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डायन प्रथा से लड़ने की पूरी तैयारी, स्कूली सिलेबस में शामिल हुए चैप्टर

झारखंड सरकार ने डायन प्रथा से लड़ने के लिए कसी कमर. स्कूली सिलेबस के माध्यम से बच्चों को किया जा रहा अवगत. इसकी वजह से जाती रही हैं हजारों जानें...

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Jharkhand School
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झारखंड सरकार ने प्रदेश में व्याप्त डायन प्रथा से लड़ने के लिए पूरी तैयारी कर ली है. अब बच्चों को स्कूलों में इस प्रथा की खामियां और उनसे लड़ने के उपाय सुझाए जाएंगे. झारखण्ड शिक्षा मंत्रालय ने इसकी तैयारी भी पूरी कर ली है. क्लास 6, 7 और 8 के बच्चों को डायन और जादू टोना जैसी सामाजिक कुरीतियों के विषय में जानकारी दी जायेगी. स्कुलों में तो ट्रायल के रूप से इसे अभी से पढ़ाया जाने लगा है. दरअसल, झारखंड के ग्रामीण इलाकों में डायन के नाम पर हर साल सैकड़ों निर्दोषों को अपनी जान गंवानी पड़ती है.

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पाठ्यक्रम में जोड़ा गया है डायन प्रथा विषय...
गौरतलब है कि झारखंड के सरकारी स्कुलों में डायन, जादू-टोना और अंधविश्वास पर बच्चों को जानकारी दी जाएगी. इस विषय को नियमित पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा. दरअसल, सरकार की लगातार कोशिशों के बाबजूद झारखंड में डायन और जादू-टोना के नाम पर होने वाली प्रताड़नाओं और हत्याओं का दौर जारी है. ऐसे में इस सामाजिक कुप्रथा के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए बच्चों के माध्यम से इसे घर-घर पहुचाने की योजना बनाई गयी है.
शिक्षा और साक्षरता सचिव अराधना पटनायक के मुताबिक छठवीं से आठवीं तक के बच्चों की पढ़ाई में इस विषय को शामिल किया जा रहा है. ताकि बच्चे घर जाकर अपने माता-पिता और पड़ोसियों को समझा सके कि डायन नाम की कोई चीज होती ही नहीं है. इसलिए वे अभी से बच्चों को इसकी जानकारी देने लगे हैं. कई स्कूलो में तो इसे अभी से ट्रायल के रूप में पढ़ाया जा रहा है. क्लास तीन की बुक में तो डायन पर छपे अखबारों की खबरों को डाला गया है ताकि शिक्षक उसे पढ़कर बच्चों को इसकी जानकारी दे सकें और बच्चे अभी से इस कुरीति को समझने लगे हैं.

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आखिर क्यों होती है हत्याएं?
वैसे तो डायन का नाम सुनते ही एकबारगी हमारे जेहन में एक ऐसी महिला का अक्श उभरता है. जो न केवल बदसूरत होती है बल्कि उसके बाल भी बेतरतीब होते हैं. जिसके लम्बे-लम्बे दांत होते है और होठों पर विद्रूप सी हंसी होती है. दरअसल, बचपन से हमारे जेहन में इसी तरह की तस्वीरें छपी हैं. इसके आड़ में झारखंड के ग्रामीण इलाकों में जमीनों के दलाल और असामाजिक तत्वों ने अपने निजी हित साधे और खूब फायदा कमाया.
महज एक महीने पहले रांची से सटे बुंडू इलाके में तीन मासूमों की जान डायन प्रथा के नाम पर ले ली गयी थी. मृतकों में दो बच्चे भी शामिल थे जबकि दो अन्य लोगों के भी गले काटने की कोशिश की गई और वे किसी तरह बच निकले. ऐसा भी नही है कि यह ऐसी इकलौती घटना है. बीते दिनों रांची के मांडर इलाके और लातेहार जिले में भी पांच-पांच लोगों की हत्या इस कुप्रथा के नाम पर कर दी गयी थी. ऐसा माना जाता है कि इन सभी हत्याओं के पीछे की वजह डायन प्रथा न होकर जबरन जमीन हथियाने की मंशा है. इनकी पुष्टि इन हत्याओं की जांच-पड़ताल के दौरान हुई.

1200 से अधिक हत्याएं हो चुकी है...
सितंबर 2015 से इस साल के मई तक नौ महीनों में जादू-टोना और डायन के नाम पर प्रताड़ना के 524 मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि 35 लोगों की हत्या कर दी गई है. बीते साढ़े पांच साल के दौरान झारखंड में डायन के आरोपों में प्रताड़ना के करीब 3,300 मामले दर्ज हुए हैं. इन घटनाओं का सबसे ज्यादा खामियाजा गांवो के आदिवासी परिवारों को भुगतना पड़ा है. झारखंड में डायन के नाम पर होनीवाली प्रताड़नाओं और हत्याओं के आंकड़े बेहद चौकानेवाले है.
झारखंड बनने के बाद अबतक 1200 से अधिक लोगों की हत्या डायन प्रथा के नाम पर कर दी गयी है.
मृतको में महिलाओ के साथ-साथ पुरुष और स्कुल जानेवाले बच्चे भी शामिल हैं. जिनका इन सबसे कोई वास्ता नहीं था. ऐसा माना जाता है कि इनकी हत्या सिर्फ जमीन हथियाने की नियत से ही की गई है. ग्रामीण क्षेत्र में रहनेवाली एकाकी और बूढ़ी महिला और ऐसे लोग जिनके पास कीमती जमीन है गांव के दबंग और असामाजिक तत्वों के निशाने पर होते हैं. वहीं नक्सल इलाका होने की वजह से पुलिस भी प्रताड़ना की शिकायत मिलने पर यहां जाने से कतराती है.

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सरकार के एक्शन प्लान का नजीजा रहा सिफर...
वैसे सरकार ने इसके उन्मूलन के लिए कई और एक्शन प्लान बनाये लेकिन नतीजा सिफर रहा है. झारखंड सरकार ने मंत्रिमंडल की 17वीं बैठक में 3 जुलाई 2001 को डायन प्रथा निषेध अधिनियम 1999 को अपनी स्वीकृति दी थी. जिनमें डायन के नाम पर प्रताड़ित करनेवालों को जुर्माने के साथ-साथ कारावास की सजा का भी प्रावधान है. हालांकि, सामाजिक और कानूनी सिस्टम का सही ढंग से प्रचार-प्रसार नहीं होने की वजह से राज्य में डायन के नाम पर होनेवाली हत्याओं का दौर आज भी बदस्तूर जारी है.

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