कहते हैं कि शहर में तो केवल नाम होता है, पहचान तो गांव में होती है. जहां अपना परिवार होता है. खेत और खलिहान होते हैं. हालांकि, रोजगार और नौकरी की तलाश में अधिकांश युवा शहरों की ओर रुख कर रहे हैं, लेकिन इन सभी के बीच कुछ ऐसे भी हैं जो शहरों में मिलने वाली मोटी कमाई को छोड़ कर गांवों की ओर रुख कर रहे हैं. ग्रामीण परिस्थितियों से जूझते हुए उन्हें बद से बेहतर बनाने की लड़ाई लड़ने के लिए आमादा हैं.
मध्यप्रदेश के मौलाना आजाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MANIT) से मैटेरियल साइंस और मेटलर्जी में इंजीनियरिंग की डिग्री लेने और मोटी तनख्वाह की नौकरी मिलने के बावजूद मस्तराम हाथेश गांव की ओर लौट रहे हैं. वे अभी केवल 21 वर्ष के हैं और ऐसा करना कम से कम उनकी प्रतिबद्धता और गांव से अपार प्रेम तो दर्शाता ही है. वे पूर्व में जवाहर नवोदय विद्यालय के भी छात्र रह चुके हैं.
आखिर उन्होंने क्यों छोड़ दी नौकरी?
उन्हें भारत ओमान रिफाइनरीज लिमिटेड (BORL) की ओर से मोटी तनख्वाह वाली नौकरी मिल गई थी. जब उन्हें डिग्री मिलने वाली थी तो वे चाहते थे कि गांव से भी लोग आएं. उनके गांव के लोग इस बात को लेकर डर गए थे कि वे किस प्रकार शहरी लोगों को फेस करेंगे. वे सभी इस बात से काफी खुश थे कि गांव का कोई लड़का तरक्की कर रहा है लेकिन वे इस बात को लेकर झिझक रहे थे कि कैसे सभी के सामने जाएं. विकास और प्रगति जैसे शब्द उनके लिए आज भी बेमानी हैं.
वे एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार से कहते हैं कि उनका गांव अब भी बेसिक सुविधाओं से वंचित है. बिजली की सप्लाई लगभग शून्य है. रिजर्वेशन जैसी सुविधाओं का फायदा भी अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में रहने वाले शहरी लोग ही ले रहे हैं.
उनके गांव में शिक्षा के लिए भले ही स्कूल हो लेकिन गांव का लिविंग स्टैंडर्ड आज भी जस का तस है. इन तमाम दुरूह परिस्थितियों को देखते हुए उन्होंने फैसला लिया कि वे गांव की बेहतरी के लिए ही प्रयासरत रहेंगे. वे गांव को ही विकासपथ पर ले जाने का काम करेंगे.