दीपा करमाकर, ओलंपिक में क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट बन गई हैं. त्रिपुरा की 22 साल की दीपा ने ओलंपिक क्वालीफाइंग इवेंट में 52.698 अंक हासिल कर रियो का टिकट हासिल किया था. ये 52 साल के बाद पहला मौका होगा, जब भारत का कोई एथलीट ओलंपिक में जिमनास्टिक की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेगा.
यही नहीं इतिहास रचने के कुछ घंटों के बाद दीपा कर्माकर ने रियो ओलंपिक खेलों की परीक्षण प्रतियोगिता में वाल्ट्स फाइनल में गोल्ड मेडल जीता.
वाकई दीपा की कहानी आगे बढ़ने का जज्बा देती है. हालांकि ऐसे उदहारणाों की कमी नहीं है जिन्होंने अपनी हिम्मत के चलते किस्मत की रेखाएं बदल दीं -
1. पहली भारतीय महिला मुक्केबाज मैरी कॉम:
पांच बार विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता की विजेता रह चुकी मैरी कॉम अकेली ऐसी महिला मुक्केबाज हैं जिन्होंने अपनी सभी 6 विश्व प्रतियोगिताओं में पदक जीता है. तीन बच्चों की मां मैरीकॉम 2014 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीत कर वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला मुक्केबाज बनीं.
31 साल की उम्र में भी बॉक्सिंग रिंग के अंदर मैरीकॉम की फिटनेस और तेजी देखने लायक होती है. विरोधी पर मैरीकॉम पंच की बरसात करती हैं और बहुत ही तेजी से खुद को उनके प्रहारों से बचाती भी हैं. पांच बार की वर्ल्ड चैंपियन, लंदन ओलंपिक गेम्स में ब्रॉन्ज मेडलिस्ट और एशियन गेम्स में पहला गोल्ड जीतने वाली मैरीकॉम अपनी फिटनेस के लिए कड़ी मेहनत करती हैं.
2. तेज रफ्तार का बादशाह उसेन बोल्ट:
बीजिंग में विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में उसेन बोल्ट ने 9.79 सेकंड में 100 मीटर की दौड़ पूरी करके तीसरी बार खिताब अपने नाम कर लिया है. आप भले ही दुनिया के सबसे तेज रफ्तार उसेन बोल्ट जैसा नहीं दौड़ सकते, लेकिन आप उनकी जिंदगी से प्रेरणा ले सकते हैं. बोल्ट एक साधारण परिवार से आते हैं.
अपनी बहन, भाई और परिवार की मदद के लिए उन्होंने किराना दुकान पर रम और सिगरेट बेचने का काम किया था. कठिनाइयों के बावजूद उनका लक्ष्य नहीं डिगा, उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा था कि जवानी के दौरान उनका लक्ष्य कभी नहीं भटका और वो हमेशा खिलाड़ी बनना चाहते थे.
3. पहाड़ तोड़ने वाले दशरथ मांझी:
साल 1960 से 1982 के बीच दिन-रात बिहार के गहलौर गांव के दशरथ मांझी के दिलो-दिमाग में एक ही चीज़ ने कब्जा कर रखा था. पहाड़ से अपनी पत्नी की मौत का बदला लेना. 22 साल जारी रहे जुनून ने अपना नतीजा दिखाया और पहाड़ भी मांझी से हार मान गया.
दो दशक तक पहाड़ की छाती पर हथौड़े से वार कर उन्होंने 360 फुट लंबा, 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता निकाल दिया. उनकी मेहनत से अतरी और वज़ीरगंज ब्लॉक का फासला 80 किलोमीटर से घटकर 13 किलोमीटर रह गया.
4. पद्म श्री से सम्मानित हलधर नाग:
हलधर नाग को हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने पद्म श्री से सम्मानित किया है. 66 वर्षीय शख्स पूरी दुनिया के सामने एक नजीर हैं. प्राथमिक स्कूली शिक्षा से भी वंचित इस शख्स की रचनाओं पर 5 डॉक्टरेट हो चुकी हैं. ओडिशा प्रांत में रहने वाले यह शख्स कोसली भाषा का जनकवि हैं. इस शख्स को अपनी लिखी गई सारी कविताएं और 20 काव्य कंठस्थ हैं. ओडिशा की संबलपुर यूनिवर्सिटी अब इनकी कृतियों को अपने सिलेबस में शामिल करने की ओर अग्रसर है.
5. एवरेस्ट पर विजय पाने वाली पहली दिव्यांग महिला अरुणिमा सिन्हा :
भारत की अरुणिमा सिन्हा दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने वाली दुनिया की पहली दिव्यांग महिला हैं. 2011 में पर्स छीनने की कोशिश कर रहे बदमाशों ने विरोध करने पर अरुणिमा को चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया था. इस वजह से उन्हें अपने पैर गंवाने पड़ गए थे. इस घटना के 2 साल बाद उन्होंने एवरेस्ट फतेह किया था.
6. 15 साल की बक्शो ने नंगे पांव रेस में हिस्सा लेकर जीता गोल्ड मेडल:
जिंदगी में आप चाहे कितनी ही मुश्किलों से घिरे हों लेकिन आपने किसी काम को पूरा करने की ठान ली है तो कोई भी आपको रोक नहीं सकता है. ऐसे ही मजबूत जज्बे की मिसाल है बक्शो देवी. भले ही बक्शो के पिता नहीं हैं, उसकी आर्थिक हालात तंग है और तो और वह पित्ताशय की पथरी से भी पीड़ित है.
लेकिन हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में स्थित ईसपुर गांव की नौवीं कक्षा की छात्रा बक्शो देवी के पास है गजब की हिम्मत, जिसके आगे ये सारी परेशानियां औंधे मुंह गिरी दिखाई देती है.
7. सिक्योरिटी गार्ड भज्जू श्याम कैसे बना दुनिया का मशहूर कलाकार :
आदिवासी गोंड कलाकार भज्जू श्याम की किताब 'लंदन जंगल बुक' को दुनिया की पांच विदेशी भाषाओं में पब्लिश हुई है. उनकी यह उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि वे एक साधारण ग्रामीण परिवेश से आते हैं. भारत के एक पिछड़े इलाके से निकलकर अपने कला की छाप उन्होंने सात समंदर पार तक छोड़ी है.
16 साल की उम्र में घर की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए भज्जू अमरकंटक चले गए. वहां उन्हें पौधा लगाने का काम मिला. इस नौकरी से न तो खुशी मिली और न ही आर्थिक संकट दूर हुआ. इसके बाद भज्जू ने भोपाल जाने का फैसला किया. वहां उन्हें सिक्योरिटी गार्ड और इलेक्ट्रिसियन की नौकरी मिली लेकिन अपने काम से यहां भी संतोष न हुआ.
बचपन में भज्जू हमेशा घर की दीवारों को पेंट करने में अपनी मां की मदद किया करते थे. धीरे-धीरे रंगों की यह यात्रा आगे बढ़ने लगी. उनका नाम तेजी से चारों तरफ फैलने लगा. गोंड आर्ट में उन्हें महारत हासिल हो गई थी.
8. पैरों से लिखने वाली पुष्पा ने दी पीसीएस लोअर की परीक्षा:
इरादा पक्का हो तो बड़ी से बड़ी दीवार भी गिर जाती है. आपने लोगों को सिर्फ ऐसा कहते सुना होगा लेकिन बहराइच की पुष्पा ने इसे साबित करके दिखाया है. दिव्यांग पुष्पा सिंह हाथों से अक्षम हैं लेकिन उन्होंने इसे कभी भी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया.
वह अपने पैरों से लिखती हैं. उनकी इस प्रतिभा से उनके घरवाले और आस-पास के लोग तो पहले से ही परिचित थे लेकिन जब वह पीसीएस लोअर की परीक्षा देने पहुंचीं तो उनकी हिम्मत देखकर सभी हैरान रह गए. पुष्पा स्कूल टीचर हैं लेकिन उनका सपना प्रशासनिक अधिकारी बनने का है. प्रशासनिक अधिकारी बनकर पुष्पा समाज में बदलाव लाना चाहती हैं.