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क्‍यों हमेशा याद रहते हैं कॉलेज के दिन?

जब हम स्‍कूल में होते हैं तो बस यही चाहते हैं कि जल्‍दी से जल्‍दी कॉलेज पहुंच जाएं. ऐसा हो भी क्‍यों ना? आखिर हम रोज-रोज एक ही यूनिफॉर्म पहनने से छुटकारा जाे चाहते हैं.

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जब हम स्‍कूल में होते हैं तो बस यही चाहते हैं कि जल्‍दी से जल्‍दी कॉलेज पहुंच जाएं. ऐसा हो भी क्‍यों ना? आखिर हम रोज-रोज एक ही यूनिफॉर्म पहनने से छुटकारा जाे चाहते हैं. यही नहीं होमवर्क, ट्यूशन, टिफिन बॉक्‍स और कड़े अनुशासन से आजादी की बात सोचकर ही हम खिल उठते हैं.

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आखिरकार पहले दिन कॉलेज की पहली सीढ़‍ी चढ़ते ही हमें एक अलग ही दुनिया में पहुंच जाने का एहसास होता है. स्कूल की चारदिवारी से बाहर निकलकर हमारा तन-मन आजाद पंछी की तरह उड़ने लगता है. न पैरेंट्स की रोक-टोक होती है और न ही टीचर्स की डांट. हमने यहां पर कॉलेज लाइफ के ऐसे ही पलों को समेटने की कोशिश की है, जो हमारे लिए स्‍कूल के दिनों में किसी सपने की तरह होते हैं:

सुबह देर से उठना
स्‍कूल की तुलना में हमें सुबह-सुबह स्‍कूल भागने की टेंशन नहीं होती. कॉलेज में क्‍लासेज देर से शुरू होती हैं. देर से सोना और देर से उठना चलता रहता है. हम आराम से सोकर उठते हैं. चाय पीते हुए अखबार पढ़ सकते हैं या टीवी का मजा उठा सकते हैं. उसके बाद मम्‍मी के हाथों का बना गरमागरम नाश्‍ता खाकर आराम से नहाने जाते हैं.

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सिर्फ एक नोटबुक
कॉलेज अाते ही स्‍कूल के भारी-भरकम बैग से हमें हमेशा-हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है. अब तो बस एक नोटबुक ही काफी है. यही नहीं स्‍कूल के बोरिंग बैग की जगह हमारे कंधों पर होता है स्‍टाइलिश बैग, जिसमें हम मेकअप का सामान, कैमरा या अपने पसंदीदा गैजेट को कैरी कर सकते हैं.

फैशन और टशन
स्कूल ड्रेस से आजादी मिलते ही हर कोई फैशनेबल कपड़ों और यूनिक स्‍टाइल से अपनी अलग पहचान बना कर कॉलेज में छा जाना चाहता है. आए दिन शॉपिंग पर जाना और नए-नए कपड़ों, एसेसरिज और बैग्‍स के लिए सस्‍ती मार्केट तलाशना रोज का शगल बन जाता है. यही नहीं, हमारी पॉकिट मनी का ज्‍यादातर हिस्‍सा कपड़ों पर खर्च होता है. इस दौरान शायद ही एेसा हो कि हम किसी ड्रेस क‍ो हफ्ते में रिपीट करें.



कम ही लगती है पॉकिट मनी
जहां स्‍कूल के दिनों में कम पॉकिट मनी में हमारा गुजारा चल जाता है वहीं, कॉलेज आकर हमारे खर्च बढ़ जाते हैं. जितनी भी पॉकिट मनी मिले कम ही लगती है. पापा से मिले पैसे के खर्च होने के बाद मम्‍मी का ही सहारा होता है. 

दोस्‍ती-यारी
कॉलेज मतलब ढेर सारे दोस्‍त और मस्‍ती. जहां स्‍कूल में हमारा ग्रुप छोटा होता है वहीं कॉलेज आकर दोस्‍तों का ये ग्रुप अचानक से खूब बड़ा हो जाता है. यही नहीं देश के अलग-अलग कोनों से आए स्‍टूडेंट्स भी हमारी फ्रेंड लिस्‍ट में शामिल हो जाते हैं. इन दोस्‍तों के साथ गपशप, पिकनिक, पार्टी, शेयरिंग-केयरिंग और लड़ाई-झगड़ों का दौर चलता ही रहता है.

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क्लास बंक किया तो डरना क्या
स्कूल की तरह कॉलेज में सारी क्लासेज अटेंड करने की कोई मजबूरी नहीं होती. आराम से क्‍लास बंक कर हम अपने दोस्‍तों के साथ गप्‍पे मार सकते हैं, कोई मूवी देखने जा सकते हैं या किसी फ्रेंड के घर पार्टी भी कर सकते हैं. हां, रोज-रोज ऐसा न करें वरना इसका असर आपके करियर पर पड़ेगा.

कैंटीन की मस्ती
कैंटीन हमेशा से ही कॉलेज लाइफ का अहम हिस्‍सा है. स्‍कूल के दिनों से ही कैंटीन को लेकर हमारी कई फैंटसी होती हैं. खासकर जब भी हम किसी बॉलीवुड फिल्‍म में कैंटीन का कोई सीन देखते थे तो इस बात को सोचकर ही खुशी और रोमांच से भर जाते थे कि हम भी बड़े होकर कैंटीन में ऐसी ही मस्‍ती करेंगे. हालांकि रियल लाइफ कैंटीन रील लाइफ कैंटीन की तरह आलीशान और भव्‍य भले ही न हो लेकिन हैपनिंग तो खूब होती है. कैंटीन की गपशप, खाना-पीना और मौज मस्‍ती हमें ताउम्र याद रहती है.

नंबर कम है तो क्या गम है
स्‍कूल में हर हफ्ते होने वाले टेस्‍ट से हमें मुक्ति मिल जाती है. यही नहीं अब 10 में 10 नंबर लाने की कोई टेंशन नहीं रह जाती है. हां, फाइनल एग्‍जाम में हम अच्‍छा स्‍कोर करना जरूर चाहते हैं. लेकिन अगर ज्‍यादा नंबर नहीं भी ला पाएं तो भी कॉन्फिडेंस में कोई कमी नहीं आती.


कॉलेज का वो प्‍यार
कॉलेज में किसी एक खास चेहरे को कब हम अपना दिल दे बैठते हैं हमें पता ही नहीं चलता. उस एक खास इंसान के लिए हम न जानें क्‍या-क्‍या जतन नहीं करते. उससे बात करने और उसके करीब जाने का हम एक भी मौका नहीं छोड़ते. कई बार कॉलेज का ये प्‍यार परवान चढ़ जाता है और कई बार जब ऐसा नहीं होता तो एक मीठी सी याद की तरह हमेशा हमारे साथ रहता है.


बहरहाल, आप अपनी कॉलेज लाइफ का पूरा मजा लीजिए. ये पल आपकी जिंदगी में बार-बार नहीं अाएंगे. ये पल ताउम्र आपके चेहरे पर मुस्‍कान लाएंगे.

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