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हालिया नोटबंदी के बाद कोचिंग और कॉलेज के स्टूडेंट्स का एक-एक दिन मुश्किल...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 8 नवंबर को देश के भीतर चल रहे 500 और 1000 रुपये के नोटों पर रोक लगा दी. जानें आखिर यह देश के स्टूडेंट्स को किस तरह प्रभावित कर रहा है. क्या हैं उनकी प्रतिक्रियाएं...

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Demonetisation
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बीते 8 नवंबर को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के नोटों के सर्कुलेशन पर रोक लगाने को कहा. हालांकि लोग अपने पास रखे वैध रुपयों को 30 दिसंबर तक बैंकों में जमा करा सकेंगे. वे इस कदम से देश में आतंकवाद, कालेधन के सर्कुलेशन और जमाखोरी पर रोक लगाने की बात कहते हैं. प्रधानमंत्री के इस घोषणा को लेकर देश और समाज में तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं.

प्लास्टिक मनी से अपना काम चलाने वाला देश का अधिकांश हिस्सा जहां इस फैसले से खुश दिख रहा है वहीं एक बड़ा हिस्सा बैंक और एटीएम के बाहर लगने वाली लंबी-लंबी कतारों हलकान भी हैं. तिस पर से बैंकों और एटीएम में कैश की कमी हो रही है. इस नोटबंदी के फैसले की मार देश के सुदूर हिस्सों से आकर दिल्ली के भीतर पढ़ने वाले और कंपटीशन की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स पर भी पड़ी है. पढें आखिर वे क्या कहते हैं...

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8 घंटे लाइन में लगकर निकाले रुपये- अमित और अखिलेश रूम पार्टनर हैं और गांधी विहार में रहकर यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने 7-8 घंटे लाइन में लगकर बैंक से चेक के मार्फत 18,000 रुपये निकाले. गांधी विहार और मुखर्जीनगर के अधिकांश एटीएम बंद ही हैं. कुछ बैंकों के एटीएम जैसे ICICI और Axis में कैश डाला भी जाता है तो जल्द ही खत्म हो जाता है. इलाके के एटीएम अभी नए नोटों के हिसाब से तैयार नहीं कए जा सके हैं. वे कहते हैं कि बैंकों के भीतर कोई खास व्यवस्था नहीं है. पैसे जमा करने और निकलवाने के लिए एक ही लाइन लगी है. हालांकि महिलाओं के लिए वे अलग लाइन की बात कहते हैं लेकिन उनका नंबर भी काफी देर-देर से आ रहा है. मकान मालिक चेक और अकाउंट में पैसे लेने से भी मना कर रहे हैं.
अखिलेश कहते हैं कि वहां उत्तर प्रदेश और बिहार के कई मजदूर वर्ग के लोग आए हुए थे. उनके अकाउंट में लंबे समय से कोई लेनदेन न होने की वजह से बैंक उनसे पैसे लेने से इंकार कर रहे थे. मजदूर वर्ग से ताल्लुक रखने वाला अधिकांश तबका सरकार के इस त्वरित निर्णय से खफा दिखा.

आस-पास के किराना स्टोर दुकानदार और लोग कर रहे हैं सहयोग- दिल्ली के लक्ष्मीनगर इलाके में रहकर सीए (CA) की तैयारी कर रहे गौरव कहते हैं कि आस-पास के किराना स्टोर चलाने वाले दुकानदार भी सहयोगी रवैया अपना रहे हैं. हालांकि आस-पास के कई ATM बंद हैं लेकिन रात के वक्त लाइन में लगने पर कैश निकल जा रहा है. 2000 के नोट भी टूटने में कोई खास दिक्कत नहीं आ रही. चूंकि वे नोटबंदी से पहले ही कमरे का किराया दे चुके थे इसलिए अभी तक मकान मालिक से बात नहीं हुई है.

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अपने छोटे भाई की मदद से बदले पैसे - दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से रिसर्च कर रहे मुकेश कहते हैं कि लंबी-लंबी कतारों को देखकर वे उनमें लगने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे. उन्होंने अपने छोटे भाई के मार्फत कुछ नोट बैंक से बदलवाए. वहां भी 2000 रुपये के नोट थमा दिए गए. 2000 रुपये के छुट्टे न होने की वजह से भी काफी दिक्कतें आ रही हैं. कई बार किसी के बताए जाने पर वे एटीएम तक पहुंचते भी हैं तो आगे 100 से अधिक लोग होते हैं. कैश खत्म होने की भी शिकायत हो रही है.

घट गई है क्रय क्षमता- जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से एमफिल की पढ़ाई कर रहे जयंत कहते हैं कि क्रय क्षमता में गिरावट आई है. जरूरत की किताबें खरीदने के खयाल को सामान्य स्थिति बहाली तक आगे बढ़ाया जा रहा है. जरूरतों में कटौती की जा रही है. मेस का खाना छोड़कर कहीं और भी खाने का विचार वे अब नहीं आने देते. गपशप के दौराना चाय के ऑर्डर पर वे चाहते हैं कि अगली ही पैसा दे दे. वे कहते हैं कि कैंपस के बैंकों और एटीएम में पैसे आ तो रहे हैं मगर वे जल्द ही खत्म हो जा रहे हैं. कई लोगों को खाली हाथ लौटना पड़ रहा है.

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प्रतियोगी परीक्षाओं के दौर में हो रही हैं दिक्कतें- जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट कर रहे जोगिंदर कहते हैं कि उनके लिए यह कई प्रतियोगी परीक्षाओं का समय है. ऐसे में कैश के लिए लाइन में लगना खल रहा है. बैंक से पैसे निकालने की स्थिति मे भी 2000 के नोट मिल रहे हैं. ऐसे मे छुट्टा मिलने में भी दिक्कत हो रही है. अभी मार्केट में 2000 के नोटों का सर्कुलेशन कोई खास नहीं है. कैंपस के एटीएम में कैश न होने की स्थिति में बाहर जाने पर लोगों के व्यवहार में भी रुखापन दिख रहा है.

फिर से लाइन लगने की है तैयारी- बिहार के बेगूसराय जिले से ताल्लुक रखने वाले और फिलहाल बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन कर रहे राजेश रंजन कहते हैं कि पैसे मिलने में दिक्कत आ रही है. वे एक बार 4 घंटे लाइन में लगकर 2000 रुपये निकाल चुके हैं और उनके खत्म होने की स्थिति में फिर से लाइन में लगने की तैयारी में हैं. उनका मानना है कि नोटबंदी सरकार द्वारा राष्ट्रहित में उठाया गया कमजोर कदम है.
वे इसे जल्दबाजी में लिया गया फैसला ठहराते हैं. वे कहते हैं कि शहरों में तो स्थितियां फिर भी ठीक हैं लेकिन गावों में तो स्थितियां भयानक हैं. अव्वल तो कई गांव के बीच एक बैंक या एटीएम हैं और उनमें भी पर्याप्त कैश नहीं है.

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पैसे न होने की स्थिति में हुई घर-वापसी- बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई कर चुके और फिलहाल कंपटीटिव परीक्षा की तैयारी कर रहे अनंत कहते हैं कि मकान मालिक को वे 10 तारीख तक महीने का रेंट देते थे. 8 तारीख को नोटबंदी की घोषणा हो गई. उन्होंने दो घंटे लाइन में लगकर 2000 रुपये निकाले और उसे देकर अपने घर चले गए. उनके पास बनारस में रहने और खाने के पैसे तक नहीं थे.

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