हाल ही में सरकार पर संस्थान में की जा रही भर्तियों को लेकर आरोप लग रहे हैं. आरोप और विरोध का सबसे बड़ा उदाहरण एफटीआईआई की 139 दिनों तक चली लंबी हड़ताल है. बेशक यह हड़ताल खत्म हो गई है लेकिन विरोध आज भी जारी है. ऐसे में जल्द ही देश के बड़े संस्थानों में से एक IIMC के डायरेक्टर का चुनाव भी होना है. इस चुनाव को लेकर हमने वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक डॉ॰ वेद प्रताप वैदिक बातचीत की.
वैदिक जी IIMC के नए डायरेक्टर का चुनाव जल्द होगा, ऐसे में आप क्या अपेक्षा रखते हैं ?
मास कम्यूनिकेशन के इस प्रतिष्ठित संस्थान के डायरेक्टर के लिए जरूरी है कि उसे पत्रकारिता की पूरी जानकारी हो. उसे टीवी मीडिया के साथ अखबारी मीडिया में काम करने का अनुभव होना जरूरी है. यह इसलिए भी आवश्यक है कि सिर्फ टीवी पत्रकारिता की जानकारी वाला व्यक्ति मुद्दे की गहराई में नहीं जाता. वह बस टीआरपी के पीछे भागता है. अखबारी पत्रकारिता में आप गहराई में जाते हैं. इसलिए मैं समझता हूं कि डायरेक्टर को दोनों ही फील्ड की बेहतर जानकारी हो.
सरकार पर आरोप लग रहा है कि वह अपने लोगों की भर्तियां इंस्टीट्यूट में कर रही है. FTII के स्टूडेंट्स भी चेयरमैन को हटाने के लिए पिछले दिनों लंबी हड़ताल पर रहे और विराेध अभी भी जारी है. क्या सरकार की डीजी भर्ती में भी राजनीति रंग चढ़ेगा?
FTII की तरह एक बार फिर IIMC में भी राजनीति का रंग चढ़ेगा, यह कह पाना मुश्किल है. लेकिन एक बात तय है जिन्होंने पहले प्रदर्शन किया, वे इस बार भी करेंगे. प्रदर्शनकारियों को बस मुद्दे चाहिए, जिससे वे सरकारी फैसलों की खिलाफत कर सकें. हर किसी को पता है मोदी जी एक शेर की तरह है और शेर से सीधा टकराने की हिम्मत तो कोई यहां नहीं रखता. ऐसे में खिलाफत करने वाले मुद्दे तलाश कर सरकार का विरोध करते रहते हैं. वैसे भी लोगों की आदत होती है राई का पहाड़ बनाने की .
डायरेक्टर की उम्र का मुद्दा भी उठा. इसे 65 से घटाकर 60 साल कर दिया गया है. क्या किसी पद को उम्र के तकाजे में बांधा जाना ठीक है?
उम्र 65 से घटाकर 60 साल करना भले ही मोदी जी का फैसला रहा होगा. यहां मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि कोई उम्र सीमा तय हो. अगर कोई चीज जरूरी है है तो वो है योग्यता. कई बार लोग उम्र से बेहतर काम करते हैं. अक्सर आप खुद देखते होंगे कि जो काम 35 साल का आदमी नहीं कर पाता, उसे 65 साल का आदमी कर ले जाता है. हां, उम्र की भूमिका तब जरूर है जब किसी को कोई बीमारी हो और उसे कोई शरीरिक अक्षमता हो. इस पर भी मैं कहूंगा कि कई लोग दुनिया में ऐसे भी हैं जो अपंगता के बावजूद बेहतर ढंग से काम करते हैं.
सरकार और संस्थान दोनों के लिए क्या संदेश देना चाहेंगे ?
मैं समझता हूं कि पत्रकारिता के संस्थान में स्टूडेंट्स को जागरुक रहने और निर्भीकता का पाठ पढ़ाया जाना जरूरी है. तथ्यों की गहराई से जानकारी रखने की बात समझानी चाहिए. सरकार को मैं कहूंगा कि वो न्यूनतम हस्तक्षेप करे. जो मुद्दे संस्थान और स्टूडेंट की ओर से उठाए जाएं, उन्हें गहराई से समझे.
आने वाले समय में IIMC को कम्यूनिकेशन यूनिवर्सिटी बनाए जाने पर विचार चल रहा है. ऐसे में क्या आपको लगता है कि यह एक अच्छी यूनिवर्सिटी के रूप में उभर पाएगा ? इसमें डायरेक्टर का रोल कैसे देखते हैं?
अगर IIMC को कम्यूनिकेशन यूनिवर्सिटी बनाया जाता है तो यह बहुत बड़ी बात होगी. मैं चाहूंगा कि ऐसा जल्द हो. लेकिन यहां मैं एक बात पर जोर देना चाहूंगा कि शिक्षा का माध्यम हिंदी हो. मौजूदा समय में पत्रकारिता का मतलब है अंग्रेजी, जो सिर्फ हमारा विनाश कर रही है.
मैं यह मानता हूं कि अंग्रेजी में रिसोर्स ज्यादा हैं लेकिन यह मत भूलें कि अंग्रेजी कम्यूनिकेशन की भाषा है. इस भाषा को महत्व ज्यादा देने से हम देश की पूरी आबादी से संबंध तोड़ते हैं. यहां तक कि मैं कहूंगा कि अंग्रेजी मीडिया में काम करने वालों की पढ़ाई भी हिंदी में हो. पत्रकारिता की पढ़ाई अंग्रेजी में होनी ही नहीं चाहिए. अंग्रेजी में काम करना कभी कम्यूनिकेशन नहीं हो सकता, बस एंटी कम्यूनिकेशन है. अंग्रेजी भाषा पर पूर्ण प्रतिबंध होना चाहिए.