उभरती अर्थव्यवस्था वाले विकासशील देशों के संगठन ‘ब्रिक्स’ ने अपना एक नया विकास बैंक गठित कर वैश्विक वित्तीय संचालन व्यवस्था में तहलका मचा दिया है. हालांकि ब्रिक्स की यह पहल दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ब्रेटन वुड समझौते के तहत गठित पश्चिम के वर्चस्व वाले विश्वबैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष पर केंद्रित व्यवस्था को खत्म करने से अभी कोसों दूर है. अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष तथा विश्वबैंक पिछले 70 साल से वैश्विक वित्तीय प्रणाली के केंद्र में रहे हैं. देशों को आर्थिक समस्याओं से उबारने तथा विकास परियोजनाओं की मदद करने में इन संस्थानों ने बड़ी भूमिका निभाई है.
विश्वबैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष जैसे संगठनों की आलोचना हो रही है. कहा जा रहा है कि ये संगठन वैश्विक अर्थव्यवस्था में नए उभरते प्रमुख विकासशील देशों की बढ़ती अहमियत तथा योगदान को प्रतिबिंबित नहीं कर पा रहे हैं. दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन के पास मुद्राकोष के संचालन में इटली के मुकाबले थोड़ा ही ज्यादा वोटिंग अधिकार हैं, जबकि यह यूरोपीय देश चीन के पांचवें हिस्से के बराबर है. 1944 में गठित होने के बाद से मुद्राकोष और विश्वबैंक की अगुवाई सामान्यत: यूरोप और अमेरिका के हाथ में ही रही है.
कार्नेल विश्वविद्यालय के एक व्यापार नीति प्रोफेसर तथा पूर्व आईएमएफ विशेषज्ञ ईश्वर प्रसाद ने कहा, ‘विकसित देशों द्वारा उभरते बाजारों को अंतराराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों में ज्यादा अहम भूमिका देने को लेकर बार-बार जताई गई प्रतिबद्धता के बावजूद व्यापक वैश्विक संचालन सुधार अटका पड़ा है.’ ब्रिक्स समूह के सदस्य ब्राजील, रूस, भारत, चीन तथा दक्षिण अफ्रीका ने पिछले हफ्ते एक नया विकास बैंक और आपात विदेशी विनियम कोष गठित करने का पक्का निर्णय किया है. यह वैश्विक व्यवस्था की समानता दूर करने की दिशा में एक ठोस कदम जान पड़ता है.
मुद्राकोष में ब्राजील तथा 10 अन्य देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले पाउलो नोगुएरिया बतिस्ता ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘अगर मौजूदा वैश्विक संस्थान अपना काम अच्छे ढंग से करते तो नए बैंक, नए कोष के गठन की जरूरत नहीं होती.’ ब्रिक्स संस्थान गठित करने से ही पश्चिमी देशों को एक मजबूत संकेत गया है. वास्तव में पश्चिमी देशों को इस बात का संदेह था कि पांचों उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश अपनी व्यक्तिगत जरूरतों तथा लक्ष्यों से पार पा सकेंगे.
ईश्वर प्रसाद ने कहा कि ब्रिक्स संस्थानों का गठन महत्वपूर्ण कदम है और पाशा पलटने वाला साबित हो सकता है, क्योंकि यह बयान तथा सहयोग की बातों को वास्तविक रूप दे सकता है. हालांकि ब्रिक्स संस्थान को लेकर अभी कई अनिश्चितताएं हैं. इससे मुद्राकोष और विश्वबैंक को नए प्रतिद्वंद्वी के मुकाबले अपनी अग्रणी स्थिति बनाए रखने की पूरी संभावना है.