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UPSC में हासिल की 101वीं रैंक, कभी प्लेटफॉर्म पर बिताया करते थे रात

प्रभाकरन ने 2 साल तक आरा मशीन में लकड़ी काटने का काम किया. इसके साथ उन्होंने खेतों में मजदूरी भी की ताकि घर का खर्चा चल सके.

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एम शिवागुरू प्रभाकरन
एम शिवागुरू प्रभाकरन

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यूपीएससी सिविल सर्विस 2017 की परीक्षा में एम शिवागुरू प्रभाकरन ने 101वीं रैंक हासिल की. प्रभाकरन ने देश की सबसे कठिन मानी जाने वाली सिविल सर्विसेज परीक्षा में आईएएस के लिए चुने गए हैं. यूपीएससी की परीक्षा पास करना और उसमें 101वीं रैंक हासिल करना उनके लिए किसी सपने से कम नहीं है.

आईए जानते हैं उनकी सफलता की कहानी..

प्रभाकरन तमिलनाडु के तंजावुर के पट्युकोट्टई में मेलाओत्तान्काडू गांव के रहने वाले हैं. पिता शराबी होने की वजह से घर की सारी जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई थी. जिसके चलते वह जल्दी ही अपनी जिम्मेदारियां समझ गए थे.

परिवार की स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी जिसके चलते उन्होंने 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी. पढ़ाई छोडऩे के बाद उन्होंने घर की जिम्मेदारी संभाली और नौकरी शुरू की. प्रभाकरन ने 2 साल तक आरा मशीन में लकड़ी काटने का काम किया.इसके साथ उन्होंने खेतों में मजदूरी भी की. ताकि घर का खर्चा चल सके.

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भले ही प्रभाकरन ने 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी लेकिन वह हर कीमत पर अपने सपनों को मरने नहीं देना चाहते थे. उन्होंने घर की जिम्मेदारी निभाते हुए उन्होंने साल 2008 में अपने छोटे भाई को इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवाई और बहन की भी शादी की. घर की थोड़ी बहुत जिम्मेदारी निभाने के बाद वह प्रभाकरन चल पड़े अपने सपनों को पूरा करने.

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चेन्नई से उन्होंने अपने सपने को पूरा करने की शुरुआत की. जहां वह इंजीनियरिंग करने का सपना लेकर आए. उन्होंने आईआईटी से पढ़ाई करने के लिए होने वाले एंट्रेंस परीक्षा को पास करने के लिए जीतोड़ मेहनत की. वो दिन में पढ़ाई करते और रातें सेंट थॉमस मांउंट रेलवे स्टेशन पर बिताया करते थे. दिन-रात की कड़ी मेहनत करने के बाद उन्हें आईआईटी में दाखिला मिल गया.  जिसके बाद उन्होंने एमटेक में टॉप रैंक हासिल की.

एमटेक में टॉप रैंक हासिल करने के बाद वह सिविल सर्विस की परीक्षा के लिए मेहनत करने लग गए.  आपको बता दें, उन्होंने चौथी बार यूपीएससी की परीक्षा में 101वीं रैंक हासिल की. इससे पहले वह 3 बार असफल हो गए थे. लेकिन उनकी ये कहानी लोगों को सीखाती है कि भले ही आप असफल हो रहे हैं लेकिन मेहनत करना न छोड़े.

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