दुनिया भर में कोरोना के कहर और इसकी कोई वैक्सीन तैयार न होने के बाद फिलहाल डॉक्टरों और उनसे सहयोगी स्टाफ नर्स आदि की जिम्मेदारी काफी बढ़ गई है. चूंकि अभी कोरोना वायरस के लिए वैक्सीन नहीं ढूंढी जा सकी है, इसलिए ऐसे मामलों में सतर्कता ही एकमात्र उपाय है.
कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरों के बीच सरकारी अस्पतालों में आइसोलेशन वार्ड बना दिए गए हैं. जहां कोरोना संक्रमण से संभावित लोगों को लाकर उनके टेस्ट किए जा रहे हैं. देश भर के अस्पतालों में डॉक्टरों और नर्सों को वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के दिशा निर्देशों पर ट्रेनिंग दी गई है. नोएडा के एक सरकारी अस्पताल में तैनात स्टाफ नर्स ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि किस तरह कोरोना को लेकर उन्हें सभी चैलेंज के लिए तैयार किया गया है.
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ऐसे करनी है सैंपलिंग
उन्होंने बताया कि अगर हमारे पास कोई ऐसा पेशेंट आता है जिसमें कोरोना के लक्षण हैं तो सबसे पहले हमें उसके सैंपल लेने होते हैं. ये सैंपल नेजल और फ्रेरेंजियल यानी नाक और गले से स्वैब स्टिक के सहारे लेने होते हैं. इसलिए उसके लिए हमें पहले सैंपल किट की पूरी लेबलिंग करनी होती है. उसके बाद संभावित कोरोना पॉजिटिव मरीज से संबंधित सारी डिटेल और उसके परिवार की भी पूरी डिटेल जुटाई जाती है.
पहनना होता है सैंपलिंग सूट
लिखापढ़ी की सारी तैयारी करने के बाद नर्स पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्टिव एक्विपमेंट किट) पहनकर सैंपल लेती हैं. इस किट में गाउन, बूट, कैप, एन 95 मास्क, ग्लव्स और गॉगल्स होते हैं. उस किट को पहनकर दोनों स्वैब से सैंपल लेकर उसे पोलियो वैक्सीन कैरियर की तर्ज पर तैयार बॉक्स में आइस पैक के साथ रखना होता है.
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पुणे भेजे जाते हैं सैंपल
वैक्सीन कैरियर में रखने के बाद सैंपल पहले दिल्ली, फिर पुणे भेजा जाता है. ये सैंपल आइस पैक में ही पुणे तक भेजे जाते हैं ताकि सैंपल सेफ और जांच के लिए उपयुक्त हों. इस बॉक्स की तैयारी भी पीपीई किट पहनने से पहले करनी होती है. इसका सैंपल एक लिक्विड में तैयार करना होता है. क्योंकि अगर ये खुले में होगा तो वायरस के फैल जाने की गुंजाइश होती है.
परिवार वालों के भी भरे जाते हैं फॉर्म
अगर कोई संभावित कोरोना पॉजिटिव मरीज आता है तो उसके साथ साथ उसके पूरे परिवार में सबके फॉर्म भरे जाते हैं. इसका मकसद ये होता है कि सबका डेटा इकट्ठा रहे. अगर संभावित व्यक्ति में कोरोना पॉजिटिव पाया गया तो सभी की जांच कराई जा सके.
पॉजिटिव केस की केयर में हैं ये चुनौतियां
पॉजिटिव केस होने पर उसकी केयर के लिए अलग आइसोलेशन रूम तैयार किए गए हैं. उस रूम में पेशेंट को देखने के लिए पीपी किट पहनकर डॉक्टरों को मेडिकेशन देना होता है तो वहीं नर्सेज को पेशेंट का सारा काम करना होता है. नर्सेज के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये होती है कि उन्हें अपनी सुरक्षा को देखते हुए पीपीई किट पहनने के बाद कुछ खाना-पीना मुश्किल होता है. ये ड्रेस काफी महंगी होती है तो इसे एक पूरी शिफ्ट में पहनना होता है, इसके बाद इसे डिस्कार्ड करना होता है.