यूपीएससी परीक्षाओं में हिन्दी अनुवाद की खामियों पर तीन सदस्यीय सीमित ने रिपोर्ट आयोग को सौंप दी है. आईएएस, आईपीएस और आईएफएस का चुनाव करने के लिए आयोजित प्रतिष्ठित सिविल सेवा के अलावा विभिन्न परीक्षाओं में पूछे गए सवालों में हिन्दी अनुवाद में कथित गलतियों के संबंध में आई शिकायतों के बाद यूपीएससी के पूर्व सदस्य प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई थी.
समिति की रिपोर्ट के बारे में जानकारी तुंरत हासिल नहीं हो सकी. फिलहाल आयोग रिपोर्ट पर विचार कर रहा है. सूत्रों की मानें, तो हिन्दी अनुवाद की विसंगतियों को दूर करने के लिए समीति ने एक विस्तारित कार्य-प्रणाली दी है.
रिपोर्ट के बारे में कुछ भी बोलने से बचते हुए प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा, ‘हमने पिछले महीने आयोग को रिपोर्ट दे दी थी’. समिति में अग्रवाल के अलावा, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति एसके सोपोरी और इग्नू के प्रो. एके सिंह भी सदस्य थे.
इस साल सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा 24 अगस्त को आयोजित हुई थी और छात्रों ने कुछ सवालों के हिन्दी अनुवाद में कथित गलतियों की शिकायत की थी.जुलाई में सिविल सेवा परीक्षा के पैटर्न को लेकर विवाद तब शुरू हुआ था जब छात्रों ने सी-सैट या पेपर सेकंड में बदलाव की मांग की थी. यह मांग सड़कों पर हिंसक आंदोलन में तब्दील हो गई थी. आंदोलनकारी छात्रों का दावा था कि इससे ग्रामीण इलाकों या हिन्दी पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों को नुकसान होता है.
प्रदर्शन को देखते हुए कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने चार अगस्त को संसद में कहा था कि सिविल सेवा परीक्षा के पेपर सेकेंड के अंग्रेजी खंड में पूछे जाने वाले सवालों के अंक मेरिट में नहीं जोड़े जाएंगे.
बहरहाल, हिन्दी अनुवाद में विसंगतियों के मामले में न सरकार ने और न ही आयोग ने कोई औपचारिक बयान जारी किया था. यूपीएससी द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा, इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा, संयुक्त मेडिकल सेवा परीक्षा, भारतीय वन सेवा परीक्षा, राष्ट्रीय रक्षा अकादमी तथा नौसेना अकादमी परीक्षाओं सहित विभिन्न परीक्षाओं में देश भर के लाखों छात्र बैठते हैं.
इस साल अकेले सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा 4,51,602 उम्मीदावारों ने दी थी. पिछले साल के मुकाबले यह तादाद करीब 1.27 लाख ज्यादा थी.