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महिला दिवस विशेष: ये भी थी 'खूब लड़ी मर्दानी'

महिलाएं इतिहास रच दें, ऐसा कम ही होता है. ब्रिटिश भारत में रानी लक्ष्मीबाई को अलग मुक़ाम हासिल है, लेकिन ये छह महिलाएं भी कमतर नहीं हैं.

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इन बहादुर महिलाओं की गौरव गाथा को आज भी याद करता है देश
इन बहादुर महिलाओं की गौरव गाथा को आज भी याद करता है देश

महिलाएं इतिहास रच दें, ऐसा कम ही होता है. ब्रिटिश भारत में रानी लक्ष्मीबाई को अलग मुक़ाम हासिल है, लेकिन ये छह महिलाएं भी कमतर नहीं हैं.

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1. भीकाजी कामा (1861-1936)
मुंबई में पैदा हुईं पारसी महिला कई साल यूरोप में रहीं और कई राष्ट्रवादी पर्चे छापे, जो भारत में स्मगल किए जाते थे. उन्होंने क्रिसमस के मौके पर तोहफे में दिए जाने वाले खिलौनों में भी छिपाकर बंदूकों की भी तस्करी की.

2. सरला देवी चौधरानी (1872-1945)
कलकत्ता में पैदा हुईं सरला ने मासिक पत्रिका भारती का संपादन किया, जिसमें वो नौजवानों से ब्रिटिश सैनिकों के खिलाफ़ स्व-रक्षा समूह बनाने का आग्रह किया करती थीं. उन्होंने एक स्वदेशी स्टोर भी खोला, जो उस वक्‍़त बड़ी बात थी.

3. कमलादेवी चट्टोपाध्याय (1903-1990)
किशोर जीवन में ही विधवा होने वालीं कमलादेवी मंगलौर की रहने वाली थीं और उन्होंने 20 बरस की उम्र से पहले दोबारा शादी कर ली थी. उन्होंने अदालत में नमक बेचने की कोशिश की और मजिस्ट्रेट से नमक सत्याग्रह का हिस्सा बनने की अपील कर डाली थी.

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4. अरुणा आसफ अली (1906-1996)
परिवार के विरोध के बावजूद उन्होंने 1925 में अपनी जाति से बाहर जाकर शादी की. नमक आंदोलन के दौरान रैलियों की अगुवाई की. जब वो गिरफ्तारी से बचने के लिए छिप गई थी, तो ब्रिटिश सरकार ने उनकी संपत्ति ज़ब्त कर ली.

5. गाएडिनलियु (1915-1993)
उन्होंने 13 साल की उम्र में सिविल डिस्‍ओबिडिएंस मूवमेंट में हिस्सा लिया, जो अब नगालैंड और मणिपुर के नाम से जाना जाता है. उन्हें पकड़ने के‌ लिए ब्रिटिश प्रशासन ने सैनिक लगाने, इनाम रखने और शादी के फर्जी ऑफर तक, सारे हथकंडे अपनाए थे. वो 13 साल जेल में रहीं.

6. प्रीतिलता वादेदार (1911-1932)
चटगांव (अब बांग्लादेश) में पैदा हुईं प्रीति कलकत्ता में पढ़ाई के दौरान राष्ट्रवादी समूह से जुड़ीं. उन्होंने लाठी और तलवार चलाना भी सीखा. पुरुष के भेष में उन्होंने उस यूरोपीय क्लब पर हमला बोला, जिसके बाहर लिखा था, 'कुत्ते और भारतीय दाखिल नहीं हो सकते'.

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