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जहां चाह वहां राह की कहावत को सच करती है ज्योति की कहानी

अगर कुछ कर गुजरने की ललक और खुद पर पूरा विश्वास हो तो अकल्पनीय बातें भी जिंदगी की हकीकत बन जाती हैं. ऐसी ही कहानी है एनआरआई, ज्योति रेड्डी की.

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Jyothi Reddy
Jyothi Reddy

अगर कुछ कर गुजरने की ललक और खुद पर पूरा विश्वास हो तो अकल्पनीय बातें भी जिंदगी की हकीकत बन जाती हैं. ऐसी ही कहानी है एनआरआई, ज्योति रेड्डी की.

ज्योति का जन्म वारांगल के एक गरीब परिवार में हुआ था. बचपन में उनकी मां का देहांत हो गया और उनके परिवार ने उन्हें एक अनाथालय में छोड़ दिया ताकि ज्योति वहां से कुछ पढ़ाई-लिखाई कर ले.

उन्होंने 10वीं की परीक्षा पहले दर्जे से पास की, लेकिन गरीबी के कारण पढ़ाई छोड़कर खेतों में काम करना शुरू कर दिया. वहां उन्हें मजदूरी के रूप में सिर्फ 5 रुपये मिलते थे. जब वह सोलह साल की थीं तभी उनकी शादी उनसे 10 साल बड़े एक व्यक्ति से कर दी गई. 18 साल की उम्र में ज्योति 2 बच्चियों की मां बन चुकी थीं. कई बार उन्होंने आत्महत्या के बारे में भी सोचा.

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आर्थिक अभाव के कारण पति से रोज झगड़े भी होते थे. लेकिन उन्होंने यह सोच लिया था कि अपने बच्चों को एक अच्छी जिंदगी जरूर देंगी. इसे सोचते हुए उन्होंने एडल्ट एजुकेशन टीचर के रूप में एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया. उस समय उनकी मासिक आमदनी 120 रुपये थी. वह बताती हैं, 'उस समय मेरे लिए 120 रुपये काफी थे. कम से कम इस रकम से मैं अपने बच्चों के लिए फल और दूध तो खरीद सकती थी.' उसके बाद इन्होंने नेशनल सर्विस वोलंटियर के रूप में काम करना शुरू किया. उन्हें वहां 200 रुपये प्रति माह मिलने थे. 

अपने पति के विरोध के बावजूद वह गांव से बाहर चली गईं. वहां उन्होंने टाइपिंग इस्टीट्यूट में दाखिला लिया और क्राफ्ट कोर्स किया. पेटिकोट सि‍लकर ज्योति रोज 20-25 रुपये कमाने लगीं. वहीं, उन्हें लाइब्रेरियन के तौर पर पर भी नौकरी मिली. इसके बाद उन्होंने ओपन स्कूल ज्वॉइन कर वहां से पढ़ाई शुरू की.

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1992 में उन्हें वारंगल से 70 किलोमीटर दूर एक स्कूल में स्पेशल टीचर की जॉब मिली. लेकिन इतनी दूर आने-जाने में ही सैलरी का बड़ा हिस्सा खर्च हो रहा था. इससे निपटने के लिए भी उन्होंने ट्रेन में साड़ी बेचनी शुरू कर दी. 1994 में उन्हें एक स्थाई नौकरी मिली, जहां की सैलरी 2750 रुपये थी.

धीरे-धीरे आगे बढ़ने वाली ज्योति ने जब यूएस में रहने वाली अपनी एक चचेरी बहन को देखा तो वह उसके लाइफस्टाइल से काफी प्रभावित हुईं. इसके बाद ज्योति ने सॉफ्टवेयर कोर्स करने का फैसला किया ताकि वह अपना भविष्य यूएस में बना सकें. इसके बाद 2000 में वह यूएस पहुंच गईं. वहां उन्हें 12 घंटे में $60 डॉलर वाली एक जॉब मिली. उसके बाद उन्हें सॉफ्टवेयर रिक्रूटर बनने का ऑफर आया लेकिन अच्छी अंग्रेजी नहीं होने की वजह से उन्होंने वह जॉब नहीं की. सारी मुसीबतों और परेशानियों से लड़ते हुए उन्होंने अपनी कंपनी खोली. आज ज्योति 'की सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन' कंपनी की सीईओ हैं. यह $15मिलियन डॉलर की आईटी कंपनी है.

इस सफलता के मुकाम पर पहुंचकर भी ज्योति अपने पुराने दिनों को भूली नहीं है. वह अनाथालय में रहने वाले बच्चों के लिए काम करना चाहती हैं और कई तरह की चैरिटी में भी हिस्सा ले रही हैं.

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