राइट टू एजुकेशन कानून 6 से 14 साल के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देता है. लेकिन कानून को लागू होने के पांच साल बाद भी अभी काफी कमियां दिख रही हैं.
92 फीसद स्कूल अब भी इस कानून के तहत सारे मानकों को पूरा नहीं कर रहे. 60 लाख बच्चे अब भी स्कूलों से बाहर हैं. इन हालात के बारे में शिक्षा का अधिकार कानून से लंबे वक्त से जुड़े लोग कहते हैं कि सबसे बड़ी चिंता पिछड़े इलाकों में स्कूलों का बंद होना है.
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आईआईएम अहमदाबाद समेत 4 बड़ी संस्थाओं की रिपोर्ट कहती है कि साल 2013-14 में कुल 21 लाख सीटें गरीब बच्चों के लिए आरक्षित थी यानी इतने गरीब बच्चे प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन पा सकते थे लेकिन केवल 29 फीसद सीटें ही भर पाईं.
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लेकिन पिछले 5 साल में उम्मीद के दरवाज़े भी खुले हैं. शिक्षा की मांग बढ़ी है. दिल्ली, मध्यप्रदेश और राजस्थान में गरीब बच्चों के दाखिले में संतोषजनक सुधार हुआ है. मिसाल के तौर पर दिल्ली में निजी स्कूलों में गरीब बच्चों के लिए आरक्षित सीटों में 90 फीसदी में एडमिशन हुए हैं. मध्यप्रदेश में ये औसत 88 और मणिपुर में 64 है.