दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी करने वाले स्टूडेंट्स अब अपनी मौखिक परीक्षा स्काइप या वीडियो कांफ्रेसिंग के किसी अन्य साधन से दे सकते हैं. विश्वविद्यालय ने यह भी अनिवार्य कर दिया है कि पीएचडी शोधार्थी द्वारा सौंपी गई थीसिस साहित्यिक चोरी जांच से गुजरेगी और इसके लिए विशेष साफ्टवेयर खरीदे गये हैं.
विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, पहले छात्रों को पीएचडी कार्यक्रमों के लिए अपनी मौखिक परीक्षा में व्यक्तिगत रूप से पेश होना होता था. इसलिए एक बार जिसने अपनी थीसिस पूरी कर ली और जिसे विदेश में किसी अवसर का प्रस्ताव मिला, उन्हें इस प्रक्रिया के लिए वापस आना पड़ता था. अब इस मजबूरी को दूर किया गया है.
उन्होंने कहा, स्काइप या वीडियो कांफ्रेंसिंग के किसी अन्य साधन से मौखिक परीक्षा में शामिल होने के इच्छुक छात्रों को पहले से अपने संबंधित विभागों को जानकारी देनी होगी. इसी तरह से अगर इंटरव्यू पैनल के कोई विशेषज्ञ व्यक्तिगत रूप से आने में असमर्थ हैं तो इन्हीं साधनों से मौखिक परीक्षा आयोजित की जाएगी. पीएचडी थीसिस में साहित्यिक चोरी को हतोत्साहित करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के निर्देशों के बाद, डीयू ने यह अनिवार्य कर दिया है कि सभी जमा थीसिस की साहित्यिक चोरी रोकने की खातिर विशेष साफ्टवेयर की मदद से जांच की जाए.
अधिकारी ने कहा कि इंटरनेट पर भी ऐसे साफ्टवेयर उपलब्ध हैं लेकिन वे पुख्ता नतीजे नहीं देते. हम विशेष साफ्टवेयर खरीद रहे हैं जिससे यह सुनिश्चित होगा कि छात्र कट एंड पेस्ट वाला काम नहीं कर पाएं. विश्वविद्यालय ने यूजीसी नियम 2009 और यूजीसी नियम 2010 के अनुरूप अपने पीएचडी अध्यादेश में संशोधन किया है. इन संशोधनों को पिछले सप्ताह विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद की बैठक के दौरान मंजूरी दी गई. विश्वविद्यालय ने पीएचडी खत्म करने की समयावधि चार साल से बढाकर साढे छह साल तक कर दी है.
इनपुट: भाषा