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इंडिया टुडे के 2014 के सर्वे में चौथे नंबर पर जेएनयू: यहां हैं करियर चमकाने वाले कोर्स

इंडिया टुडे-नीलसन बेस्ट यूनिवर्सिटी सर्वेक्षण 2014 में चौथे नंबर पर है जेएनयू. जलवायु परिवर्तन और एनर्जी स्टडीज जैसे नए कार्यक्रमों के जरिए यह वक्त के साथ मिला रहा कदम.

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लगभग 27 वर्ष तक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में काम कर चुके वाइस-चांसलर सुधीर कुमार सोपोरी कहते हैं कि पिछला एकेडमिक साल उनके लिए सबसे ज्यादा सुखद रहा. विश्वविद्यालय ने न सिर्फ नए ऐप, वेबसाइट और साइबर लाइब्रेरी के जरिए नए जमाने की तकनीक को अपनाया बल्कि एक वर्ष में सबसे अधिक नए रिसर्च प्रोग्राम शुरू किए.

एनर्जी स्टडीज, मानव अधिकार, सिल्क रूट अध्ययन, जलवायु परिवर्तन और बायोटेक्नोलॉजी में नए पीएचडी कार्यक्रमों से विश्वविद्यालय के 10 अध्ययन केंद्रों के बीच संपर्क और साझेदारी को बढ़ावा मिला है. खुद एक जाने-माने शोधकर्ता सोपोरी कहते हैं कि विभिन्न शिक्षा केंद्र जब समाज के लिए उपयोगी विषयों पर अध्ययन के लिए एक साथ आते हैं तो उन्हें सबसे ज्यादा संतोष और सुकून मिलता है.

सोपोरी के शब्दों में, ''मैं पिछले चार साल से विश्वविद्यालय में विभिन्न विभागों के बीच और एक-दूसरे से जुड़े विषयों में शोध को बढ़ावा देने का प्रयास करता आ रहा हूं. निवेश के लिए सही प्रोग्राम की तलाश, पैसे जुटाना और फैकल्टी को अलग-अलग केंद्रों के साथ समय-समय पर संपर्क-संवाद करने को राजी करना चुनौतीपूर्ण काम था. अब सब कुछ संभव होते देखकर अच्छा लग रहा है.”

जेएनयूबात चाहे नए सिल्क रूट अध्ययन प्रोग्राम के लिए भाषायी कार्यशालाएं चलाने में दिल्ली स्थित अफगानी दूतावास से मिली मदद की हो या फिर विभिन्न कॉर्पोरेट घरानों से बहुप्रतीक्षित एनर्जी स्टडी कोर्स के लिए समर्थन देने के प्रस्ताव की, इन नई उपलब्धियों से रोमांचित होने वालों में कुलपति सोपोरी अकेले नहीं हैं.

विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे 28 वर्षीय अध्ययन गुप्ता की सुनिए: ''जेएनयू देश का अकेला विश्वविद्यालय है जहां एक ही साल में इतने सारे रिसर्च प्रोग्राम शुरू किए गए. मैं सबसे ज्यादा इस बात से प्रभावित हुआ कि हर प्रोग्राम आधुनिक समाज के लिए कितना उपयोगी है. मिसाल के तौर पर एनर्जी स्टडी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों, सामाजिक प्रभाव और ऊर्जा के विज्ञान की खोजबीन शामिल है.

यह अध्ययन समाज के लिए एक बड़ा योगदान है, क्योंकि ऊर्जा संसाधन अब बेहद अहम हो गए हैं.” लाहौल-स्पीति घाटी में छोटा शिगरी ग्लेशियर पर जेएनयू के शोधकर्ताओं के अध्ययन से हिमालय के ग्लेशियरों में बर्फ पिघलने की गति के बारे में बहुत उपयोगी जानकारी मिली. इसके बारे में सोपोरी बताते हैं, ''रिसर्च से पता चला कि ग्लेशियर पर बर्फ पिघलने की दर बहुत बढ़ गई है. ऐसी जानकारी पहले से मिलना बहुत काम आता है. एक विश्वविद्यालय के तौर पर हम न सिर्फ अपने विद्यार्थियों के प्रति बल्कि अपने देश के प्रति भी निष्ठावान हैं.”

दक्षिण दिल्ली में जेएनयू के 1,000 एकड़ में फैले कैंपस में आधुनिक टेक्नोलॉजी भी अपनाई गई है. पूरे कैंपस में वाइफाई कैफे विद्यार्थियों को इंटरनेट से जुडऩे और लैपटॉप पर काम करने की सुविधा देते हैं. लाइब्रेरी में 200 सिस्टम्स के साथ साइबर लाइब्रेरी खोली गई है और उसमें मौजूद 60,000 प्रकाशित पुस्तकों में से हर एक का विवरण ऑनलाइन डाटाबेस में है. सोपोरी की देखरेख में विश्वविद्यालय की नई वेबसाइट भी डिजाइन की गई है.

इसके लिए वे स्वयं रोजाना उपयोगी खबरें और जानकारी अपलोड करते हैं. वाइस-चांसलर सोपोरी का कहना है, ''आज शिक्षा में टेक्नोलॉजी की उपयोगिता को अनदेखा नहीं किया जा सकता. हमारी नई वेबसाइट्स और साइबर सुविधाएं विद्यार्थियों को सूचना और शिक्षा के साधन तेजी से और सुविधाजनक ढंग से प्रदान करती हैं. जेएनयू मेल और खास तौर पर उसका ऐप विद्यार्थियों और फैकल्टी को आपस में जोड़े रखता है.”

पिछले एक साल में विद्यार्थियों की गतिविधियां भी बढ़ी हैं. नुक्कड़ नाटक, पोस्टर प्रतियोगिता, होली की मस्ती, ताइक्वांडो का प्रदर्शन, गरबा का मुकाबला और विदेशी फिल्मों के प्रदर्शन कुछ लोकप्रिय आयोजन हैं.

दूसरे वर्ष की छात्रा 22 वर्षीया सिमरन रॉय बताती हैं, ''कुछ साल पहले तक जेएनयू को वामपंथ का गढ़ और पुराने ढंग की संस्था कहा जाता था. दूसरे विश्वविद्यालयों में मेरे मित्र कम फीस और छात्र राजनीति में उठापटक का मजाक उड़ाया करते थे. लेकिन अब सब बदल गया है. कैंपस आधुनिक हो गया है और शिक्षा सुविधाएं देश में सबसे अच्छी हैं.

हमारा सांस्कृतिक उत्सव सबसे रंगीला होता है,जिसमें बहुत भीड़ होती है.” यूजीसी ने जेएनयू को हाल ही में 60 करोड़ रु. अनुदान के साथ उत्कृष्टता में सक्षम विश्वविद्यालय का दर्जा दिया है. इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि 45 वर्ष पहले स्थापित विश्वविद्यालय में अभी बहुत दम बाकी है.

क्या कहते हैं वाइस-चांसलर एस.के. सोपोरीः

“नए अवसर पैदा हो रहे हैं तो उसी के साथ-साथ बÞत सारी चुनौतियां भी आ रही हैं”
मैं पहले-पहल 1973 में जेएनयू आया था तब यह अपनी शुरुआती अवस्था में ही था. अगले दो दशक में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में इसने अपनी धाक जमाई. विश्वविद्यालय का हर तबका अपनी मांगों के साथ हाथ फैलाने की बजाए अपना बेहतरीन प्रदर्शन करने को उत्सुक था. नए कैंपस  के विकास के साथ अनुशासन बढ़ा. छात्रों के सेमिनार और डिस्कशन फोरम यहां की संस्कृति का हिस्सा बन गए.

छात्रों की संख्या सीमित थी इसलिए फैकल्टी के साथ उनका संपर्क जीवंत था. मैं 1996 में विश्वविद्यालय छोड़कर दिल्ली में इंटरनेश्नल सेंटर ऑफ जेनेटिक इंजीनियरिंग ऐंड बायोटेक्नोलॉजी के अनुरोध पर उसके यहां चला गया. मुझे नहीं मालूम था कि मौजूदा पद के लिए मेरे नाम पर विचार हो रहा था. आखिरकार मैंने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और 2011 में वीसी बनकर जेएनयू लौट आया.

इतने वर्षों में विद्यार्थियों का स्वरूप बदल गया. 8,000 से ज्यादा विद्यार्थियों में करीब आधी महिलाएं हैं. अनेक नए केंद्र, नए स्कूल और नए प्रोग्राम आ गए हैं. नए अवसरों के साथ अनेक चुनौतियां भी हैं. मेरा काम वातावरण को शिक्षण और अनुसंधान के लिए ज्यादा उपयुक्त बनाने का है.

विभिन्न केंद्रों और स्कूलों के बीच विभिन्न विषयों पर अध्ययन-चर्चा को प्रोत्साहित करना, नए संसाधन देना और टेक्नोलॉजी का उपयोग करना भी मेरा काम है. मेरा सौभाग्य है कि मैं ऐसी संस्था का मुखिया हूं जिसने पिछले चार दशक में सबसे गुणी व्यक्ति दिए हैं. मुझे विश्वास है कि जेएनयू उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाता रहेगा.

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