो इस परीक्षा में फेल हो रहे थे मगर उन्हें ग्रेस नंबर देकर पास कराया गया. चौंकाने वाली बात यह है कि ग्रेस नंबर मिलने के बावजूद भी पास करने वालों को बच्चों का प्रतिशत केवल 50 के आसपास रहा.