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बोर्ड रिजल्ट से खुद को जज न करें, सब्जेक्ट के नंबर आपकी पहचान नहीं हैं

नंबर कम आए हैं तो रिश्तेदार क्या सोचेंगे, पड़ोसी क्या कहेंगे, दोस्त कैसे रिऐक्ट करेंगे...अक्सर बोर्ड परीक्षा देने वाले छात्र और उनके पेरेंट्स के मन में ऐसे ही सवाल गूंजते हैं. लेकिन, यह सही नहीं है. कभी भी रिजल्ट में मिले नंबर ये तय नहीं करते कि किसी की असली मंजिल क्या है.

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प्रतीकात्मक फोटो (Unsplash)
प्रतीकात्मक फोटो (Unsplash)

अक्सर खबरों में पढ़ते हैं कि बोर्ड रिजल्ट से खुश न होने पर छात्र खतरनाक कदम उठा लेते हैं. कमोबेश हमारे समाज में बोर्ड एग्जाम को एक ऐसा हौव्वा बना दिया गया है मानो यही नंबर इंसान की पूरी जिंदगी तय कर देंगे. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं होता. व्यक्त‍ि को उसका ज्ञान ही जीवन में सफल या असफल बनाता है. समाज में हर फील्ड में चाहे वो फिल्म या सिनेमा जगत हो, खेल जगत हो, प्रशासनिक सेवाएं हो, ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिनमें लोगों ने बोर्ड एग्जाम में बहुत अच्छा नहीं किया लेकिन वो अपने जीवन में सफल रहे. 

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हम अगर एक एग्जाम को ही जीवन में सफलता का पैमाना मान लेते हैं तो बोर्ड रिजल्ट का परफार्मेंस हमें चिंता से भर देता है. लेकिन सच्चाई यह है कि मनोवैज्ञानिक तौर पर भी अच्छा रिजल्ट पाने वाले ही होनहार हों, ऐसा कहीं भी सिद्ध नहीं हुआ है. कई लोग बोर्ड परीक्षाओं में भले ही बेहतर न कर पाएं लेकिन अपनी जिंदगी में ऐसा मुकाम हासिल करते हैं जिसका दुनिया लोहा मानती है. 

परफॉर्मेंस प्रेशर होती है वजह 
जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्र‍िवेदी कहते हैं कि कई बच्चे पढ़ने में बहुत अच्छे होते हैं लेकिन एग्जाम में वो अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते. ऐसा उनके साथ परफॉर्मेंस प्रेशर के कारण होता है. बच्चों को परिवार, स्कूल और आसपास के लोगों से परफार्मेंस को लेकर इतना प्रेशर दे दिया जाता है कि वो एग्जाम हाल एंजाइटी का श‍िकार हो जाते हैं. कई बार वो प्रश्नपत्र सामने आने पर जो आता है, वो भी भूल जाते हैं. या फिर उन्हें लिखने में असुविधा का सामना करना पड़ता है. इस कारण उनका रिजल्ट अच्छा नहीं आता. लेकिन वही लोग जैसे जैसे परिपक्व होते हैं उनका एकेडमिक पक्ष बहुत मजबूत होता जाता है और वो बहुत अच्छे रिजल्ट देते हैं. 

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डॉ त्रिवेदी कहते हैं कि बोर्ड परीक्षाएं हों या इसके रिजल्ट, अभ‍िभावकों को कभी बच्चों को प्रेशर नहीं देना चाहिए. बच्चे अगर शांत मन से परीक्षाएं देते हैं या सहज भाव से अपने रिजल्ट को स्वीकार करते हैं तो उनमें आगे सुधार की बहुत गुंजाइश होती है. इसके उलट उन्हें रिजल्ट खराब होने पर नीचा दिखाने से उनके भविष्य को लेकर परफार्मेंस ब‍िगड़ जाता है. इसको लेकर हमेशा एक कहानी याद आती है जिसमें दुनिया के एक मशहूर वैज्ञानिक की मां ने अपने बेटे के परफार्मेंस को सुधार दिया. 

यह कहानी इलेक्ट्र‍िक बल्ब का अव‍िष्कार करने वाले थॉमस एल्वा एड‍िसन की बताई जाती है. बताते हैं कि एड‍िसन काफी ऊंचा सुनते थे इसलिए उन्हें क्लास में ध्यान देने में दिक्कत होती थी. उन्हें स्कूल से यह कहकर निकाल दिया गया था कि आपका बच्चा पढ़ाई में ध्यान नहीं देता, हम उसे अपने स्कूल में नहीं पढ़ा सकते. एड‍िसन को वापस लेकर लौटी मां से जब एड‍िसन ने पूछा क‍ि आप अब मुझे घर से ही पढ़ाई करने को क्यों कह रही हैं तो मां ने कहा कि स्कूल ने कहा है कि आपका बच्चा इतना होनहार है कि हम उसे पढ़ा ही नहीं सकते. 

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बच्चे पर ट्रस्ट करें 
एड‍िसन को मां की बात पर भरोसा हो गया और वो आगे चलकर इतने महान वैज्ञानिक बने ज‍िसे दुनिया सलाम करती है. एक दिन जब उन्हें मां की अलमारी में स्कूल का वो कागज रखा मिला तो उन्‍होंने मां से पूछा कि उन्‍होंने ऐसा क्यों किया. इस पर मां कहती है कि उस वक्त अगर मैं तुम्हें ये बता देती तो शायद तुम आज इस स्थान तक नहीं पहुंच पाते. इसे आम भाषा में हम ट्रस्ट कहते हैं. अगर हम अपने बच्चों की प्रत‍िभा पर ट्रस्ट करेंगे तो वो कुछ भी कर सकते हैं. इसलिए बच्चों को कभी भी उनके रिजल्ट या सब्जेक्ट में मिले नंबर से जज मत करिए. अभी जिंदगी में कदम कदम पर इम्तेहान हैं, उसका हौसला बढ़ाइए ताकि वो आगे के एग्जाम का सामना कर सके. 

 

 

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