केंद्र सरकार ने बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट से कहा कि वह संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के प्री-एग्जाम के आवेदन पत्र में किन्नरों के लिए लिंग का अलग विकल्प देने से संबंधित नियम नहीं बना सकता, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने किन्नरों की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी है.
केंद्र सरकार और लोक सेवा आयोग ने न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता और न्यायमूर्ति पी.एस.तेजी की खंडपीठ को बताया कि किन्नर शब्द पर स्पष्टीकरण देने के लिए एक याचिका दायर की गई है.
केंद्र सरकार ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में किन्नरों की कोई परिभाषा स्पष्ट नहीं की है, इसलिए हमने उनकी परिभाषा को लेकर स्पष्टीकरण की मांग करने वाली याचिका दायर की है. स्पष्टीकरण के बाद नियम बनाए जा सकते हैं."
दिल्ली हाईकोर्ट एक जनहित याचिका की सुनवाई कर रहा था, जिसमें सिविल सर्विस के प्री-एग्जाम के आवेदन पत्र में किन्नरों के लिए विकल्प न रखे जाने संबंधी यूपीएससी की नोटिस को रद्द करने की मांग की गई है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और यूपीएससी से पूछा था कि प्री-एग्जाम से संबंधित आवेदन में किन्नरों के लिए लिंग का अलग विकल्प क्यों नहीं है?
अप्रैल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने किन्नर समुदाय को तीसरे लिंग का दर्जा दिया था और केंद्र सरकार से कहा था कि किन्नरों को सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़ा माना जाए. इससे पहले किन्नरों को अपने लिंग के आगे महिला या फिर पुरुष लिखना पड़ता था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किन्नरों को तीसरे लिंग के आधार पर शिक्षण संस्थानों में प्रवेश मिलेगा और नौकरी मिलेगी.
अपनी प्रतिक्रिया में केंद्र सरकार ने कहा कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है और आवेदन में बदलाव या स्पष्टीकरण अभी लंबित है. 'केंद्र सरकार की तरफ से किन्नरों को तीसरा लिंग माने जाने को लेकर न कोई फैसला लिया गया है न ही आदेश दिया गया है.'
वकील जमशेद अंसारी ने अपनी याचिका में यूपीएससी के आवेदन पत्र में किन्नरों के लिए भी लिंग का विकल्प रखने की मांग की है. उनका कहना है कि यह किन्नर समुदाय के लिए फायदेमंद रहेगा, जो रोजगार से वंचित हैं और सामाजिक पिछड़ापन झेल रहे हैं.
याचिका में कहा गया है कि तीसरे लिंग का विकल्प शामिल न किए जाने के कारण वे 23 अगस्त को होने वाली परीक्षा के लिए आवेदन नहीं दे पाएं.
इनपुट आईएएनएस से.